Afroz Alam Sahil for BeyondHeadlines
वक़्फ की सम्पत्ति के बारे में इसके रहनुमाओं को ही कुछ ख़बर नहीं है. या फिर वे कुछ ज़्यादा ही बाख़बर हैं और उन्हें इस बात का डर सता रहा है कि कहीं हक़ीक़त की छोटी सी चिंगारी एक बड़ी आग में तब्दील न हो जाए. शायद यही वजह है कि दिल्ली वक़्फ बोर्ड की सम्पत्तियों के बारे में जानकारी हासिल करने की हर कोशिश के आगे पत्थर की एक नई दीवार खड़ी कर देता है.
ताज़ा मामले में BeyondHeadlines ने आरटीआई के ज़रिए दिल्ली वक़्फ बोर्ड से वक़्फ की सम्पत्तियों से होने वाली आमदनी और उसके हिसाब-किताब का ब्यौरा मांगा. BeyondHeadlines की आरटीआई सामने पड़ते ही दिल्ली वक़्फ बोर्ड के पदाधिकारियों को मानो सांप सूंघ गया. आनन-फानन में उन्होंने आरटीआई के हर सवाल के आगे जानकारी न देने की तकनीक के ज़रिए ऊंची-ऊंची दीवारें कर दी. BeyondHeadlines के हर सवाल के जवाब में दिल्ली वक़्फ बोर्ड ने हाथ खड़े कर लिए और मामले को दूसरा मोड़ देने के लिए उन्हीं घिसे-पिटे सरकारी जुमलों का सहारा लिया, जिन पर खुद सूचना आयोग एक बार नहीं बल्कि अनेक बार सख्त आपत्ति जता चुका है. अब दिल्ली वक़्फ बोर्ड के इसी ग़ैर-ज़िम्मेदाराना और गुमराह करने वाले रवैये की एक बानगी देखिए…
BeyondHeadlines ने अपने आरटीआई में दिल्ली वक़्फ बोर्ड से पूछा कि बोर्ड को अपने वक़्फ की सम्पत्तियों से कुल कितनी आमदनी होती है? जवाब में दिल्ली वक़्फ बोर्ड का स्पष्ट रूप से कहना है कि सम्पत्ति-वार अभी यह जानकारी उपलब्ध नहीं है. आगे BeyondHeadlines ने पूछा कि कितने वक़्फ सम्पत्ति पर किसी तरह का विवाद चल रहा है. केसेज किस अदालत में हैं. तो इसके जवाब में दिल्ली वक़्फ बोर्ड का कहना है कि किस सम्पत्ति की आपको जानकारी चाहिए, यह स्पष्ट करें. आगे BeyondHeadlines ने पूछा कि कितने वक़्फ सम्पत्ति पर अवैध तरीके से प्राईवेट या सरकारी कब्ज़ा है. इस पर बोर्ड कहता है कि यह जानकारी उपलब्ध नहीं है. BeyondHeadlines ने आगे उन सरकारी, अर्द्ध सरकारी दफ्तर व प्राईवेट बिल्डिंगों की सूची मांगी, जो वक्फ की ज़मीनों पर बने हुए हैं. इसके भी जवाब में बोर्ड का कहना है कि यह जानकारी उपलब्ध नहीं है. अपने अंतिम सवाल में BeyondHeadlines ने पूछा कि क्या दिल्ली वक़्फ बोर्ड कोई शैक्षणिक या सामाजिक संस्थान इस दिल्ली में चला रहा है, अगर हां! तो इसकी सूची उपलब्ध कराएं. लेकिन इसके भी जवाब में दिल्ली वक़्फ बोर्ड ने बेशर्मी से कह दिया कि जानकारी उपलब्ध नहीं है.
दिल्ली वक़्फ बोर्ड का यह रवैया बताता है कि वक्फ की मलाईदार सम्पत्तियों के बेजा इस्तेमाल को आज तक रोका क्यों नहीं जा सका है. जिन ओहदे-दारों पर वक़्फ की इन बेशक़ीमती सम्पत्तियों को संजोकर रखने और गरीब मुसलमानों के हक़ में उनका इस्तेमाल करने की ज़िम्मेदारी है, वो खुद ही इन सम्पत्तियों को अपनी निजी मिल्कियत मानकर कुंडली मारकर बैठ गए हैं. इन मोटी चमड़ी वाले रसूखदारों के आगे सूचना के अधिकार का ताक़तवर क़ानून भी बौना साबित हो रहा है. सबसे बड़ी त्रासदी इसी बात की है.
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