गांधी की ‘लाठी’ खतरे में, हमेशा के लिए गिरा देने की साज़िश

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Afroz Alam Sahil for BeyondHeadlines

जिस धरती से गाँधी ने पूरी दुनिया को अहिंसा का संकेत दिया था आज उसी पर हिंसा की राजनीतिक फसल काटी जा रही है. उनकी हत्या करने वाले लोगों के विचारों ने अब इस धरती पर अपना जाल फैला दिया है.

यही कारण है कि ये सांप्रदायिक शक्तियाँ बार-बार गांधी की प्रतिमाओं पर हमला कर रहे हैं. फिलहाल उनकी लाठी गायब कर दी गई है. आगे उनकी पूरी प्रतिमा खतरे में है.

इस संबंध में गांधी संग्रहालय कमिटी, मोतिहारी के सचिव ब्रज किशोर सिंह ने एक पत्र लिखकर पूर्वी चम्पारण, मोतिहारी के  ज़िला अधिकारी व बापूधाम मोतिहारी रेलवे स्टेशन के स्टेशन सुप्रीटेंडेंट को बताया है कि 15 अप्रैल, 1917 को पहली बार गांधी मोतिहारी स्टेशन आए थे. और यहीं से चम्पारण सत्याग्रह की बिगुल फूंकी थी. उसी आगमन की याद में एक पूर्व रेलवे मंत्री द्वारा गांधी की एक प्रतिमा स्टेशन के बाहर स्थापित किया गया था. और अब कुछ असामाजिक तत्व गांधी के प्रतिमा की लाठी गायब कर दिए हैं और कई बार तोड़-फोड़ की गई है. ऐसे में इसके सुरक्षा की गुहार उन्होंने ज़िला अधिकारी से लगाई है.

इससे पूर्व इंसान इन्टरनेशल फाउंडेशन ने भी भारत के राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी, प्रधानमंत्री  डॉ. मनमोहन सिंह, बिहार के मुख्यमंत्री नीतिश कुमार, देश के संस्कृति मंत्री चंद्रेश कुमारी और गांधी स्मृति व दर्शन समिति के तारा गांधी भट्टाचार्यजी को पत्र लिखकर कि गांधी से जुड़े धरोहरों पर नाजायज़ कब्ज़े की जानकारी दी थी और बताया था कि किस प्रकार गांधी आश्रम की ज़मीन लोगों ने हड़प ली है. यही नहीं, मोतिहारी गांधी संग्रहालय से अमर जवान की मूर्ति गायब होने की भी जानकारी दी गई थी. और बताया था कि किस प्रकार गांधी के विचारों की हत्या करने वाले लोग दो साल पहले पूर्वी चंपारण के पकड़ीदयाल में अनुमंडल मुख्यालय चौक से मधुबनी घाट जाने वाली सड़क पर स्थित गांधी स्मारक से गांधी की प्रतिमा को उखाड़ कर फेंक दिया था. लेकिन इंसान इन्टरनेशल फाउंडेशन के इस पत्र पर अब तक कोई कार्रवाई नहीं की गई.

ऐसे में बहुत आसानी से समझा जा सकता है कि किस प्रकार गांधी के नाम पर राजनीति करने वाले अब कास्ट, क्राइम और कैश की राह पर चल पड़े हैं. उग्र विचारधाराओं के प्रचार तंत्र ने गांधीवाद को उसकी कर्मभूमि में ही पराजित कर दिया है. उग्रवाद ही नहीं, स्वार्थपरता भी चम्पारण में अहिंसा के महानायक को चुनौती दे रही है.

स्पष्ट रहे कि भारत के स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में चम्पारण सत्याग्रह (1917) की बड़ी अहम भूमिका रही है. गांधी जी ने खुद बार-बार यह स्वीकार किया है कि चम्पारण ने ही उन्हें हिन्दुस्तान से परिचित कराया. सच पूछे तो गांधी जी को अपने सत्य आधारित अहिंसक हथियार के प्रयोगों के लिए कर्मभूमि भी चम्पारण में ही प्राप्त हुई और यहां की उपलब्धियों ने भारत के राजनैतिक क्षितिज पर उभरने में उन्हें बड़ा योगदान दिया.

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