BeyondHeadlinesBeyondHeadlines
  • Home
  • India
    • Economy
    • Politics
    • Society
  • Exclusive
  • Edit/Op-Ed
    • Edit
    • Op-Ed
  • Health
  • Mango Man
  • Real Heroes
  • बियॉंडहेडलाइन्स हिन्दी
Reading: शहीदे उर्दू क्रान्तिकारी जयबहादुर सिंह
Share
Font ResizerAa
BeyondHeadlinesBeyondHeadlines
Font ResizerAa
  • Home
  • India
  • Exclusive
  • Edit/Op-Ed
  • Health
  • Mango Man
  • Real Heroes
  • बियॉंडहेडलाइन्स हिन्दी
Search
  • Home
  • India
    • Economy
    • Politics
    • Society
  • Exclusive
  • Edit/Op-Ed
    • Edit
    • Op-Ed
  • Health
  • Mango Man
  • Real Heroes
  • बियॉंडहेडलाइन्स हिन्दी
Follow US
BeyondHeadlines > Lead > शहीदे उर्दू क्रान्तिकारी जयबहादुर सिंह
LeadReal Heroes

शहीदे उर्दू क्रान्तिकारी जयबहादुर सिंह

Beyond Headlines
Beyond Headlines Published August 9, 2013 1 View
Share
7 Min Read
SHARE

Pravin Kumar Singh for BeyondHeadlines

जयबहादुर सिंह का जन्म सन् 1909 के जनवरी माह में आज़मगढ़ के सूरजपुर गांव में एक ज़मींदार परिवार में हुआ था. पिता नरसिंह नारायण सिंह ज़मींदार होने के बावजूद भी मृदु व सरल स्वभाव के थे.

जयबहादुर सिंह तीन भाईयों में सबसे छोटे थे. उनकी प्राथमिक शिक्षा गांव में हुई. बचपन से ही कुशाग्र बुद्धि के जयबहादुर सिंह आगे की पढ़ाई के लिए काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में दाखिला लिये. वहां मदनमोहन मालवीय के साथ छूआछूत खत्म करने आदि सामाजिक कार्यो में लगे रहे. वे अपने मिलनसार स्वभाव के कारण छात्रों में लोकप्रिय रहे.

Jaibahadur singh1930 के दशक में आजादी का आंदोलन अपने उरोज पर था. भगत सिंह की शहादत ने नौजवानों के अन्दर हलचल पैदा कर दी थी. तरूण जयबहादुर पर भी इसका असर पड़ा. उत्तर प्रदेश में इलाहाबाद आजादी के आंदोलन का प्रमुख केन्द्र था. एक तरफ नरमपंथी कांग्रेंस था, तो दूसरी तरफ गरम दल के क्रांतिकारी. उसी दौरान चन्द्रशेखर आजाद अल्फ्रेड पार्क में पुलिस से मुकाबला करते हुए शहीद हो गये थे.

इन घटनाओं ने जयबहादुर सिंह के मन को उद्वेलित कर दिया. वे इलाहाबाद विश्वविद्यालय में अपना दाखिला करा लिये. तब तक वे देश के लिए कुछ कर गुज़रने का मन बना चुके थे. अब जयबहादुर सिंह के दिल में साफ था कि मुल्क को गुलाम बनाये अंग्रेजों को 7 समुन्दर पार भेजना है.

जयबहादुर सिंह को इलाहाबाद आने पर क्रान्तिकारी संगठन एच.एस.आर.ए. (हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन आर्मी) के नये नेता झारखंण्डे राय के बारे में पता लगा, जो जयबहादुर सिंह के पड़ोसी गांव अमिला के थे. मई 1936 में जयबहादुर सिंह प्रतिज्ञा-पत्र पर अपने खून से हस्ताक्षर करके बकायदा क्रांतिकारी गुट के सदस्य बन गये. अब जयबहादुर सिंह क्रांन्तिकारी जयबहादुर सिंह बन चुके थे और पूरे जोश व हिम्मत से संगठन के काम में जुट गये थे.

