BeyondHeadlinesBeyondHeadlines
  • Home
  • India
    • Economy
    • Politics
    • Society
  • Exclusive
  • Edit/Op-Ed
    • Edit
    • Op-Ed
  • Health
  • Mango Man
  • Real Heroes
  • बियॉंडहेडलाइन्स हिन्दी
Reading: ऐसा क्यों होता है…?
Share
Font ResizerAa
BeyondHeadlinesBeyondHeadlines
Font ResizerAa
  • Home
  • India
  • Exclusive
  • Edit/Op-Ed
  • Health
  • Mango Man
  • Real Heroes
  • बियॉंडहेडलाइन्स हिन्दी
Search
  • Home
  • India
    • Economy
    • Politics
    • Society
  • Exclusive
  • Edit/Op-Ed
    • Edit
    • Op-Ed
  • Health
  • Mango Man
  • Real Heroes
  • बियॉंडहेडलाइन्स हिन्दी
Follow US
BeyondHeadlines > Latest News > ऐसा क्यों होता है…?
Latest NewsLeadLiterature

ऐसा क्यों होता है…?

Beyond Headlines
Beyond Headlines Published June 4, 2013 1 View
Share
8 Min Read
SHARE

Khan Yasir for BeyondHeadlines

‘‘ये रेलगाड़ी नहीं, बैल गाड़ी है’’ अधेड़ उम्र के यात्री ने लोहे के बॉक्स पर से उठकर कमर सीधी करते हुए कहा.

‘‘आप सही कहते हैं’’ ऊपर की सीट पर आधा बैठे और आधा लटकते नौजवान ने सुर में सुर मिलाया.

खिड़की के पास दो या कम से कम डेढ़ आदमियों की सीट पर बैठै मोटे आदमी ने अपनी तोंद पर हाथ फेरा, खिड़की से नज़र हटा कर अन्य यात्रियों की तरफ़ घुमाई और कहा, ‘‘दिल्ली से अगर पैदल दौड़ा होता तो शायद अब तक घर होता.’’

लोग ठहाके मार कर हंस पड़े. मैंने एक नज़र उस मोटे की बात पर और दूसरी उसके पेट पर डाली और मन में सोचा कि ये शायद ही सौ कदम भी दौड़ पाए, ये बात कहने की आवश्यकता नहीं थी, सभी जानते थे.

आमने-सामने रेलवे ने ये सोचकर सीटें बनाई होंगी कि उन पर छह लोग बैठेंगे, कम से कम लिखे हुए सीट क्रमांक से तो यही अनुमान लगाया जा सकता है, मगर उन पर 17 आदमी बैठे हुए थे. बे-टिकट और अध-टिकटों की एक पूरी फौज थी. बच्चे ज़ोरदार आवाज़ में पता नहीं रो रहे थे कि गा रहे थे. फिर इस भीड़ में जहां तिल धरने की जगह नहीं थी वहां चने और चाय बेचने वालों का आना तो क़यामत थी बस.

मैं ऊपर वाली सीट पर, आधा बैठा और आधा लेटा हुआ था. याद नहीं मुझे हिले हुए कितना ज़माना गुज़र चुका था. मेरे बैग के अलावा तीन-चार और बैग भी मेरे हवाले थे, जो अगर ग़लती से भी मेरे हाथ से छूट पड़ते तो नीचे न्यूक्लियर बम बनकर गिरते.

अफ़सोस मुझे सिर्फ इस बात का था कि मेरी सीट ‘‘कंफर्म’’ थी. इसी दशा में, न जाने कैसे मुझे नींद आ गई तो सपने में मैंने उन दो बैलों का दर्शन किया जो इंजन की जगह हमारी रेल के डिब्बों को खींच रहे थे. मैंने घबरा कर आंखें खोल दीं. गाड़ी किसी जंगल में पता नहीं कब से किसी ‘शताब्दी’ या राजधानी’ को रास्ता देने के लिए खड़ी थी. मैंने दोबारा आंखें मूंद लीं.

