श्रीमान अध्यक्ष महोदय,
राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग
नई दिल्ली
महोदय,
मान्यवर को ज्ञात ही है कि पुलिस थानों में नागरिकों के साथ हिंसा और अभद्र व्यवहार होता है तथा मानव गरिमा का हनन होता है. स्मरणीय है कि ओंटारियो (कनाडा) के मानवाधिकार ट्रिब्यूनल ने एक प्रवासी व्यक्ति को बन्दर कहने पर भी हर्जाना दिलाया है, जबकि भारत में तो पुलिस द्वारा गाली-गलोज रोजमर्रा का काम है और उसका कोई संज्ञान तक नहीं लिया जाता है. इसके पीछे सामान्यतया कारण यह रहता है कि भारत में अंग्रेजी कालीन साक्ष्य सम्बंधित कानून पीड़ित के पक्ष में नहीं है और पीड़ित अपने पर थाने में किये गए अत्याचारों को प्रमाणित नहीं कर पाता, क्योंकि न तो कोई स्वतंत्र गवाह वहां उपलब्ध होता है और न ही ऐसा कोई साहस कर पाता है. भाईचारे के बंधन में बंधे पुलिसवाले भी किसी पीड़ित के पक्ष में गवाही देने को तैयार नहीं होते हैं. अत: रक्षक के स्थान पर भक्षक की भूमिका निभाने के बावजूद भी पुलिसवाले दंड से बच निकलते हैं.
थानों में घटित होने वाले उक्त घटनाक्रम का सही और सत्य रिकार्ड रखने के लिए आवश्यक है कि थानों में साइबर कैमरे लगाए जाएं. मेरा यह दृढ विश्वास है कि इस व्यवस्था से न केवल मानवाधिकारों की बेहतर प्रोन्नति होगी अपितु आपराधिक तत्वों के पुलिस से सांठगाँठ व पुलिस द्वारा झूठी दर्ज की गयी रोजनामचा आम से भी पर्दा उठ सकेगा. गुजरात राज्य में यह कार्य पर्याप्त पहले शुरू हो चुका है. अत: आपसे विनम्र अनुरोध है कि अधिनियम का धारा 12 (जे) में प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग करते हुए कृपया समस्त सरकारों को निर्देश प्रदान करने की अनुकम्पा करें कि वे एक वर्ष की अवधि में समस्त पुलिस थानों और चौकियों में विभिन्न स्थानों पर इस प्रकार साइबर कैमरे स्थापित करें कि थाने का समस्त स्थान कैमरे की नज़र से दूर न रहे.
मैं यह भी निवेदन करना चाहता हूँ कि इस व्यवस्था पर बहुत कम खर्च की आवश्यकता पड़ेगी और इसके अनुरक्षण का दायित्व किसी निजी एजेंसी को दे दिया जाय ताकि खराबी की शिकायत नहीं रहे. इस प्रसंग में आप द्वारा की गयी कार्यवाही को जानकर मुझे प्रसन्नता होगी.
भवनिष्ठ
मनीराम शर्मा