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बेगुनाहों की रिहाई के लिए उठी मशाल

BeyondHeadlines News Desk

लखनऊ : अनिश्चित कालीन धरना के 117 वें दिन रिहाई मंच के अध्यक्ष मोहम्मद शुऐब ने कहा कि रिहाई की यह मशाल उन बेगुनाहों के नाम हैं जिनको इंसाफ देने से पहले ही सत्ताधारियों, पुलिस और आईबी के गठजोड़ ने कत्ल कर दिया. मौलाना खालिद की हत्या के बाद 22 मई 2013 से हम धरने पर बैठे हैं. यह धरना आतंक की उस राजनीति के खिलाफ है जिसने गुजरात में इशरत जहां, सादिक जमाल मेहतर, दिल्ली के बाटला हाउस में मारे गए आज़मगढ़ के साजिद और आतिफ, महाराष्ट्र की पुणे की जेल में बंद बिहार दरभंगा निवासी कतील सिद्दीकी से होते हुए खालिद मुजाहिद की हत्या तक पहुंचा, उस कातिल हाथों को नेस्तानाबूत करने के संकल्प के साथ चल रहा है.

Rihai Manch Indefinite dharna to bring Khalid Mujahid's killers to justice completes 117 Daysरिहाई की मशाल उस काले कानून के खिलाफ है और उन सभी बेगुनाहों के साथ हैं जो कहीं मुस्लिम होने के नाते आतंकवाद, तो कहीं आदिवासी होने के नाते माओवाद के आरोप में बंद हैं. इंसाफ की इस जंग में शहादतों का दौर भी जारी है और हमने ठाना है कि शहादत तक यह जंग लड़ी जाएगी. हम प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव से कहना चाहेंगे कि वो वादे के मुताबिक आतंकवाद के नाम पर कैद बेगुनाहों की रिहाई और मरहूम खालिद मुजाहिद और तारिक कासमी की बेगुनाही का सबूत निमेष कमीशन पर मानसून सत्र में अमल करें.

उन्होंने कहा कि पिछले डेढ़ साल के सपा राज में जिस तरह से प्रदेश में कोसी कलां, अस्थान प्रतापगढ़, फैजाबाद होते हुए जो सांप्रदायिकता की आग मुजफ्फर नगर और आस पास के जिलों में लगी उसने साफ कर दिया है कि प्रदेश सरकार इन दंगों के सहारे 2014 की चुनावी वैतरणी को पार करने की कोशिश कर रही है. लेकिन जिस तरीके से पिछले दिनों परिक्रमा के सवाल पर जनता ने मुलायम और सिंघल के बीच हुए सांप्रदायिक समझौते को नकारते हुए प्रदेश में शांति व्यवस्था बरक़रार रखी उसने साफ कर दिया है कि अब जनता हिंदू और मुस्लिम नहीं बल्कि अपने हक़ और इंसाफ के लिए लड़ेगी.

इंडियन नेशनल लीग के राष्ट्रीय अध्यक्ष मोहम्मद सुलेमान ने कहा कि आतंकवाद के नाम पर कैद बेगुनाहों की रिहाई को लेकर शुरु हुआ यह रिहाई आंदोलन आज समाज के हर उस वंचित तबके को जबान दे दिया है जिसके साथ अन्याय हो रहा है. यह पूरा आंदोलन उस पूंजीवादी राजनीति के खिलाफ है जिसने लोकतंत्र को कैद कर लिया है. किसी बेगुनाह का जब कत्ल होता है तो वह लोकतंत्र का कत्ल होता है.