बारह-तेरह घंटे की यात्रा को सत्ताईस घंटे में तय करके अतः जब मैं आज़मगढ़ स्टेशन पर जिंदा उतरा तो कहने की ज़रूरत नहीं कि मेरा शरीर थकन से चूर-चूर था. ऐसा लग रहा था जैसे जिस्म का हर जोड़ खुलकर अलग-अलग हो जाएगा. कहां सोचा था कि सुबह नाश्ते के समय पहुंच जाऊंगा और कहां ईशा की जमाअत का वक्त भी गुज़र चुका था. अल्लाह-अल्लाह करके घर पहुंचा, सुकून की सांस ली, खाने-पीने और नमाज़ पढ़कर बिस्तर पर पड़ गया. लेटते ही आंख लग गई.

जब आंख खुली तो लाइट नहीं थी, घुप अंधेरा छाया हुआ था, मुहल्ले की मस्जिद से फ़ज्र की अज़ान की हल्की-हल्की आवाज़ आ रही थी. मैंने आवाज़ पर सारा ध्यान लगा दिया वैसे भी मुनव्वर चचा की अज़ान सुने हुए सालों बीत गए थे. वास्तव में कमाल उनकी आवाज़ का नहीं बल्कि दिल के उस जज़्बे का है. जिसके साथ वे लोगों को नमाज़ के लिए पुकारते हैं. एक मुनव्वर चचा की अज़ान ही है जिसके लिए मैं अल्लामा इक़बाल से भी मतभेद कर सकता हूं जिन्होंने कहा था… ऐसा क्यों होता है...?

रह गई रस्मे अज़ां रूहे बिलाल न रही,
ऐसे हैं मेरे मुनव्वर चचा, और मेरे ही.

नहीं वह तो सारे गांव के चचा हैं. मुनव्वर चचा गांव की मस्जिद में पिछले 55 साल से अज़ान दे रहे हैं. बावजूद इसके कि अब 70-80 के फेरे में हैं, खेत में मेहनत करते हैं. आज तक उन्होंने कभी अज़ान देने का मुआवज़ा नहीं लिया. बात के खरे हैं, कोई लाग लपेट गवारा नहीं है. सच चाहे कितना ही कड़वा क्यों न हो मुनव्वर चचा झूठ नहीं बोल सकते.

लेकिन ये आज उनकी आवाज़ को क्या हुआ है? कहीं उनकी तबियत तो खराब नहीं? ‘अश्हदो अन्न मुहम्मदर रसूलुल्लाह’ तक मुझे लगा कि उनका गला बुरी तरह बैठा हुआ है. क्योंकि मुनव्वर चचा अज़ान न दें ऐसा तो हो नहीं सकता. लेकिन जब मामला ‘हय्या अलल फ़लाह’ और ‘अस्सलातो ख़ैरुम मिनन नौम’ तक पहुंचा तो मुझे यक़ीन हो चला कि अज़ान देने वाले मुनव्वर चचा नहीं कोई और हैं. और नहीं तो क्या स्वास्थ्य कितने भी क्यों न बिगड़े हों, मुनव्वर चचा कभी भी ‘‘फ़लाह’’ को ‘‘फला’’ और ‘‘ख़ैर’’ को ‘‘कैर’’ नहीं कह सकते. मेरा दिल बैठने लगा था, अल्लाह मुनव्वर चचा ठीक तो हैं.

कुछ देर बाद मैंने बिस्तर छोड़ दिया, सोने वालों को जगाया, वुजू किया और मस्जिद चला गया. सुन्नत के बाद मुनव्वर चचा से भेंट हो गई. उन्होंने ख़ुद बढ़कर सलाम किया. (एक बार फिर मुझे शर्मिंदा होना पड़ा), सर पर प्रेम से हाथ फेरा, दिल्ली के हालात पूछे. उनकी तबियत तो ठीक थी. फिर उन्होंने अज़ान क्यों नहीं दी? इससे पहले कि मैं पूछता जमाअत खड़ी हो गई.

बाद में मुझे बताया गया कि मुनव्वर चचा ने दो महीने से अज़ान देनी छोड़ दी है. मगर क्यों?

