Anita Gautam for BeyondHeadlines
उत्तराखंड में हुई प्राकृतिक आपदा के बाद मदद करना तो दूर जो लोग मदद कर रहे हैं, कांग्रेसी सरकार उन पर ओछी राजनीति कर रही है. कभी मोदी के जाने पर बवाल तो कभी बहुगुणा की विफलताओं पर पर्दा डालने वाली सरकार राजनीति के लिए न जाने किस हद तक नीचे गिर सकती है, उसका अंदाजा लगाना नामुमकिन है.
1984 में इंदिरा गांधी हो या आज 2013 में सोनिया गांधी, ओछी राजनीति करने में सास बहू का जवाब नहीं. दोनों ने ही हमेशा से ही राजनीति में मीडिया का सहारा लिया. 84 में सिक्ख दंगों में जब समाचार पत्रों का पूरा फोकस दंगों के पीछे असल कारणों सहित जगदीश टाइटलर जैसे लोगों पर था तो सत्ता पलट के डर से हिन्दुस्थान समाचार जैसे कई समाचार पत्रों पर सेंसरशिप लगा दिया गया.
लेकिन आज किसी ख़बरिया चैनल पर सेंसरशिप न लगने का कारण कारपोरेट मीडिया एवं उसका बिकाउ होना इस बात का सबूत है कि मीडिया वही दिखाती है जो कांग्रेसी सरकार बोलती है. इतने दिनों से इस राहत के नाम सरकार कई बातें बोल रही है, पर सच्चाई तो उन लोगों से बयां हो रही है जो वहां प्रत्यक्ष भुगतभोगी हैं.
बिकाउ मीडिया मदद के नाम वो चार 4 ट्रक जिस पर सोनिया सहित उसके बेटे के पोस्टर छपे हैं, को हरी झंडी दिखाने वाली ख़बर दिन भर चलाती है, पर वहां जान की बाजी लगाने वाले लोगों, चोरी एवं बलात्कार की घटना के बारे में बताने वालों की फुटेज काटती नज़र आती है.
ऐसा नहीं है कि देश के तमाम लोग हाथ पर हाथ रखे बैठे हैं. पर मीडिया तो वहीं हवाई फुटेज दिखाती है, जिसमें सोनिया और मनमोहन हवाई सर्वेक्षण कर रहे होते हैं. सोचने की बात है कि हवाई सर्वेक्षण कितना हवा-हवाई होगा… जब मोदी वहां लोगों की मदद करने गए, तो इन्हीं लोगों ने राजनीति चालू कर दी और अचानक हवा-हवाई पुत्र राहुल सप्ताह भर बाद भारत में अपना जन्मदिन मनाने के बाद अवतरित हुए…
देश में कई संस्थाएं ऐसी भी हैं जो राहत का सामान पहुंचाने में मदद कर रही हैं, पर मीडिया उसे जनता के सामने दिखाना उचित नहीं समझती. वहां चल रहे रेस्क्यू ऑपरेशन में अभी तक की मीडिया लोगों को लाने ले जाने वाले हेलिकाप्टरों पर मुफ्त की सवारी करते हुए जगह घेरे बैठे नज़र आते हैं… कुछेक लोगों ने प्राइवेट हेलिकाप्टरों का सहारा लिया. फिर क्यों ये प्राइवेट हेलिकाप्टर में बैठ रिर्पोटिंग करने के लिए तैयार नहीं?
वहीं बात सरकार की, कीजाए तो वह चुनाव एवं जनता में मोदी की लोकप्रियता के कारण मोदी के भय के भूत से इतना डरी हुई है कि उसने कारपोरेट को सख्त हिदायद दे कि मोदी एवं आरएसएस के स्वयंसेवकों द्वारा किए जाने वाले राहत की कोई फुटेज न दिखाई जाए. ये वही सरकार है जिसके नुमांइदें सोनिया के कहने पर एक महीने की तनख्वाह तो मन मार दें देंगे पर इस आपदा को प्राकृतिक आपदा कहने में हज़ार बार सोचेंगे. सरकार जनता से अपील कर रही है कि आर्थिक रूप से मदद की जाए पर सोचने वाली बात यह है कि क्या मदद सिर्फ आर्थिक रूप से ही होती है?
सरकारी बाबू से लेकर कर्मचारी तक प्रत्येक व्यक्ति अपनी तनख्वाह में हमेशा राहत के नाम पर कुछ पैसा कटवाते ही हैं, तो फिर वो पैसे कहां गए? जहां तक प्रधानमंत्री राहत कोष की बात है तो इस राहत कोष में भी हम आप जैसे आम इंसान की कमाई का कुछ अंश जमा होता है, फिर सरकार से लेकर प्रधानमंत्री तक इस राहत कोष के एलान के बाद क्यों वाह-वाही बटोरने पर लगे हुए हैं?
जहां तक मीडिया का सवाल है. इस समय मीडिया को लोगों को एकजूट करना चाहिए, विपरित इसके वो लोगों को बांटने का काम कर रही है. इस समय देश में हर धर्म, हम जाति के लोग एकजूट हो, मंदिरो और मस्जिदों में लोगों की सलामती की प्रार्थना कर रहे हैं, पर मीडिया उसे दिखाना उचित नहीं समझती. शायद वो नहीं चाहती कि हिन्दू और मुस्लिम कभी एक हों, उनके बीच पल रहे मतभेद समाप्त हों.
सरकार लोगों से आर्थिक सहायता की अपील कर रही है पर मैं मीडिया से अपील कर रही हूं कि यह समय देश को एकसार करने का है न कि राजनीतिज्ञों की ओछी राजनीति से किसी पार्टी को फायदा दिलाने का. मीडिया चाहे तो उत्तराखंड को पुर्नस्थापित करने में लोगों की मदद कर सकती है.
(लेखिका प्रतिभा जननी सेवा संस्थान की दिल्ली स्टेट कोर्डिनेटर हैं, और यह उनके विचार हैं.)