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BeyondHeadlines > Lead > मौत के मुंह से निकले फरहाना की कहानी, उसी के ज़ुबानी…
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मौत के मुंह से निकले फरहाना की कहानी, उसी के ज़ुबानी…

Beyond Headlines
Beyond Headlines Published September 10, 2013 2 Views
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7 Min Read
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Farhana Riyaz for BeyondHeadlines

हमने सुना था कि ज़िन्दगी उस्ताद से ज़्यादा सख्त होती है. उस्ताद सबक़ देकर इम्तहान लेता है, लेकिन ज़िन्दगी इम्तहान लेकर सबक़ देती है.

मेरी ज़िन्दगी में भी इम्तहान के बहुत सारे पल आए और बेशुमार सबक़ देकर चले गए. मुझे पढ़ने का बहुत शौक़ था. पढ़ाई के दौरान जिस प्रतियोगिता में हिस्सा लिया, हमेशा सफलता मिली. मुझे स्कूल की सर्वश्रेष्ठ वक्ता व सर्वश्रेष्ठ विद्यार्थी का अवार्ड भी मिला. मेरी ख्वाहिशें डॉक्टर या जर्नलिस्ट बनने की थी, लेकिन ज़रूरी नहीं कि जैसा हम सोचते हैं, वैसा ही कुछ हो. हम सोचते कुछ हैं और हो कुछ और जाता है.

अल्लाह ने मुझे बहुत अच्छी सेहत से नवाजा था. लेकिन जब मैं 10वीं कक्षा में आई तो मेरे पैरों में दर्द रहने लगा. घर वालों ने डॉक्टर को दिखाया. कुछ दवाएं ली गई, लेकिन धीरे-धीरे समस्याएं बढ़ती चली गई. और दुबारा जांच करने पर डॉक्टर्स ने बताया कि घुटने की हड्डी बढ़ गई है, इसके लिए ऑपरेशन करवाना होगा.

डॉक्टर्स के कहने पर ऑपरेशन करवाया गया. ऑपरेशन कामयाब हुआ. 4 महीने के बेड-रेस्ट के बाद हम दुबारा चलने लायक हुए. लेकिन अचानक एक दिन पैर फिसल कर गिर जाने से वही समस्या दुबारा शुरू हो गई. डॉक्टर ने फिर से ऑपरेशन को कहा. फिर दुबारा ऑपरेशन करवाया गया. फिर से हम धीरे-धीरे चलने लायक हुए.

लेकिन कुदरत ने कुछ और ही लिखा था. एक दिन फिर पैरों के मसल्स में खिंचाव आ जाने से फिर हम गिर पड़े. और दुबारा फिर से वही समस्या उत्पन्न हो गई.

फिर से डॉक्टर को दिखाया गया. डॉक्टर ने इस बार बताया कि मेरे पैर की हड्डियां गल रही हैं. शायद मुझे बोन टीवी या बोन कैंसर हो गया है. जबकि जांच के सारे रिपोर्टस नॉर्मल थे. लगातार महंगी-महंगी दवाईयां लेने पर भी कोई फायदा नहीं हुआ.

डॉक्टर्स ने मना कर दिया कि हमारे पास इसका कोई इलाज नहीं है. आप इसको लेकर कहीं और जाईए. इसके बाद हम कई डॉक्टर्स, फिजीयोथेरेपिस्ट, होमियोपैथी, आयुर्वैदिक डॉक्टर्स… हर जगह गए. लेकिन मेरी स्थिति को देखकर सब हमें लाइलाज कहकर मना कर देते थे. अब मेरी हालत इतनी खराब हो चुकी थी कि मेरे हाथ पैर बहुत कम काम करने थे. 2 मिनट की दूरी 30 मिनट में तय कर पाती थी.

