Puja Singh for BeyondHeadlines
कांग्रेस समेत अन्य राजनीतिक दल खुद को सूचना अधिकार कानून के दायरे से बाहर रखने के संदर्भ में जो दलील साझा तौर पर पेश कर रहे हैं. वह यह है कि हम सरकारी संस्था नहीं हैं.
राजनीतिक दल सूचना अधिकार कानून के दायरे में आने से इन्कार करने के लिए चाहे जैसे तर्क क्यों न दें. पर उनकी दाल अब गलने वाली नहीं है. ऐसा इसलिए नहीं होने वाला, क्योंकि ऐसे पर्याप्त कारण मौजूद हैं जिनके चलते राजनीतिक दलों को सूचना अधिकार कानून से बाहर नहीं रखा जा सकता.
यह राजनीतिक दलों के तौर-तरीकों का ही दुष्परिणाम है कि किस्म-किस्म के घपले-घोटाले होते हैं और ऐसे फैसले लिए जाते हैं जो जनहित की उपेक्षा का कारण बनते हैं. यह विचित्र है कि जनता के साथ जुड़कर काम करने वाले राजनीतिक दल उससे ही बहुत कुछ छिपाना चाहते हैं.
अगर राजनीतिक दल वास्तव में जनहित के लिए काम करते हैं और उनके सारे फैसले जनता को ध्यान में रखकर होते हैं तो वे पारदर्शिता का परिचय देने के लिए क्यों तैयार नहीं हैं?
राजनीतिक दलों ने सूचना आयोग के फैसले का विरोध कर यही जाहिर किया है कि वे खुद को निजी जागीर की तरह चलाना चाहते हैं..? लोकतंत्र में जागीर अथवा निजी कंपनियों की तरह चलाए जा रहे राजनीतिक दलों के लिए कोई स्थान नहीं हो सकता.
कांग्रेस महासचिव की मानें तो सूचना अधिकार कानून के दायरे में आने से लोकतांत्रिक संस्थाओं को क्षति पहुंचेगी. यह ठीक वैसा ही तर्क है जैसा तर्क सूचना अधिकार कानून का निर्माण करते समय नौकरशाही की ओर से दिया जा रहा था. यह निराशाजनक है कि जिन तर्को के आधार पर खुद को सूचना अधिकार कानून के दायरे से बाहर रखने पर अड़ गए हैं वे खोखले हैं.
उनके पास ऐसा कुछ भी नहीं जो छिपाने लायक हो. अगर वाकई ऐसा है तो फिर केंद्रीय सूचना आयोग के फैसले के विरोध का क्या मतलब?
भाजपा भी इस फैसले के खिलाफ इन दलों के साथ खड़ी हो गई है. यह देखना दयनीय है कि सूचना अधिकार कानून को लागू करने का श्रेय लेने वाला राजनीतिक दल ही इस कानून के दायरे में आने से इन्कार कर रहा है. जवाबदेही, जिम्मेदारी और पारदर्शिता का ढोल पीटने वाले राजनीतिक दल किस तरह इस सबसे कन्नी काटते हैं. इसका पता केंद्रीय सूचना आयोग के उस फैसले का विरोध करने से हो रहा है.
बेहतर हो कि राजनीतिक दल यह समझें कि उनका हित पारदर्शिता का परिचय देने में है. न कि तरह-तरह के बहाने बनाकर उससे बचे रहने में…