BeyondHeadlinesBeyondHeadlines
  • Home
  • India
    • Economy
    • Politics
    • Society
  • Exclusive
  • Edit/Op-Ed
    • Edit
    • Op-Ed
  • Health
  • Mango Man
  • Real Heroes
  • बियॉंडहेडलाइन्स हिन्दी
Reading: भ्रष्टाचार के खात्में के लिए बने विभागों में भी है भ्रष्टाचार!
Share
Font ResizerAa
BeyondHeadlinesBeyondHeadlines
Font ResizerAa
  • Home
  • India
  • Exclusive
  • Edit/Op-Ed
  • Health
  • Mango Man
  • Real Heroes
  • बियॉंडहेडलाइन्स हिन्दी
Search
  • Home
  • India
    • Economy
    • Politics
    • Society
  • Exclusive
  • Edit/Op-Ed
    • Edit
    • Op-Ed
  • Health
  • Mango Man
  • Real Heroes
  • बियॉंडहेडलाइन्स हिन्दी
Follow US
BeyondHeadlines > Exclusive > भ्रष्टाचार के खात्में के लिए बने विभागों में भी है भ्रष्टाचार!
ExclusiveLatest NewsLead

भ्रष्टाचार के खात्में के लिए बने विभागों में भी है भ्रष्टाचार!

Beyond Headlines
Beyond Headlines Published June 26, 2013 2 Views
Share
8 Min Read
SHARE

Afroz Alam Sahil for BeyondHeadlines

देश में सूचना का अधिकार क़ानून इस मक़सद के तहत लागू किया गया था कि देश में भ्रष्टाचार पर रोक लगाई जा सके. इसमें कोई शक नहीं है कि इस क़ानून से काफी हद तक भ्रष्टाचार पर लगाम भी कसा गया, लेकिन आज करीब 8 सालों के बाद भी स्थिति में कुछ खास तब्दीली नहीं आ सकी है. देश में भ्रष्टाचार के मामलों की जांच करने वाला आयोग  भी इस कानून के प्रति जवाबदेह नहीं है. बल्कि कुछ राज्यों के सतर्कता आयोग व विभाग तो खुद को सूचना के अधिकार के दायरे से बाहर मानते हैं.

The department to weed out corruption are themselves corrupt!सूचना के अधिकार के तहत वेलफेयर पार्टी ऑफ इंडिया के राष्ट्रीय महासचिव डॉ. क़ासिम रसूल इलियास ने देश के तमाम राज्यों से यह पूछा कि पिछले तीन सालों में आपके दफ्तर को कितने शिकायत प्राप्त हुए? शिकायतकर्ता के नाम के साथ-साथ जिस अधिकारी के संबंध में शिकायत की गई है इनके भी नाम व पद बताएं. कितने शिकायत तुरंत खारिज कर दिए गए और कितने शिकायतों पर जांच के आदेश दिए गए. जिन्हें खारिज किया गया उसका आधार क्या था? क़ानून के अनुसार कोई भी जांच कितने दिनों में मुकम्मल होनी चाहिए, इस संबंध में आयोग के जो भी नियम-कानून हैं, उसकी कापी दी जाए. साथ ही आयोग को मुख्यमंत्री कार्यालय, स्वास्थ्य विभाग, गृह विभाग आदि से प्राप्त सभी शिकायतों की कापी भी आरटीआई के तहत मांगी गई थी. लेकिन ज़्यादातर राज्यों ने इस मामले पर सूचना देने से इंकार कर दिया बल्कि कुछ राज्यों ने तो खामोश रहना ही मुनासिब समझा.

भारत सरकार के केन्द्रीय सतर्कता आयोग ने अपने जवाब में सूचना के अधिकार की धारा- 7(9) के तहत इस सूचना को देने से मना कर दिया. भारत सरकार के केन्द्रीय सतर्कता आयोग के साथ-साथ पंजाब सरकार के सतर्कता ब्यूरो ने भी धारा- 7(9) के तहत इस सूचना को देने से मना कर दिया.

