BeyonHeadlines News Desk
दिल्ली सरकार ने 95 झुग्गी बस्तियों को राजीव रतन आवास योजना के तहत उजाड़ कर बहुमंजिली आवास में पुनर्वास करने का फैसला लिया है, इस योजना के तहत अलग अलग इलाकों से झुग्गियों को उजाड़ कर बवाना, भोरगढ़, नरेला, द्वारका एवं बापरोला जैसे दूर के इलाके में बसाया जायगा. यूं तो सुनने में बहुत अच्छा लगता है कि झुग्गी बस्तियों से हटा कर बहुमंजिली ईमारत में बसाये जाने से ज़िन्दगी बहुत बेहतर हो जायगी, लेकिन सरकार की इस उजाड़-पुनर्वास प्रक्रिया में कई बड़ी बड़ी समस्याओं का सामना लोगों को करना पड़ता है जिसे नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता.
1. बड़ी संख्या में दस्तावेज़ की कमी के नाम पर लोगों का पुनर्वास नहीं होता है एवं लोग बेघर होते हैं.
2. घर के वह सभी सामान जिसे मजदूरी कर दो दो पैसे जोड़ कर बरसों में ख़रीदा गया था अधिक तर बुलडोज़र से टूट जाते हैं या बर्बाद हो जाते हैं.
3. जहाँ पुनर्वास होता है वहाँ रोज़गार का कोई इंतज़ाम नहीं होने के कारण ज़िन्दगी आर्थिक तंगियों से घिर जाती है.
4. पुनर्वास का असर महिलाओं पर इस प्रकार पड़ता है कि परिवार के लोगों को जिंदा रखने का दोगुना बोझ आ पड़ता है.
4. स्कूल जा रहे बच्चों का साल के बीच में अचानक घर का उजड़ जाना एवं 25-30 किलो मीटर दूर भेज दिए जाने से बच्चों की पढाई कई सालों के लिए रुक जाती है या हमेशा के लिए ख़त्म हो जाती है.
इसके अलावा और भी बहुत सी छोटी छोटी समस्याएं हैं, जिसका सामना लोगों को पुनर्वास के दौरान या उसके तुरंत बाद करना पड़ता है. इन समस्याओं के अलग अलग पहलुओं पर काम करने वाले साथी संगठन अपनी-अपनी पहल कर रहे हैं जिसके साथ खड़े होने की ज़रूरत है.
पिछले 10 – 15 सालों के दौरान हुए पुनर्वासित युवाओं के साथ काम करने से उनकी ज़िन्दगी के बहुत कडवे अनुभव हमारे सामने हैं. ये वही युवा हैं जिनका घर टूटा, दोस्त छूटे, पढ़ाई छूटी, और अगर पढ़ाई जारी रखने की कोशिश की तो किन किन मुसीबतों का सामना करना पड़ा. इन युवाओं को खेलकूद, कला और अन्य गतिविधियों के माध्यम से दोबारा आम ज़िन्दगी में वापस लाने की हमारी कोशिश लगातार जारी है. पुनर्वास के दौरान एवं उसके बाद युवाओं का शिक्षा के क्षेत्र में क्या अनुभव रहा है उसे बयाँ करने आ रहे हैं बवाना, भलस्वा, पप्पन कला, सावदा एवं रोहिणी के पुनर्वासित युवा जिन्हें पुनर्वास के नाम पर किन किन समस्याओं का सामना करना पड़ा है.
बवाना, भलस्वा, पप्पन कला, सावदा एवं रोहिणी के ये पुनर्वासित युवा अपनी आप बीती बयान करेंगे ताकि यह बात सामने आ सके कि शिक्षा के क्षेत्र में पुनर्वास के क्रम में क्या होता है. यह युवा नहीं चाहते कि जो उनके साथ हुआ वह दोबारा इन 95 झुग्गी बस्तियों के हजारों बच्चों के साथ हो. इन युवाओं की आपबीती के बाद चर्चा होगी कि इस मुद्दे पर क्या पहल लिए जाए. देश में शिक्षा का अधिकार कानून लागू है, ये सरकार की ज़िम्मेदारी है कि बच्चों का स्कूल न छूटे, सरकार अपने पुनर्वास प्रक्रिया पर पुनर्विचार करे एवं सही पहल ले.
आप भी 9 अक्टूबर (बुधवार) 2013 को 2.30 बजे दिन, एनएफ़आई (NFI) मीटिंग रूम, कोर – 4 ए, अपर ग्राउंड फ्लोर, आईएचसी (IHC), लोधी रोड, नई दिल्ली में आयोजित कार्यक्रम में सादर आमंत्रित हैं.