Fahmina Hussain for BeyondHeadlines
कहते है डॉक्टर भगवान का रूप होता है. क्योंकि धरती पर वो लोगों को जिंदगी देता है. यह अलग बात है कि प्रत्यक्ष रूप से हमारे आसपास रहने वाले ये भगवान यमराज से तो हमारे प्राणों को वापस नहीं दिला सकते. पर बहुत लंबे समय तक जीवन ज़रूर प्रदान करते हैं. कभी-कभी तो वह इंसान को यमराज के क्रूर पंजों की पकड़ से वापस छीन लाते हैं.
यही वजह है कि अपने सबसे चहेते या फिर अपने आप को डॉक्टर को हवाले सौंपकर निश्चिंत हो जाते हैं. जैसा डॉक्टर कहता है, वैसा ही करते है. ऐसा इसलिए कि हमारे अन्दर यह उम्मीद कूट-कूट कर भरी होती है कि यह हमारी जिंदगी का रक्षक हैं. लेकिन ज़रा सोचिए, अगर वही रक्षक अपनी ज़रा सी लापरवाही की वजह से हमारी जिंदगी का दुश्मन बन जाए तो? इस भगवान की थोड़ी सी लापरवाही के कारण इसी भगवान के मंदिर की चौखट पर हमारा कोई अपना दम तोड़ दें तो?
सच तो यह है कि कुछ अपवाद को छोड़कर ये भगवान पैसे के पीछे इस कदर भाग रहे है कि वह कब भगवान से शैतान बन गए, पता ही नहीं चलता. हक़ीक़त तो यह है कि आज के इस दौर में भगवान रूपी डॉक्टर का दिमाग़ और हाथ सिर्फ पैसे के लिए चलता है.
खैर, इस विषय पर बहुत कुछ बताने की ज़रूरत नहीं है. क्योंकि मेडिकल क्षेत्र में डॉक्टर की लापरवाही और पैसों के खेल से हम सभी परिचित हैं. स्वास्थ्य सेवा लाभप्रद व्यवसाय बन चुका है.
डॉक्टरों के लापरवाही के बेशुमार घटनाएं मौजूद हैं. पिछले 08 जून 2013, इंदिरापुरम यानी गाजियाबाद के एक अस्पताल की कहानी दिल दहला देने वाली है. डॉक्टरों ने एक मासूम को टाइफाइड बताकर उशका इलाज शुरू कर दिया, जिससे बच्चे की हालत बिगड़ गई. जब दुबारा उसकी जांच की गई तो यह बात सामने आई कि बच्चे को टाइफाइड नहीं बल्कि डेंगू हुआ था. गलत दवाओं के असर बच्चे के कई अंगों पर विपरीत प्रभाव पड़ा जिससे उसकी मौत हो गई.
जयपुर में भी एक डॉक्टर ने एक मरीज़ की किडनी से स्टोन निकालने के लिए ऑपरेशन करने की बात कही. इंश्योरेंस कंपनी ने ऑपरेशन का पैकेज भी दे दिया. लेकिन डॉक्टर ने बिना ऑपरेशन के पैसे ले लिए. असलियत तब सामने आई, जब मरीज़ के शरीर से पट्टियां उतारी गईं और कहीं भी कट का कोई निशान नहीं दिखा. ये घटना 13 अप्रैल 2013 की है.
कल यानी शुक्रवार को ऐसे ही एक सच्ची घटना पर आधारित ‘अंकुर अरोड़ा मर्डर केस’ फिल्म भी रिलीज़ हुई है. जो हमें मेडिकल की कड़वी सच्चाई से रु-ब-रु कराती है. इस फिल्म की कहानी सच में दिल छू लेने वाली है.
फिल्म की कहानी में एक बच्चे यानी अंकुर को ‘अपेंडिक्स’ के दर्द के चलते अस्पताल में भर्ती कराया जाता है. डॉक्टर अंकुर का ऑपरेशन करने को तैयार हो जाते हैं, लेकिन अंकुर ऑपरेशन के पहले बिस्किट खा लेता है, जबकि डॉक्टरों ने ऑपरेशन से पहले कुछ खाने के लिए मना किया था. अपनी व्यस्तता के कारण भगवान रूपी डॉक्टर ये भूल जाते हैं और ऑपरेशन कर डालते हैं. एक सामान्य ऑपरेशन में एक मासूम चल बसता है. वैसे हमारे देश में न जाने हर रोज़ कितने अंकुर रोज़ ही डॉक्टरों की लापरवाही से मर रहे हैं.
ऐसा घटना हर रोज़ हमारे के हर कोने में घटित हो रही हैं. इस पर कई बार विरोध-प्रदर्शन भी किया गया. पर नतीजा वही ढ़ाक के तीन पात…. यही नहीं, पिछले साल सत्यमेव जयते के एक एपिसोड के ज़रिये भी मेडिकल क्षेत्र में हो रही धांधली पर रोशनी डाली गयी थी. लेकिन सरकार व डॉक्टरों पर इसका कोई गहरा असर नहीं हुआ.
यह हमारे देश की कैसी विडम्बना है कि आजादी के 65 साल बाद भी हमारा देश ऐसे डॉक्टरों से भरा पड़ा है, जिन्हें हम बोलचाल की भाषा में आरएमपी या झोलाछाप कह कर बुलाते हैं. ये लोग सिर्फ गाँवों में ही नहीं देश और राज्यों की राजधानियों तक में अपनी दुकानें सजा कर बैठे हैं, और विभिन्न पैथियों से इलाज के नाम पर लोगों के जीवन से इनका खेल जारी है…