हुआ यूं कि चार पांच महीने पहले मस्जिद की प्रबंधक कमेटी का नया चुनाव हुआ. मुफ़्ती अमानत अली मुतवल्ली बने. मुनव्वर चचा हमेशा की तरह कमेटी के सेक्रेट्री चुने गए. अमानत साहब ने मस्जिद के फंड पर हाथ साफ़ करना शुरू किया तो मुनव्वर चचा आड़े आ गए. एक दिन परेशान होकर उन्होंने मीटिंग में ही अमानत साहब की ख़यानत का पर्दाफ़ाश किया और कई चुभते हुए सवाल किए जैसे सीमेंट महंगे दामों पर अमानत साहब के भाई के यहां से क्यों लाई गई, इससे बहुत सस्ते दामों पर करीम बाबू के यहां से मिल जाती. अमानत साहब को उस दिन आखि़री मौक़ा दिया गया.

इस आखि़री मौके का उन्होंने शानदार उपयोग किया. सबसे पहले पटवारी को साथ मिलकर ज़मीन के चार झूठे मुकदमों में फंसा दिया. फिर इन्हीं मुक़दमों को वजह बनाकर उन्हें मस्जिद की कमेटी से निकलवा दिया. आखि़र में उन्हें अज़ान देने से भी रोक दिया और बदलवा को जो मस्जिद की झाड़-पोंछ के लिए रखा गया था उसकी पगार 400 बढ़ाकर अज़ान देने का काम भी सौंप दिया.

ये सब जानकर मैं टूट-सा गया. गांव की शान्ति भंग न हो इसलिए मुनव्वर चचा ने सब कुछ चुप-चाप सह लिया. उनकी इज़्ज़त मेरी निगाहों में और बढ़ गई. शरीफ़ लोगों के साथ ऐसा ही होता है, ये तो मैं जानता हूं, लेकिन ऐसा क्यों होता है, ये नहीं जानता.

फिर ऐसा क्यों होता है कि एक शरीफ़ आदमी के साथ अन्याय हो रहा होता है तो सारे शरीफ़ लोग सब कुछ जानते-बुझते अनजान बने रहते हैं, उनके कानों पर जूं तक नहीं रेंगती. क्या आप मुझे बता सकते हैं कि ऐसा क्यों होता है?

TAGGED:Indian RailIndian railwayRailTickettraintrain for delhi to azamgarhTrain Ticketऐसा क्यों होता है...?
Share This Article
Facebook Copy Link Print
What do you think?
Love0
Sad0
Happy0
Sleepy0
Angry0
Dead0
Wink0
“Gen Z Muslims, Rise Up! Save Waqf from Exploitation & Mismanagement”
India Waqf Facts Young Indian
Waqf at Risk: Why the Better-Off Must Step Up to Stop the Loot of an Invaluable and Sacred Legacy
India Waqf Facts
“PM Modi Pursuing Economic Genocide of Indian Muslims with Waqf (Amendment) Act”
India Waqf Facts
Waqf Under Siege: “Our Leaders Failed Us—Now It’s Time for the Youth to Rise”
India Waqf Facts

You Might Also Like

Latest News

Urdu newspapers led Bihar’s separation campaign, while Hindi newspapers opposed it

May 9, 2025
IndiaLatest NewsLeadYoung Indian

OLX Seller Makes Communal Remarks on Buyer’s Religion, Shows Hatred Towards Muslims; Police Complaint Filed

May 13, 2025
IndiaLatest NewsLeadYoung Indian

Shiv Bhakts Make Mahashivratri Night of Horror for Muslims Across India!

March 4, 2025
Edit/Op-EdHistoryIndiaLeadYoung Indian

Maha Kumbh: From Nehru and Kripalani’s Views to Modi’s Ritual

February 7, 2025
Copyright © 2025
  • Campaign
  • Entertainment
  • Events
  • Literature
  • Mango Man
  • Privacy Policy
Welcome Back!

Sign in to your account

Lost your password?