BeyondHeadlines News Desk
लखनऊ : खालिद मुजाहिद के हत्यारोपी पुलिस अधिकारियों की गिरफ्तारी, निमेष कमीशन की रिपोर्ट पर अमल करने और आतंकवाद के नाम पर कैद मुस्लिम बेगुनाह नौजवानों को छोड़ने की मांग को लेकर रिहाई मंच का अनिश्चित कालीन धरना आज 33वें दिन भी जारी रहा. आज क्रमिक उपवास पर मौलाना क़मर सीतापुरी बैठे.
धरने को संबोधित करते हुए रिहाई मंच के अध्यक्ष मो शुएब एडवोकेट ने कहा कि खालिद की हत्या के संबंध में उनके चचा ज़हीर आलम द्वारा मुक़दमा थाना कोतवाली बाराबंकी में धारा 302 और 120 बी में दर्ज कराया गया है. जिस पर विवेचना का अधिकार पुलिस अथवा सीबीआई को है. यही एजेंसियां न्यायालय में आरोप पत्र प्रस्तुत कर सकती हैं. फैजाबाद मजीस्ट्रट द्वारा की जा रही जांच या सरकार द्वारा गठित किसी जांच कमेटी का कोई विधिक महत्व नहीं हैं क्योंकि वे अदालत में आरोप-पत्र दाखिल नहीं कर सकते और न ही उन्हें साक्ष्य के रूप में कहीं पढ़ा जा सकता है.
रिहाई मंच इलाहाबाद के प्रभारी राघवेंद्र प्रताप सिंह ने कहा कि केन्द्र सरकार के अधीन काम करने वाली सीबीआई और उत्तर प्रदेश की सपा हुकूमत दोनों जान बूझ कर खालिद की हत्या की जांच सीबीआई से नहीं कराना चाहती, इसीलिए जहां उत्तर प्रदेश सरकार ने खालिद की हत्या से जुड़े सभी ज़रूरी दस्तावेज़ सीबीआई को नहीं भेजे तो वहीं सीबीआई ने खालिद की हत्या पर उठ रहे सवालों, जो साबित करते हैं कि खालिद की मौत प्राकृतिक नहीं, बल्कि उत्पीड़न से हुई है को जानबूझ कर नज़रअंदाज करते हुए अख़बारों में बयान दे दिया कि खालिद की मौत प्राकृतिक है. इसलिए वो जांच नही करेगी.
उन्होंने कहा कि केन्द्र और राज्य सरकारें दोनों ही सीबीआई जांच से इस लिए भाग रही हैं, क्योंकि अगर जांच हुई तो सिर्फ खालिद की हत्या में ही नहीं बल्कि सूबे में हुई तमाम आतंकी घटनाओं में खुफिया और सुरक्षा एजेंसियों की भूमिका उजागर हो जायेगी.
धरने को संबोधित करते हुए रिहाई मंच आज़मगढ़ के प्रभारी मसीउद्दीन संजरी ने कहा कि खालिद की हत्या की सीबीआई जांच न कराने के पीछे सीबीआई द्वारा दिया गया यह तर्क कि सीबीआई के पास पहले से ही उत्तर प्रदेश से जुड़े घोटालों की जांच का अंबार लगा है, निहायत ही गैर-जिम्मेदाराना है क्योंकि सीबीआई या किसी भी जांच एजेंसी के लिए यह कोई लिखित नियम नहीं है कि वह इस आधार पर जांच करने से इन्कार कर दे कि उसके पास पहले से जांच का बोझ है.
उन्होंने कहा कि दरअसल सीबीआई यह नहीं चाहती कि जिस तरह इशरत जहां फर्जी मुठभेड़ मामले में उसे आईबी की भूमिका की पड़ताल करनी पड़ रही है. कहीं उसी तरह खालिद की हत्या में भी आईबी अधिकारियों की भूमिका की जांच करनी पड़ जाय और आईबी की भूमिका उजागर हो जाय.
