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मरहूम मौलाना खालिद से संबन्धित सूचनाओं को छुपा रही है सपा सरकार

BeyondHeadlines News Desk

लखनऊ : मरहूम मौलाना खालिद मुजाहिद के स्वास्थ्य संबन्धी विवरण की सूचना मांगने पर उनके सहअभियुक्त रहे कचहरी बम धमाकों के आरोप में गिरफ्तार किए गए तारिक़ कासमी को जिला जेल उन्नाव के अधिक्षक द्वारा यह कहना कि इसकी सूचना खालिद की सहमति के बिना नहीं दी जा सकती, पर रिहाई मंच के अध्यक्ष मोहम्मद शुऐब ने इसे गैरजिम्मेदाराना व अतार्किक कहा.

मोहम्मद शुऐब ने आश्चर्य व्यक्त करते हुए कहा है कि जो व्यक्ति अब इस दुनिया में नहीं रहा है उसे अब जिला जेल अधीक्षक उन्नाव द्वारा भेजा गया पत्र कैसे मिलेगा और इसका जवाब उन्हें कहां से प्राप्त होगा? उन्होंने आगे कहा कि जिला जेल अधीक्षक द्वारा जवाब देने से बचने के लिए जानबूझ कर ऐसा किया गया. उन्होंने कहा कि मोहम्मद तारिक़ कासमी द्वारा मांगी गयी सूचना उनके सह अभियुक्त से संबंधित है तथा जनसूचना अधिनियम की परिभाषा में पूर्ण रूप से आती है जिसको न उपलब्ध कराने का कोई कारण नहीं है.

उन्होंने कहा कि मरहूम मौलाना खालिद की हत्या से संबन्धित वो सूचनाएं जो सरकार के सामने खालिद की हत्या पर सवाल खड़े कर सकती हैं. उन्हें जान-बूझ कर सरकार के संरक्षण में छुपाया जा रहा है.

रिहाई मंच ने बताया कि उत्तर प्रदेश कचहरी ब्लास्ट के अभियुक्त मोहम्मद तारिक़ कासमी द्वारा जन सूचना अधिकार कानून के तहत अधीक्षक जिला कारागार उन्नाव से सूचना मांगी गई थी. खालिद मुजाहिद की मृत्यु संदेहास्पद स्थिति में 18 मई 2013 को फैजाबाद जेल अदालत से जिला जेल लखनऊ लाते हुए रास्ते में हो गयी थी. तारिक़ कासमी को भी रिहाई मंच के लोगों तथा अन्य की भांति खालिद मुजाहिद की मृत्यु पर दिये गये मुख्यमंत्री के बयान पर आश्चर्य हुआ था, जिसमें मुख्यमंत्री ने कहा था कि खालिद मुजाहिद की मौत बीमारी के कारण हुई.

मुख्यमंत्री के इस बयान से व्यथित होकर तारिक कासमी ने जिला जेल लखनऊ तथा जिला जेल उन्नाव के अधीक्षकों से पूछा था कि क्या खालिद मुजाहिद जेल में बीमार रहते थे और वहां पर उनका इलाज हुआ था? तारिक़ कासमी द्वारा मांगी गयी इस सूचना के जवाब में तारिक कासमी को सूचना देते हुए जेल अधीक्षक उन्नाव ने कहा है कि मांगी गयी सूचना तारिक कासमी से संबंधित न होकर खालिद मुजाहिद से संबंधित है इसलिए खालिद मुजाहिद की सहमति के बिना उत्तर नहीं दिया जा सकता और इस सूचना की एक प्रति खालिद मुजाहिद को उनके घर के पते पर मडि़याहूं जिला जौनपुर भेजा गया है.

यही नहीं, इससे पूर्व इंसान इंटरनेशनल फाउंडेशन ने भी ख़ालिद मुजाहिद की मौत से जुड़े तमाम तथ्य जनता के सामने लाने की कोशिश में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री कार्यालय व गृह-गोपन एवं कारागार प्रशासन से सूचना के अधिकार के तहत कुछ अहम सवालों के जवाब चाहे थे.

इंसान इंटरनेशनल फाउंडेशन ने ख़ालिद मुजाहिद की हत्या की सीबीआई जाँच का आग्रह पत्र, उनके परिवार को दिए गए मुआवज़े (जो मुख्यधारा की मीडिया की सुर्खियों में रहा) से संबंधित तमाम दस्तावेज़, तारिक़ क़ासमी और ख़ालिद मुजाहिद के ऊपर से मामले हटाए जाने के संबंध में फ़ैजाबाद की अदालत में दाख़िल किए गए दस्तावेज़ और विभिन्न संगठनों द्वारा सरकार को इनकी रिहाई के संबंध में लिखे गए दस्तावेज़ों की कॉपी माँगी थी. साथ ही फाउंडेशन ने बाराबंकी में हुए ख़ालिद मुजाहिद के पोस्ट मार्टम की रिपोर्ट की कॉपी तथा निमेष कमीशन की रिपोर्ट की अधिकारिक कॉपी (इस रिपोर्ट की गैर अधिकारिक कॉपी BeyondHeadlines के पास पहले से मौजूद है) भी माँगी थी. लेकिन यूपी सरकार और गृह विभाग ने बेहद सरल सवालों के जबाव देने के बजाए इनसे बचने की हर संभव कोशिश की.