फिर एक वैध ने मेरा इलाज करना शुरू किया. इलाज की व्यवस्था घर पर ही की गई. पानी को गर्म करते हुए उसमें जड़ी-बूटियां डालकर उसकी भांप मेरे शरीर को दी जाती थी. इसी दौरान जिस चारपाई पर मैं लेटी हुई थी, उसमें आग लग गई. किसी तरह से मुझे बचा लिया गया. लेकिन मेरा हाथ बूरी तरह से जल गया और उस हाथ ने भी काम करना बंद कर दिया.

उसके बाद मेरे वालिद ने मौलाना, पंडित, ज्योतिषी और न जाने किस किस को दिखाया, लेकिन किसी के पास मेरा इलाज नहीं था. मेरे जिस्म ने बिल्कुल काम करना बंद कर दिया. सिर्फ मेरी गर्दन हिलती थी. मैं सारे वक़्त लेटी रहती थी. मैंने अपनी ज़िन्दगी के 7 साल चारपाई पर जिन्दा लाश की स्थिती में गुज़ारे. हर वक़्त लेटे रहने से अब मेरे पीठ में ज़ख्म हो गए थे.

मेरे घर के सारे लोग मेरी वजह से परेशान थे. हर वक्त उनकी आंखों में आंसू होते. लोगों ने उन्हें काफी हतोत्साहित किया. काफी सारी निगेटिव बातें भी बोली. लेकिन कभी किसी ने मेरा साथ नहीं छोड़ा. मैं अक्सर उन्हें समझाती थी कि आप लोग परेशान मत होइए. ऊपर वाला किसी को भी उसके बर्दाश्त की हद तक ही आजमाता है. मुझे उम्मीद है कि मैं एक दिन ज़रूर अपने पैरों पर दुबारा चलना शुरू करूंगी. आप सबकी दुआ बेकार नहीं जाएगी. एक दिन ज़रूर रंग लाएगी. मेरे लिए मेरे वालिद हज को गए. वहां मेरे लिए खूब सारी दुआएं की. लौटते वक्त अपने ‘आब-ए-ज़मज़म’ लाएं.

मैंने किताबों में पढ़ा था कि  ‘आब-ए-ज़मज़म’ में बहुत शिफ़ा है. मेरी मां अपने हाथों से ‘आब-ए-ज़मज़म’ मेरे हाथों पर लगाया करती. मैं उसे पीकर हर रोज़ अपने शिफा के लिए अल्लाह से दुआएं करती. हम सबकी दुआओं का असर अब दिखने लगा था. धीरे-धीरे मेरे हाथ काम करने लगे. और फिर मैं बैठने के काबिल हो गई. अब हमारी कोशिश अपने पैरों पर खड़ा होने की थी. मेरी यह कोशिश भी रंग लाई और मैं अपने पैरों पर खड़ा होने लगी. धीरे-धीरे चलना भी शुरू कर दिया.

खुदा का शुक्र है कि अब मैं काफी बेहतर हालात में हूं. अपने सारे काम खुद करती हूं. घर के कामों में अपनी मां का हाथ बटाती हूं. और अब फिर से अपनी पढ़ाई शूरू करने के साथ-साथ अपने मुहल्ले के गरीब बच्चों को फ्री ट्यूशन देना भी शुरू कर दिया है.

खुदा का शुक्र है कि बी.ए. प्रथम वर्ष की परीक्षा में 66 फीसदी नम्बर हासिल किए हैं. द्वितीय वर्ष के रिजल्ट का इंतज़ार है. रब से दुआ है कि वो मेरे मक़सद में कामयाब करे.

आखिर में आप सब से यही कहूंगी कि ज़िन्दगी में कितना भी कठिन परिस्थिति क्यों न हों, आप हिम्मत मत हारिए. झटके लगने के बाद भी अपना मनोबल ऊंचा बनाए रखना चाहिए. उपर वाले से दुआ और खुद पर विश्वास होना चाहिए, क्योंकि उपर वाला भी उन्हीं की मदद करता है, जो अपनी मदद खुद करते हैं.

जिसको तुफां से उलझने की हो आदत

ऐसी कश्ती को समन्दर भी दुआ देता है

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