Edit/Op-Ed

साहेब का जासूसी कांड और मीनाक्षी लेखी के कुतर्क

Afroz Alam Sahil for BeyondHeadlines

साहेब जासूसी प्रकरण में अब यह लगभग साफ़ हो गया है कि साहेब और कोई नहीं बल्कि भारतीय जनता पार्टी के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी ही हैं.

एक युवती की जासूसी से शुरू हुई यह बात मोदी की निजी ज़िंदगी से होते हुए अब महिला अधिकारों और निजता के अधिकार पर पहुंच गई है.

नरेंद्र मोदी पर निशाना साधने के लिए कांग्रेस ने रविवार को अपनी महिला ब्रिगेड को उतार दिया. कांग्रेस की महिला ब्रिगेड ने नैतिकता का हवाला देते हुए नरेंद्र मोदी की प्रधानमंत्री पद की दावेदारी पर ही सवाल खड़े कर दिए.

भारतीय जनता पार्टी की ओर से प्रवक्ता और अधिवक्ता मीनाक्षी लेखी ने जवाब दिया.

यदि पूरे मामले को महिला अधिकारों और निजता अधिकारों के लिहाज़ से देखा जाए तो साहेब प्रकरण से भी ज्यादा शर्मनाक वे तर्क हैं जो मीनाक्षी लेखी ने दिए.

मीनाक्षी लेखी बार-बार निजता की दुहाई देती दिखी. वे चीख-चीख कर सवाल कर रहीं थी कि जब लड़की खामोश हैं तो फिर कांग्रेस या कोई वेब पोर्टल क्यों इस मुद्दे को उठा रहे हैं.

उनका तर्क था कि इससे लड़की की निजता का हनन हो रहा है और उसकी खुशहाल शादीशुदा ज़िंदगी प्रभावित हो रही हैं.

मीनाक्षी लेखी का यह तर्क भारतीय जनता पार्टी के उस तर्क से विरोधाभास रखता है जिसमें कहा गया है कि स्वयं लड़की के पिता ने नरेंद्र मोदी से उसकी सुरक्षा का आग्रह किया था और नरेंद्र मोदी और लड़की के बीच पिता-बेटी जैसे रिश्ते थे.

यदि लड़की और नरेंद्र मोदी के बीच एक पिता और बेटी जैसे रिश्ते थे तो फिर इनके सामने आने से लड़की की किस निजता का हनन हो रहा या इससे उसके चरित्र पर सवाल कैसे उठ रहे हैं.

यदि नरेंद्र मोदी और लड़की के बीच रिश्ते एक बाप और बेटी जैसे थे तो फिर इससे उसकी खुशहाल शादीशुदा ज़िंदगी पर क्या असर हो सकता है?

निजी संबंधों में जासूसी का यह मामला हमें फिर से उस चक्रव्यूह में ले जाता है जिसमें भारतीय नारी हज़ारों सालों से फँसी हुई है. यह चक्रव्यूह है ख़ामोशी का. कुछ भी हो जाए लेकिन चुप रहने का.

मीनाक्षी लेखी चाहती हैं कि साहेब की जासूसी का शिकार हुई वह लड़की गुमनाम रहे. जैसे देश में हज़ारों बलात्कार पीड़ित रहती हैं. छेड़खानी की शिकार पीड़िताएं रहती हैं. सबकुछ सह लेती हैं और फिर ख़ामोश हो जाती हैं. शादी का हवाला देकर उन्हें ख़ामोश कर दिया जाता है. या फिर शादी कराकर उन्हें ‘सैटल’ करा दिया जाता है.

साहेब के इस जासूसी कांड पर भारतीय जनता पार्टी को बचाव का पूरा अधिकार है. बेहतर होता कि कोई मंझा हुआ पुरुष प्रवक्ता इस पर बचाव करता. एक महिला प्रवक्ता के इतने शर्मनाक कुतर्क भारतीय महिलाओं को फिर से उस अंधेरे में धकेल रहे हैं जिससे निकलने का प्रयास वे सैंकड़ों सालों से कर रही हैं.

मीनाक्षी लेखी स्वयं भी एक महिला हैं, उन्हें खुद से भी सवाल पूछना चाहिए कि वे एक महिला को किस रूप में देखना चाहती हैं. एक ख़ामोश, बंद कमरे में सिसकती आवाज़ के रूप में या फिर अपने साथ हुए शोषण के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाने वाली एक सशक्त प्रवक्ता के रूप में?

मीनाक्षी लेखी बार-बार दुहाई दे रही हैं कि आवाज़ उठाने वाले क्या उस लड़की के बाप-भाई लगते हैं. क्या वे भूल रही हैं कि आवाज़ उठाने वाले उस लड़की के भी बाप-भाई नहीं लगते थे जो 16 दिसंबर को दिल्ली में गैंगरेप का शिकार हुई थी. लेकिन उन्होंने आवाज़ उठाई थी.

बाप-भाई तो अक्सर ऐसे मामलों में बेटी के लिए आवाज़ उठाने के बजाए उसे ख़ामोश ही करते आए हैं.

अगर मीनाक्षी लेखी के तमाम तर्कों को मान भी लिया जाए. नरेंद्र मोदी की निजता के अधिकार का पूरा सम्मान किया जाए. लेकिन एक बड़ा सवाल तो फिर भी यह रह जाता है कि इस पूरे मामले में आईएएस अधिकारी प्रदीप शर्मा को क्यों निशाना बनाया गया. उम्मीद है अगली बार जब लेखी टीवी स्क्रीन पर दिखेंगी तो उनके पास कम से कम इस सवाल का जवाब तो होगा ही.

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