जब आरटीआई आवेदन का तय समय में जबाव नहीं आया तो प्रथम अपील दायर की गई, जिसके बाद वक़्त ज़ाया करने की कोशिश में आवेदन को अन्य विभागों में प्रेषित कर दिया गया.

इंसान इंटरनेशनल फाउंडेशन की आरटीआई गृह विभाग के प्रमुख सचिव व मुख्यालय पुलिस महानिदेशक, उप सचिव गृह (पुलिस) अनुभाग, उत्तर प्रदेश और पुलिस महानिदेशक लखनउ जोन, लखनउ परिक्षेत्र के समस्त अपर पुलिस अधीक्षक के दफ़्तर, वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक फैज़ाबाद के दफ़्तर और लखनउ परिक्षेत्र व फैज़ाबाद के पुलिस उप महानिरीक्षक कार्यालय के चक्कर काटती रही.

वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक फैज़ाबाद ने अपना पल्ला झाड़ते हुए याचिका को पुलिस अधीक्षक बाराबंकी, सुल्तानपुर, अम्बेडकर नगर और अमेठी को प्रेषित कर दिया. एक दूसरे पर टालने का सिलसिला यहीं नहीं रूका. बल्कि आगे भी सभी अपने निचले दफ्तरों को भेजते रहें. पुलिस अधीक्षक अमेठी ने इस आरटीआई को थाना गौरीगंज, थाना मुन्शीगंज, थाना जामो, थाना अमेठी, थाना पीपरपुर, थाना संग्रामपुर, थाना जायस, थाना मोहनगंज, थाना शिवरतगंज, थाना फुरसतगंज, मुसाफिरखाना के सारे थाना प्रभारियों को भेज दिया. और जवाब में सबका कहना है कि उनके कार्यालय में सूचना शुन्य है.

दिलचस्प है कि बाराबंकी पुलिस निरीक्षक ने भी जवाब में बताया कि कोई सूचना उनके पास नहीं है. बस पोस्टमार्टम रिपोर्ट के बारे में कहा कि उसे रिकॉर्ड कीपर से हासिल किया जा सकता है.

सिर्फ गृह (पुलिस) अनुभाग-4 ने बताया कि श्री खालिद मुजाहिद की हत्या/मृत्यु की जांच सी.बी.आई. से कराए जाने हेतु शासनादेश संख्या-01 सी.बी.आई./ छ:-पु. -4-13-17(65)बी/ 13 दिनांक 19.05.13 द्वारा सचिव, लोक शिकायत एवं पेंशन मंत्रालय, भारत सरकार, नई दिल्ली से अनुरोध किया गया है. ख़ालिद मुजाहिद की मौत के तथ्यों के बारे में जानकारी देते हुए बताया गया है कि अभियुक्त खालिद मुजाहिद थाना- कोतवाली नगर, फैजाबाद में दर्ज मु.अ.सं.-3398/2007 धारा-302/307/121/121ए भा.दं.वि. व 3/4/5 विस्फोटक पदार्थ अधिनियम आदि में आरोपी था. दिनांक 18-05-2013 को उसे लखनउ जिला जेल से फैजाबाद में न्यायालय में पेशी पर ले जाया गया था तथा उसे लखनऊ वापस ले जाया जा रहा था. रास्ते में कथित रूप से उसकी तबीयत खराब होने पर जब उसे जिला अस्पताल, बाराबंकी में इलाज हेतु लाया गया तो उसे चिकित्सक द्वारा मृत घोषित कर दिया गया. इस संबंध में मु.अ.सं.-295/2013 धारा-302/120 बी भा.दं.वि. पंजीकृत किया गया, जिसकी विवेचना प्रचलित है.

सी.बी.आई. को जाँच सौंपने का कारण ख़ालिद मुजाहिद की मौत का कारण स्पष्ट न होना बताया गया है. साथ ही यह भी बताया गया है कि स्थानीय पुलिस भी मामले की विवेचना कर रही है. लेकिन सबसे अहम सवालों का जबाव टाल दिया गया है. ख़ालिद मुजाहिद के परिवार को मुआवज़ा देने के बारे में युपी सरकार ने कोई भी जानकारी उपलब्ध नहीं करवाई है. इस मुआवज़े को लेकर हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच में एक याचिका भी दायर की गई है.

अब सवाल यह उठता है कि आख़िर उत्तर प्रदेश सरकार ख़ालिद मुजाहिद की मौत से जुड़े तथ्यों को सामने लाने से क्यों डर रही है. ऐसा क्या है जिसे छुपाने की कोशिश की जा रही है.

इंसान इंटरनेशनल फाउंडेशन के अध्यक्ष अफरोज़ आलम साहिल बताते हैं कि उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा सूचना के अधिकार के तहत जानकारी न उपलब्ध करवाना सरकार के छुपे मंसूबों की ओर भी इशारा करता है.

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