बिहार के सतर्कता विभाग ने भी जवाब में बताया कि आपने जिन सूचनाओं की मांग की है, वो सूचना की परिभाषा के दायरे में नहीं आती है. झारखंड सरकार ने भी कहा कि आपके द्वारा मांगी गई सूचना नहीं दी जा सकती. जबकि दिल्ली सरकार के एंटी करप्शन ब्रांच ने बताया कि साल 2011 में 2489, साल 2012 में 2417 और साल 2013 में 18 अप्रैल तक 759 शिकायतें दर्ज की गई हैं. बाकी की सूचना उन्होंने आरटीआई की धारा-8 (1)(g) के तहत देने से मना कर दिया है. यानी उनका मानना है कि भ्रष्ट अधिकारियों के नाम देने से उनकी जान को खतरा हो सकता है. क्योंकि आरटीआई की धारा-8 (1)(g) यह बताती है कि वैसी सूचना आपको नहीं दी जा सकती है, जिनसे किसी के जान को खतरा पहुंचे. महाराष्ट्र सरकार के एन्टी करप्शन ब्यूरो ने भी आरटीआई की धारा-8 (1)(g) के तहत सूचना देने से मना कर दिया है.

पश्चिम बंगाल सरकार के सतर्कता आयोग ने बताया है कि पिछले तीन सालों में 3660 शिकायतें आयोग को प्राप्त हुई हैं. जिनमें सिर्फ 209 शिकायतों को जांच के लिए ली गई. और उनमें से 163 शिकायतों पर जांच बंद की जा चुकी है. साथ ही उन्होंने यह भी बताया है कि जांच को पूरा करने के लिए कोई खास नियम या कानून नहीं है. बाकी सूचना यह भी उपलब्ध नहीं करा सके हैं.

उत्तर प्रदेश के सतर्कता अधिष्ठान ने बताया कि उत्तर प्रदेश सरकार, सतर्कता अनुभाग-4 की अधिसूचना सं.-2339/39-4-2010-21/2005 दिनांक 22 सितम्बर, 2010 द्वारा सतर्कता अधिष्ठान को सूचना के अधिकार अधिनियम-2005 की परिधी से बाहर कर दिया गया है. कितने दिनों में शिकायत पर कार्रवाई की जाती है, इस सवाल के जवाब में इनका कहना है कि ‘विभिन्न प्रकृति के जांचों के संबंध में निर्धारित अवधि के साथ-साथ सतर्कता निदेशक एवं मुख्य सचिव के स्तर पर निर्धारित अवधि की समय-सीमा में वृद्धि विषयक मुख्य सचिव का आदेश दिनांक 18 मई, 1994 सतर्कता अधिष्ठान में उपलब्ध है किन्तु इस शासनादेश/ परिपत्र के शीर्ष बिन्दू पर शासन द्वारा ‘गोपनीय’ शब्द अंकित करने से ‘शासकिय गुप्त अधिनियम-1923’ के प्रावधानों के अन्तर्गत इसे उपलब्ध कराया जाना सम्भव नहीं है.’ सबसे दिलचस्प बात यह है कि भले ही इस अधिष्ठान को सूचना के अधिकार के दायरे से बाहर कर दिया गया हो, लेकिन यहां सूचना अधिकारी व अपीलीय अधिकारी ज़रूर मौजूद हैं.