आज जब रिहाई आंदोलन के दबाव में आकर सरकारें यह कह रही हैं कि आतंकवाद के नाम पर बेगुनाह मुस्लिम नौजवान कैद हैं तब बड़ा सवाल उठता है कि हम किस निजाम में सांस ले रहे हैं जहां बेगुनाह जेलों में हैं. अखिलेश यादव पिछले 31 अगस्त 2012 से आरडी निमेष कमीशन की रिपोर्ट को दबाए रखे और दोषी पुलिस व आईबी के हौसले को इतने बुलंद कर दिए कि उन लोगों ने हमारे बेगुनाह बच्चे का कत्ल कर दिया. हम मुख्यमंत्री से कहना चाहेंगे कि आरडी निमेष रिपोर्ट कागज के चंद पन्ने नहीं हैं वो एक हकीक़त है जिसे मुसलमान जानता है और झेलता चला आ रहा है. आज वो इंसाफ मांग रहा है, यह इंसाफ उस बेगुनाह बच्चे के लिए है जिसे कत्ल कर दिया पर आज भी उस पर आतंक का ठप्पा बेगुनाह होने के बाद भी लगा है.

उन्होंने कहा कि हम उन सभी लोगों के साथ हैं जो हमारी इस इंसाफ की जंग में हमारे साथ रहे हैं. पिछले दिनों माओवाद के नाम पर गिरफ्तार प्रशांत राही, जीएन सांई बाबा और हेम मिश्रा जो की हक़ और अधिकारों के लिए लड़ते थे हम उनको तत्काल रिहा करने की पुरजोर मांग  करते हैं.

आज़मगढ़ रिहाई मंच के प्रभारी मसीहुद्दीन संजरी, इलाहाबाद रिहाई मंच के प्रभारी राघवेन्द्र प्रताप सिंह और तारिक शफीक ने कहा कि आतंकवाद के नाम पर मारे गए हमारे आज़मगढ़ के बच्चों साजिद और आतिफ की बाटला हाउस में हत्या के बाद जिस तरीके से पूरे आज़मगढ़ को आतंक के नाम पर बदनाम करते हुए मुस्लिम युवाओं को निशाना बनाया गया. हमारे गांव संजरपुर समेत आज़मगढ़ के लोगों के साथ जब आतंक के नाम पर कहर बरपाया जा रहा था तो उस दौर में भी हमने अपने शोक को संकल्प में तब्दील कर इंसाफ की इस जंग में शामिल हुए.

आज बेगुनाहों की रिहाई के लिए उठी यह रिहाई मशाल देश में आतंकवाद के नाम पर राजनीति करने वालों के लिए खिलाफ उठी है और जब तक हमें इंसाफ मिल नहीं जाता हमारे जो बच्चे मार दिए गए हैं वो तो आ नहीं सकते पर उनके और हमारे जो बच्चे जेलों में बंद हैं या कुछ को खुफिया एजेंसियों ने गायब कर रखा है जब तक अपने घरों तक नहीं पहुंच जाते तब तक रिहाई की यह मशाल जलती रहेगी.

कल 16 सितंबर से शुरू हो रहे विधानसभा सत्र में बेगुनाहों की रिहाई, निमेष आयोग की कार्यवाही रिपोर्ट और प्रदेश में घटित दंगों के मुद्दों पर विभिन्न राजनैतिक दलों के रुख और सभी मुस्लिम विधायकों और मंत्रियों की कारकर्दगी पर नज़र रखेंगे और उसे जनता के बीच में ले जाएंगे.

मशाल मार्च में शामिल होने के लिए झारखण्ड से आये सामाजिक कारकून मुन्ना कुमार झा ने कहा कि पूरे देश के अंदर माओवाद और आतंकवाद के के नाम पर जल, जंगल और ज़मीन से जुड़े अधिकारों की लड़ाई लड़ रहे आदिवासियों एवं वंचित तबकों को सरकारों और टाटा जिंदल द्वारा कत्लेआम किया जा रहा है. आज जिस तरह से बेगुनाहों की रिहाई के लिए यह मशाल जलाई गयी है उसकी लपटें आदिवासियों के खिलाफ चलाये जा रहे आपरेशन ग्रीन हंट, ऑपरेशन कोबरा जैसे राज्यसत्ता द्वारा प्रायोजित पूंजीवादी नीतियों को खाक कर देंगे.

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