Abhishek Upadhyay for BeyondHeadlines
अरसे से सोच रहा हूं कि क्या आसाराम बापू का एक भी भक्त ऐसा होगा, जिसका इन तमाम विवादों के बावजूद उन पर से यकीन उठा होगा? एक भी भक्त? जो उनको बलात्कारी, व्याभिचारी, भ्रष्ट…ब्ला..ब्ला..ब्ला…. मानने को तैयार होगा? मुझे लगता है कि शायद एक भी नहीं! उल्टे वे सोच रहे होंगे कि बापू के साथ कितनी बड़ी साजिश हुई! कितने बड़े अन्याय के शिकार हुए हैं बापू! भगवान नरक की आग में तपाएगा इन कमीनों को! इन साजिश करने वालों को! तिल तिल कर मरेंगे साले सब! और न जाने क्या क्या…
ये है इस देश में धर्म का प्रभाव… यही है धर्म का असर… ये देश तो धर्म से ही चलता है… ये देश धर्म से ही चलता आया है… ये देश धर्म से ही चलेगा भी… सवाल सिर्फ इतना है कि आखिर कौन सा धर्म? इस देश में किस धर्म पर यकीन किया जाएगा? क्या वो धर्म जिसकी उपासना स्वामी विवेकानंद और आचार्य श्रीराम शर्मा जैसे संत करते आए थे? जिसके बारे में स्वामी विवेकानंद ने कहा था – “मैं उस धर्म और ईश्वर में विश्वास नहीं करता, जो विधवा के आंसू पोछने या अनाथों को रोटी देने में असमर्थ हैं.”
जिसके लिए नरेंद्र ने पूछा था- “तुम्हें ईश्वर को ढूंढने कहां जाना है? क्या गरीब, दुखी और निर्बल ईश्वर नहीं हैं पहले उन्हीं की पूजा क्यूं नहीं करते. तुम गंगा के किनारे खड़े होकर कुआं क्यों खोदते हो?”
जो आचार्य श्रीराम शर्मा के शब्दों में यूं गूंजता था कि “अपने को मनुष्य बनाने का प्रयत्न करो , यदि इसमें सफल हो गए तो हर काम में सफलता मिलेगी.”
वास्तव में धर्म का प्रचार विवेकानंद ने भी किया, आचार्य श्रीराम शर्मा ने भी किया और धर्म का घंटा अपने गले में बांध कर उसका ढिंढोरा आसाराम ने भी पीटा. मगर विवेकानंद विवेकानंद हैं… आचार्य श्रीराम शर्मा, आचार्य श्रीराम शर्मा हैं और आसाराम आसाराम हैं.
इतिहास किरदार तय कर देता है. विवेकानंद का धर्म आम जनमानस का धर्म है. आचार्य श्रीराम शर्मा का धर्म दरिद्रों, गरीबों और निसहायों की सेवा का धर्म है. जबकि आसाराम का धर्म हजार करोड़ के आश्रमों, बेटे, बेटी और पत्नी के नाम करोड़ों की जायदाद और आस्था के नाम पर कच्ची उम्र की लड़कियों के भोग का धर्म है. इस देश की जनता धर्म में जीती है, धर्म को जीती है. ये उस जनता का दुर्भाग्य है कि उसे धर्म के नाम पर आसाराम का ज़हर पिलाया जा रहा है और उससे बड़ा दुर्भाग्य यह है कि जिन पर विवेकानंद और आचार्य श्रीराम शर्मा के दिए अमृत को बांटने की जिम्मेदारी थी, उन्होंने धर्म को पैसा पीटने की मशीन बना लिया है और जमकर पैसा पीटे जा रहे हैं. सुबह… शाम… दिन… रात… बस एक ही काम. वो भी धर्म के नाम पर…
देश-विदेश में प्रापर्टी खरीदे जा रहे हैं. आम जनता को माया से दूर रहने का उपदेश देने वाले ये धर्मात्मा संत आज हजारों करोड़ों की मायावी सुरंग में समाधिस्थ हो चुके हैं. ऐसे में आसाराम के मानने वालों का विश्वास हिलाए भी कौन? टीवी चैनलों के पास ये ताकत कहां?