संगठन चलाने के लिए धन की बहुत ज़रूरत थी. हथियार आदि खरीदना था, जिसके लिए सरकारी खजाना लूटे जाने का कार्यक्रम बना. जयबहादुर सिंह के नेतृत्व में ट्रेन से जा रहे सरकारी खजाने को पिपरीडीह और दुल्लहपुर स्टेशन के बीच नियत स्थान पर ट्रेन रोक कर लूट लिया गया. इनके साथ झारखण्डे राय (बाद में मंत्री व सांसद बनें), मुक्तिनाथ उपाध्याय, कृष्णदेव राय, जामिन अली आदि थे. इससे ब्रिटीश हुकूमत सकते में आ गयी क्योंकि यह काकोरी काण्ड की पुनरावृत्ती थी.

पुलिस सभी अभियुक्तों को गिरफ्तार करने लगी लेकिन जयबहादुर सिंह नहीं पकड़े गये. जिससे अंग्रेजों ने जयबहादुर सिंह का पैतृक घर फूंक दिया.

इस सफलता को देखते हुए विंध्याचल के पास जंगल में ट्रेन से जा रहा सरकारी खजाना को लूटने की योजना बनी. जिसके लिए जयबहादुर सिंह वाराणसी से ट्रेन द्वारा इलाहाबाद के लिए जा रहे थे. जिसके बारे पुलिस को कही से सुराग लग गया और रामबाग में गिरफ्तार कर लिए गये. इस केस का मुक़दमा गाजीपुर जिला न्यायालय में चला. जिसके लिए जयबहादुर सिंह को 9 वर्ष 6 माह कठोर कारावास की सजा हुई.

जयबहादुर सिंह के जेल में रहने के बावजूद भी ब्रिटीश हुकूमत को शंका था कि वे कभी भी गड़बड़ी फैला सकते हैं. इसलिए उन्हें फतेहगढ़ सेन्ट्रल जेल भेज दिया गया. यहीं मशहूर वामपंथी नेता एसजी सरदेसाई भी बंद थे. सरदेसाई के संपर्क में आकर जयबहादुर सिंह माक्र्सवाद से प्रभावित हुए और माक्र्सवादी पुस्तकों का अध्ययन करने लगे. अब जयबहादुर सिंह क्रान्तिकारी के साथ-साथ कम्युनिस्ट बन गये. अंग्रेज शोषकों के साथ-साथ शोषित किसान-मजदूरों को भीतरी शोषण से मुक्त कराने के लिए संघर्ष छेड़ दिया.

सन् 1946 के अप्रैल माह में जूल से छूटने के बाद जयबहादुर सिंह कम्युनिस्ट पार्टी में शामिल हो गये. पूर्वी उत्तर प्रदेश को कार्यक्षेत्र बनाकर किसान-मजदूरों को संगठित कर हरी, बेगारी नजराना और बेदखली के खिलाफ आंदोलन छेड़ दिया. इसके पहले अपने परिवार द्वारा आम जनता से लिए जाने वाला नजराना को बन्द कराया. जो पूरे क्षेत्र में चर्चा का पर्याय बन गया.

उनके आंदोलन से ज़मीनदारों में गुस्सा फैल गया क्योंकि जयबहादुर सिंह ज़मीनदार के लड़के थे. जयबहादुर सिंह अपने संघर्ष के बदौलत थोड़े दिनों में ही पूरे क्षेत्र में लोकप्रिय हो गये और किसान-मजदूरों के मसीहा के रूप में जानें जाने लगे.

स्वतंत्रता के बाद जयबहादुर सिंह का शोषित पीडि़त जनता के लिए संघर्ष तत्कालीन मुख्यमंत्री गोविन्द बल्लभ पंत को रास नहीं आया. जिससे जयबहादुर सिंह को भारत सुरक्षा कानून के तहत गिरफ्तार कर लिया गया. जहां जय बहादुर सिंह स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान जेल गये वहीं आजादी के बाद भी जेल से नाता नहीं टूटा और कई बार जेल गये.

