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‘शहीद’ एम.सी. शर्मा की ‘शहादत’ पर सवालिया निशान

Afroz Alam Sahil for BeyondHeadlines

एक बार फिर से ‘शहीद’ एम.सी. शर्मा की ‘शहादत’ पर सवालिया निशान लगना शुरू हो गया है. साकेत कोर्ट में चल रहे सुनवाई के दौरान ऐसे कई तथ्य सामने आ रहे हैं, जिनसे पुलिस की पुरी कहानी ही फर्जी लगने लगी है. ऐसे में सवाल उठता है कि एमसी शर्मा की ‘शहादत’ के लिए ज़िम्मेदार कौन है? कहीं वो अपने ही विभागीय दुश्मनों के शिकार तो नहीं हो गए?

fabricated story in Batla House caseसाकेत कोर्ट में अडिश्नल सेशन जज राजेन्द्र कुमार शास्त्री के समक्ष चल रहे सुनवाई के दौरान एमसी शर्मा के क़त्ल का आरोपी शहज़ाद के वकील सतीश टाम्टा ने पुलिस द्वारा बनाई गई पूरी कहानी की पोल खोल कर रख दी. उन्होंने साफ तौर पर अदालत में कहा कि इंस्पेक्टर मोहन चंद शर्मा की मौत शहज़ाद के हाथों नहीं हुई है. पुलिस इसको एक फर्जी कहानी में फंसा रही है. पुलिस ने अपनी कहानी में बताया था कि शहज़ाद के पिस्तौल से एमसी शर्मा की मौत हुई. और गोली मारने के बाद शहज़ाद भाग गया था. जबकि बैलिस्टिक रिपोर्ट के मुताबिक इंस्पेक्टर एमसी शर्मा के जिस्म में जो गोली पाई गई थी, वो उसी पिस्तौल से चली थी जो मौका-ए-वारदात से हासिल हुई थी. अब अगर शहज़ाद अपनी पिस्तौल लेकर फरार हो गया था तो ज़ाहिर है कि मौका-ए-वारदात से हासिल पिस्तौल उसकी नहीं थी और जबकि बैलिस्टिक रिपोर्ट यह स्पष्ट कर रही है कि मौत मौका-ए-वारदात से हासिल पिस्तौल की गाली से हुई है, तो ज़ाहिर है कि शहज़ाद ने एमसी शर्मा का क़त्ल नहीं किया है यानी वो  क़ातिल नहीं है.

बैलिस्टिक रिपोर्ट के अलावा फायर आर्म्स रिपोर्ट से भी इस कहानी को समझा जा सकता है और फायर आर्म्स रिपोर्ट व बैलिस्टिक रिपोर्ट लेखक ने आरटीआई के ज़रिए हासिल किया था.

लेखक द्वारा आरटीआई से हासिल मोहन चन्द शर्मा की पोस्टमार्टम भी इस ‘शहादत’ कई सवालिया निशान खड़े करते हैं. पोस्टमार्टम रिपोर्ट में सबसे गंभीर सवाल एम. सी. शर्मा की मौत पर हैं. क्योंकि जो व्यक्ति गोली लगने के बाद अपने पैरों पर चलकर चार मंजिल इमारत से उतर कर नीचे आया और कहीं भी एक कतरा खून भी न गिरा हो, और जो मीडिया रिपोर्ट के अनुसार शाम पांच बजे तक बिल्कुल खतरे से बाहर हो तो उसकी शाम सात बजे अचानक मौत कैसे हो गई?

अगर पोस्टमार्टम रिपोर्ट की बात करें तो उसके अनुसार इंस्पेक्टर मोहन चंद शर्मा के बारे में रिपोर्ट का कहना है कि बाएं कंधे से 10 सेंटीमीटर नीचे और कंधे से 8 सेमी ऊपर घाव के बाहरी भाग की सफाई की गई. शर्मा को 19 सितंबर 2008 में L-18 में घायल होने के बाद निकटतम अस्पताल होली फैमली में भर्ती कराया गया था. उन्हें कंधे के अलावा पेट में भी गोली लगी थी.

रिपोर्ट के अनुसार पेट में गोली लगने से खून का ज्यादा स्राव हुआ और यही मौत का कारण बना. अब फिर यह सवाल उठता है कि जब शर्मा को 10 मिनट के अन्दर चिकित्सीय सहायता मिल गई थी और संवेदनशील जगह (Vital part) पर गोली न लगने के बावजूद भी उनकी मौत कैसे हो गई? कैसे उनके शरीर से 3 लीटर खून बह गया?

सवाल यह भी है कि मोहन चंद शर्मा को गोली किस तरफ से लगी, आगे या पीछे से. क्योंकि आम जनता की तरफ से इस तरह की भी बातें आई थीं कि शर्मा पुलिस की गोली का शिकार हुए हैं. इस मामले में फारेंसिक एक्सपर्ट का जो बयान है वह क़ाबिले क़बूल नहीं है. और पोस्टमार्टम रिपोर्ट भी इसे स्पष्ट करने में असमर्थ है, क्योंकि होली फैमली अस्पताल जहां उन्हें चिकित्सीय सहायता के लिए लाया गया था और बाद में वहीं उनकी मौत भी हुई, उनके घावों की सफाई की गई थी. लिहाज़ा पोस्टमार्टम करने वाले डॉक्टर अंतिम तौर पर यह नहीं बता सके कि यह घाव गोली लगने के कारण हुआ है या गोली निकलने की वजह से. दूसरी वजह यह है कि इंस्पेक्टर शर्मा को ऑल इंडिया इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज़ (एम्स ) में सफेद सूती कपड़े में लिपटा हुआ ले जाया गया था. और उनके घाव पट्टी (Adhesive Lecoplast) से ढके हुए थे.

रिपोर्ट में स्पष्ट रूप से लिखा है कि जांच अधिकारी (IO) से निवेदन किया गया था कि वह शर्मा के कपड़े लैब में लाएं. लेकिन आज तक ऐसा हो न सका. उनके मौत पर मेरे अनगिनत प्रश्न हैं जिनका उत्तर मुझे आज तक आर.टी.आई. से भी नहीं मिल पाया है. राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग द्वारा निर्धारित गाईडलाइंस का भी इस पूरे मामले में उल्लंघन किया गया. इसके साथ-साथ अनगिनत ऐसे तथ्य मौजूद हैं जो इस पूरी कहानी को फर्जी साबित करने के लिए काफी हैं.

सबसे दिलचस्प है कि जिस शहज़ाद पर एमसी शर्मा के क़त्ल का इल्ज़ाम लगा है, वो वहां था ही नहीं. जबकि पुलिस अब तक यह बताती रही कि वो बालकनी से कुद कर भाग गया. हालांकि दुनिया का कोई भी आदमी जिसने एल-18 को देखा है, वो देखते ही बता सकता है कि ऐसा मुमकिन है ही नहीं. और अगर भाग भी गया तो वहां तैनात पुलिस वालों पर सवालिया निशान खडा होता है. वो उसे पकड़ क्यों नहीं पाए? खैर, आज अदालत में इसकी आखिरी सुनवाई है. हमें अदालत के फैसलों का इंतज़ार करना चाहिए. यकीन जानिए कि जीत सच्चाई की ही होगी.

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