देश के तमाम राज्यों में से सिर्फ राजस्थान सरकार के भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो ने आधी-अधूरी ही सही लेकिन उन अधिकारियों की सूची उपलब्ध कराई दी, जिनके खिलाफ शिकायत दर्ज है, साथ ही यह भी बताया है कि शिकायत किस मामले में दर्ज है. उन्होंने जवाब में यह  भी बताया है कि वर्ष 2010 में 4810, वर्ष 2011 में 5716 और वर्ष 2012 में 5619 यानी कुल 16145 परिवादें प्राप्त हुई थी. इनका ब्यौरा कम्प्यूटर में संधारित नहीं है. अतः वर्णित 16145 परिवादों की सूची उपलब्ध कराना संभव नहीं है. आगे उन्होंने बताया कि 16145 परिवादों में से कुल 720 परिवाद जांच हेतु दर्ज किए गए. इन दर्ज 720 परिवादों में से 93 परिवादों में नियमित अपराध, 33 में प्राथमिक जांच और 6 में संबंधित लोक सेवक के विरूद्ध विभागीय जांच करने का आदेश दिया गया. इसके साथ ही 233 शिकायतें अप्रमाणित पाए जाने पर निरस्त कर दी गई. फिलहाल 288 शिकायतें जांच के अधीन हैं. जिनकी कापी आरटीआई के तहत आवेदक को हासिल करा दी गई है. आगे वो यह भी बताते हैं कि भ्रष्टाचार की शिकायत प्राप्त होने पर कार्यवाही करने के लिए कोई समय सीमा कानूनी प्रावधानों के मुताबिक तय नहीं है.

जबकि आंध्र प्रदेश, असम, हिमाचल प्रदेश, तमिलनाडू, मणिपूर, गोवा,केरल और नागालैंड आदि राज्यों ने इस पर खामोशी अख्तियार कर रखी है, उनकी तरफ से कोई सूचना अब तक आवेदक को प्राप्त नहीं हुई है.

इस पूरे मामले पर वेलफेयर पार्टी ऑफ इंडिया के राष्ट्रीय महासचिव डॉ. क़ासिम रसूल इलियास का कहना है कि आखिर यह कैसी विडंबना है कि जो क़ानून भ्रष्टाचार के समाप्ती के लिए बनाया गया था, पर अफ़सोस भ्रष्टाचार का रोकथाम करने वाली संस्था ही इस क़ानून के तहत सूचना देने से कतरा रही है. ज़ाहिर है इससे इनकी कामों पर ही सवालिया खड़ा होता है. सच पूछे तो ऐसे कई मामले सामने आए हैं जिसमें खुद इन्हीं संस्थाओं के अधिकारियों ने भ्रष्टाचार को बढ़ावा दिया  है.

इन आयोग व विभागों का काम करने का जो तरीका है वो कापी दिलचस्प है. ज़्यादातर शिकायतों पर इनकी तरफ से कोई कार्यवाही ही नहीं होती. आखिर में अब हैरान कर देने वाली बात यह है कि जब भ्रष्टाचार पर लगाम लगाने वाली आयोग व विभागों का सूचना के अधिकार के साथ यह रवैया है तो बाकियों का अंदाज़ा आप खुद ही लगा सकते हैं.

TAGGED:The department to weed out corruption are themselves corrupt!
Share This Article
Facebook Copy Link Print
What do you think?
Love0
Sad0
Happy0
Sleepy0
Angry0
Dead0
Wink0
“Gen Z Muslims, Rise Up! Save Waqf from Exploitation & Mismanagement”
India Waqf Facts Young Indian
Waqf at Risk: Why the Better-Off Must Step Up to Stop the Loot of an Invaluable and Sacred Legacy
India Waqf Facts
“PM Modi Pursuing Economic Genocide of Indian Muslims with Waqf (Amendment) Act”
India Waqf Facts
Waqf Under Siege: “Our Leaders Failed Us—Now It’s Time for the Youth to Rise”
India Waqf Facts

You Might Also Like

ExclusiveIndiaLeadYoung Indian

Weaponizing Animal Welfare: How Eid al-Adha Becomes a Battleground for Hate, Hypocrisy, and Hindutva Politics in India

July 3, 2025
ExclusiveHaj FactsIndiaYoung Indian

The Truth About Haj and Government Funding: A Manufactured Controversy

June 7, 2025
Latest News

Urdu newspapers led Bihar’s separation campaign, while Hindi newspapers opposed it

May 9, 2025
IndiaLatest NewsLeadYoung Indian

OLX Seller Makes Communal Remarks on Buyer’s Religion, Shows Hatred Towards Muslims; Police Complaint Filed

May 13, 2025
Copyright © 2025
  • Campaign
  • Entertainment
  • Events
  • Literature
  • Mango Man
  • Privacy Policy
Welcome Back!

Sign in to your account

Lost your password?