जय बहादुर सिंह सन् 1958 में आज़मगढ़-बलिया स्थानीय निकाय क्षेत्र से भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी से एमएलसी चुनें गये. फिर 1962 के आम चुनाव में घोसी लोकसभा क्षेत्र से सांसद का चुनाव जीतें. तब से आजीवन एमपी रहे.

जय बहादुर सिंह हिन्दी सहित सभी भाषाओं के पक्षधर थे. उर्दू भाषा के साथ हो रहे पक्षपात से वे व्यथित थे. उनका मानना था कि आजादी के संघर्ष में उर्दू के शायरों, लेखको और कवियों ने अपनी रचनाएं रच कर आजादी के संघर्ष को गति दी. उर्दू के साथ हो रहे भेदभाव नीति के विरोध में और उर्दू को दूसरी राज्य भाषा बनाने के मांग को लेकर खराब स्वास्थ्य  होने से चिकित्सको के सलाह को दरकिनार करते हुए 1967 में लखनउ विधानसभा के सामने भूख हड़ताल पर बैठे, जो उनके लिए जानलेवा साबित हुआ. अन्तः दिल्ली में 9 अगस्त 1967 को अचानक तबीयत खराब हुई और डाक्टर के आते-आते दम तोड़ दिये. अन्तः जीवन पर्यन्त संघर्ष करने वाला क्रांतिकारी इस दुनिया को अलविदा कह के चला गया. जयबहादुर सिंह शहीदे उर्दू का के खिताब से नवाजा गया.

जिस जयबहादुर सिंह ने संघर्ष के लिए अपना जीवन न्यौंछावर कर दिया, उसके साथ सरकार और प्रशासन ने कैसा सलूक किया? इनके गांव के लोगो ने पूर्व माध्यमिक विद्यालय का नाम इनके नाम पर करने का मांग किया, लेकिन नहीं हुआ. जयबहादुर सिंह की मूर्ति 2005 से जिलाधिकारी कार्यालय मउ के परिसर में अनावरण का इंतजार कर रही है लेकिन किसी को इस महापुरूष की याद नहीं है. जब महापुरूषों के साथ एैसा बर्ताव है तो समाज का क्या होगा?

TAGGED:jaibahadur singh
Share This Article
Facebook Copy Link Print
What do you think?
Love0
Sad0
Happy0
Sleepy0
Angry0
Dead0
Wink0
“Gen Z Muslims, Rise Up! Save Waqf from Exploitation & Mismanagement”
India Waqf Facts Young Indian
Waqf at Risk: Why the Better-Off Must Step Up to Stop the Loot of an Invaluable and Sacred Legacy
India Waqf Facts
“PM Modi Pursuing Economic Genocide of Indian Muslims with Waqf (Amendment) Act”
India Waqf Facts
Waqf Under Siege: “Our Leaders Failed Us—Now It’s Time for the Youth to Rise”
India Waqf Facts

You Might Also Like

IndiaLatest NewsLeadYoung Indian

OLX Seller Makes Communal Remarks on Buyer’s Religion, Shows Hatred Towards Muslims; Police Complaint Filed

May 13, 2025
IndiaLatest NewsLeadYoung Indian

Shiv Bhakts Make Mahashivratri Night of Horror for Muslims Across India!

March 4, 2025
Edit/Op-EdHistoryIndiaLeadYoung Indian

Maha Kumbh: From Nehru and Kripalani’s Views to Modi’s Ritual

February 7, 2025
HistoryIndiaLatest NewsLeadWorld

First Journalist Imprisoned for Supporting Turkey During British Rule in India

January 5, 2025
Copyright © 2025
  • Campaign
  • Entertainment
  • Events
  • Literature
  • Mango Man
  • Privacy Policy
Welcome Back!

Sign in to your account

Lost your password?