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भगवान भावनाओं को समझो, प्रसाद में क्या रखा है…

Anita Gautam for BeyondHeadlines

इतने दिनों से नोटिस कर रही हूं कि हर सोमवार छोटा भाई आधा दूध आधा पानी भरा लोटा हर मौसम में शिवजी को चढ़ा कर आता है. पिता जी मंगलवार को बूंदी का प्रसाद हनुमान जी को चढ़ाते हैं. बुधवार और गुरूवार खाली जाता है. और शुक्रवार को मां गुड़-चना संतोषी मां को चढ़ाती है.

फिर शनिवार को भतीजा 5 दियों में काला तिल सहित सरसों का तेल भर काली मां, भैरो बाबा, शनिदेव, पीपलदेव और 1 मुझे पता नहीं, का दीया भगवान के आगे लगाकर आता है. रविवार को मां काली मां के मंदिर हाजिरी लगा फूल नींबू चढ़ा कर आती है. रोज़ घर में खाने के लिए शुद्ध घी हो न हो, मां पूरे जुगाड़ से रोज़ देसी घी वो भी गांव से मंगाया हुआ, उसे दिये में भर-भर के भगवान के आगे लगाती है. मां कभी कभार तुलसी मैय्या के साथ भेदभाव कर उनके दिये में सरसों का तेल प्रयोग कर लेती हैं…

अब मैं ये सोच रही हूं कि शायद ये सिर्फ मेरे घर की कहानी नहीं है. हर घर में ऐसा ही होता होगा. पर क्या भगवान जो होता है उन्हें दिखता नहीं. उन्हें प्रसन्न करने के लिए प्रसाद चढ़ाना, उपवास रखना किस हद तक उचित है?

Photo Courtesy: jonwoon.blogspot.in

कई लोगों को देखती हूं कि भगवान के नाम पर उपवास करते हैं और भूखे पेट दो घंटा रहने के बाद भगवान-भगवान करने की बजाय भूख-भूख करते हैं. अरे भाई तो ऐसे उपवास का क्या अर्थ? क्या किसी शास्त्र मे लिखा है कि शरीर को कष्ट पहुंचाने से या दूसरों को कष्ट पहुंचाने के बाद उपवास रखने या प्रसाद चढ़ाकर कोई देवी-देवता प्रसन्न होते हैं.

फिर एक बात और ध्यान में आई कुछेक लोगों का दावा होता है कि उन पर माता आती हैं. अब सोचने वाली बात ये है कि क्या माता इतनी खाली हैं कि किसी के उपर भी आ जाए. और वो भी ऐसे इंसान पर जो नहाया नहीं होता. बीड़ी, सिगरेट और शराब पीकर भगवान को बुलाता है. जब ये सारी बातें मैं मेरे घर वालों को बोलती हूं तो सब मुझे ही डांट कर बोलते हैं कि तुम कैसी हिन्दू हो जो भगवान में विश्वास नहीं करती.

अब हिन्दू होने के लिए मैं ज़बरदस्ती बेमन से ऐसा ढोंग तो कर नहीं सकती, क्योंकि मेरे पास न तो इतनी कमाई है कि देसी घी के दिए लगाउं और न ही दूध, तिल, तेल… अरे इतनी गर्मी में जहां 5 रूपये का एक नींबू आता है, अगर दिनभर में एक नींबू से दो गिलास पानी पी लूं तो शरीर को कुछ राहत मिलेगी. पर मेरे घर वाले समझें तब ना…

भगवान! भगवान बनना आसान है इंसान बनना मुश्किल है. जो लोग सिर्फ तुम्हारी पूजा करते हैं यदि हर इंसान एक दूसरे में तुम्हें देखने की कोशिश करें. जिस तरह तुम्हें मनाते हैं. सेवा करते हैं… तुम्हारे आगे झूठ नहीं बोलते. गलत काम नहीं करते और तुम्हारा सम्मान करते हैं. ठीक वैसे ही सामने वाले के साथ व्यवहार करें तो शायद तुम उससे खुश होगे न कि उपवास और प्रसाद चढ़ाने वालों से… भगवान भावनाओं को समझो, प्रसाद में क्या रखा है….

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