धरने को संबोधित करते हुए वरिष्ठ साहित्यकार राजेश कुमार ने कहा कि खालिद की हत्या और सरकार उनकी हत्या में शामिल पुलिस अधिकारियों को जिस तरह बचाने की कोशिश कर रही है, उससे साफ हो गया है कि आतंकी घटनाओं में सुरक्षा एजेंसियों की भूमिका पाक साफ नहीं है. उन्होंने कहा कि आज साहित्यकारों और संस्कृति कर्मियों को अपनी सामाजिक जिम्मेदारियों को निभाते हुए आतंकवाद के नाम पर हो रही इस राजनीति को बेनकाब करना होगा.
धरने के समर्थन में आये अधिवक्ता असद हयात ने कहा कि आज 23 जून को अस्थान कांड का एक साल पूरा हो गया. जहां आज ही के दिन भाजपा और सपा हुकूमत में मंत्री रहे रघुराज प्रताप सिंह के गुंडों ने मुसलमानों के बावन घर लूटे और जला दिये थे. लेकिन आज एक साल पूरे हो जाने के बावजूद आज तक उन्हें इंसाफ नही मिला.
उन्होंने कहा कि अस्थान कांड सपा और संघ परिवार के बीच गठजोड़ का सबसे अच्छा उदाहरण है क्योंकि सपा की कथित सेकुलर सरकार ने विश्व हिंदू परिषद के प्रवीण तोगडि़या जो अस्थान कांड के दूसरे अग्निकांड 23 जुलाई, 2012 का मुख्य मास्टरमाइंड है जिसको विवेचना में क्लीन चिट दिलवा दी और किसी भी पीडि़त मुस्लिम का बयान भी दर्ज नहीं किया.
दूसरी तरफ एक दलित लड़की के साथ बलात्कार और उसकी हत्या के झूठे आरोप में चार निर्दोष मुसलमान लड़कों को बंदी बनाया गया और उन पर गैंगेस्टर भी लगाया गया, जिससे सपा का सांप्रदायिक चेहरा बेनकाब हो जाता है. इस पूरे कांड पर रिहाई मंच जल्द ही जांच रिपोर्ट जारी करेगा.
धरने को संबोधित करते हुए कानपुर से आये इंडियन नेशनल लीग के नेता हफीज़ अहमद ने कहा कि सपा जैसी सियासी पार्टियां मुसलमानों की सियासी नासमझी का फायदा उठाकर मुसलमानों को बेवकूफ बनाती आई हैं. खालिद की हत्या पर सरकार और सरकार के मुस्लिम मंत्रियों का रवैया इसका ताजा उदाहरण है.
उन्होंने कहा कि आज ज़रूरत इस बात की है कि सपा की मुस्लिम विरोधी नीतियों से जनता को अवगत कराया जाय और खुद भी नये इंसाफ पसंद और तरक्की पसंद विकल्प के बतौर आवाम को खड़ा किया जाय.
इस अवसर पर मुस्लिम मजलिस के राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष खालिद साबिर और जैद अहमद फारूकी ने कहा कि चाहे जिसकी भी सरकार हो उन सबमें इस मसले पर आम सहमति है कि मुसलमानों को किस तरह आतंकवादी साबित किया जाय. इसीलिए मायावती की हुकूमत में जो निर्दोष बच्चे आतंकवाद के नाम पर पकड़े गये उन्हें सपा हुकूमत भी नहीं छोड़ रही है. साथ ही बसपा हुकूमत में इन बच्चों को फंसाने वाले अधिकारियों को मलाईदार ओहदे भी सपा सरकार दे रही है.
धरने को सोशलिस्ट फ्रंट के मो0 आफाक, भारतीय एकता पार्टी के सैयद मोइद अहमद, शुऐब, आज़मगढ़ रिहाई मंच के प्रभारी मसीहुद्दीन संजरी, इलाहाबाद रिहाई मंच के प्रभारी राघवेन्द्र प्रताप सिंह, शिबली बेग पूर्व सांसद इलियास आज़मी, राजेश कुमार, शहजादे मंसूर, मो यूनुस मुस्लिम मजलिस के जैद अहमद फारुकी, मौलाना कमर सीतापुरी, हरेराम मिश्रा, जुबैर जौनपुरी, फैज़, शाहनवाज़ आलम और राजीव यादव आदि शामिल हुए.