BeyondHeadlinesBeyondHeadlines
  • Home
  • India
    • Economy
    • Politics
    • Society
  • Exclusive
  • Edit/Op-Ed
    • Edit
    • Op-Ed
  • Health
  • Mango Man
  • Real Heroes
  • बियॉंडहेडलाइन्स हिन्दी
Reading: भारतीय मुसलमान और सच्चर की सिफारिशें…
Share
Font ResizerAa
BeyondHeadlinesBeyondHeadlines
Font ResizerAa
  • Home
  • India
  • Exclusive
  • Edit/Op-Ed
  • Health
  • Mango Man
  • Real Heroes
  • बियॉंडहेडलाइन्स हिन्दी
Search
  • Home
  • India
    • Economy
    • Politics
    • Society
  • Exclusive
  • Edit/Op-Ed
    • Edit
    • Op-Ed
  • Health
  • Mango Man
  • Real Heroes
  • बियॉंडहेडलाइन्स हिन्दी
Follow US
BeyondHeadlines > Lead > भारतीय मुसलमान और सच्चर की सिफारिशें…
LeadLiterature

भारतीय मुसलमान और सच्चर की सिफारिशें…

Beyond Headlines
Beyond Headlines Published November 24, 2013 2 Views
Share
8 Min Read
SHARE

Afroz Alam Sahil for BeyondHeadlines

अब्दुर रहमान की पुस्तक ‘सच्चर की सिफारिशें’ को पढ़ने के बाद यह मालूम होता है कि मुसलमानों की बदहाल परिस्थिती को जानने के लिए सच्चर समिती का गठन कोई पहला प्रयास नहीं हैं. बल्कि इससे पूर्व भी इस तरह के अनेक प्रयास हुए हैं तथा अनेक समितियों व आयोगों का गठन समय-समय पर किया जाता रहा है. आज़ादी के पूर्व यानी अंग्रेज़ी शासनकाल से यह खेल बदस्तूर जारी है. सबसे पहले 1871 में विलियम विल्सन हंटर का अध्ययन पेश किया गया. इसके बाद 1886 में रॉयल कमीशन बनी. सैय्यद अहमद खां और क़ाज़ी शहाबुद्दीन इस आयोग के अन्य सदस्यों में से थे. इस आयोग ने खास तौर पर न्यायिक सेवाओं में मुस्लिमों की कम भागीदारी  पर गहरी चिंता जताई थी. 1912 में इस्लिंटन आयोग गठित हुआ. इस आयोग की रिपोर्ट 1917 में प्रकाशित की गई, जिसमें यह बताया गया कि हिन्दुओं की तुलना में मुसलमान 18 में से 13 विभागों में पिछड़े हुए थे. यही नहीं, 1371 आईसीएस अधिकारियों में 1305 अंग्रेज़, 41 हिन्दू और सिर्फ 9 मुसलमान थे. आयोग ने कई महत्वपूर्ण सिफारिशें पेश की थी. 1924 में मुद्दीमान आयोग बनाई गई. इस तरह देखा जाए तो मुसलमानों के आर्थिक, शैक्षणिक एवं सरकारी रोज़गार में भागीदारी जानने के लिए और उन्हें उचित अधिकार देने के लिए आज़ादी के पहले भी अनेक महत्वपूर्ण प्रयत्न किए गए थे.

Titleयह पुस्तक बताती है कि आज़ादी के बाद 1965 में प्रकाशित एक दस्तावेज़ में ईन्दर मल्होत्रा ने रोज़गार के क्षेत्रों में मुसलमानों के घटते प्रतिनिधित्व पर गहरा दुख व्यक्त किया था. उस समय भी केन्द्रीय सचिवालय सेवा के दो उच्च श्रेणी की नौकरियों में 681 पदाधिकारियों में केवल 6 मुसलमान थे. वहीं निम्न श्रेणी के 2000 कर्मियों में सिर्फ 4 मुस्लिम थे. 9900 लिपिकों में सिर्फ 21 मुस्लिम थे. 1968 में अमेरिकी पत्रकार जोसेफ लेलिवेल्ड ने भी इस स्थिति के लिए मुसलमानों के गिरते मनोबल और देश में उनके साथ हो रहे खुले भेदभाव को जिम्मेदार ठहराया था.

10 मई 1980 को इंदिरा गांधी की सरकार द्वारा गोपाल सिंह आयोग की स्थापना की गई. उस समय आयोग के कार्य पर 57.77 लाख रूपये हुए थे. 10 जून 1983 को आयोग ने अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंप दी थी. लेकिन सरकार ने इस रिपोर्ट को दबाने का हर संभव प्रयास किया लेकिन गोपाल सिंह के देहांत के बाद दुख और अल्पसंख्यकों के क्रोध के वातावरण में सरकार मजबूरन 24 अगस्त, 1990 को लोकसभा में पेश किया, लेकिन तात्कालीन सरकार ने आयोग के सभी महत्वपूर्ण सिफारिशों को अस्वीकार कर दिया था.  1989 में सुरेन्द्र नवलाखा का प्रसिद्ध अध्ययन भी प्रकाशित हुआ. रंगनाथ मिश्रा आयोग का हश्र तो आप सब जानते ही हैं. और फिर मार्च 2005 में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह द्वारा सच्चर Title Backसमिति का गठन किया गया.  यह पुस्तक इस बात पर जोर देती हैं की  सच्चर रिपोर्ट भारतीय मुस्लिम समाज का आर्थिक, सामाजिक, तथा शैक्षिक परिस्थिति का आईना है.

यह पुस्तक बताती है कि सच्चर समिति की रिपोर्ट के आने के तकरीबन छः सालों के बाद भी मुसलमानों के हालात में कोई बदलाव  नहीं आया है. लेकिन इतना ज़रूर है कि इस रिपोर्ट के आने के बाद ‘मेनस्ट्रीम’ में मुसलमानों के पिछड़ेपन और उनके विकास के मुद्दे पर खुलकर बात होने लगी है. इस रिपोर्ट ने मुसलमानों में आर्थिक, सामाजिक और शैक्षणिक विकास के नज़रिए और संवाद में भी काफी तब्दीली लाई है. इस रिपोर्ट के आने के बाद मुसलमानों के हालात पर काफी कुछ पढ़ा-लिखा गया, पर यह काम ज़्यादातर अंग्रेज़ी भाषा में हुए हैं. और यही वजह है कि सच्चर कमिटी के इतनी लोकप्रियता और सर्वमान्यता के बावजूद आम नागरिक खास तौर पर मुसलमान इसके कई सारी बातों से अपरिचित हैं. इस पुस्तक के लेखक अब्दुर रहमान के बारे में ज़रूर कहा जा सकता है कि इस किताब की वजह से सच्चर की सिफारिशों की खास बातें आम नागरिकों वही भी खास तौर पर मुसलमानों तक ज़रूर पहुंच सकी हैं. लेखक ने देश के विकास से मुसलमानों के विकास को जोड़ते हुए बहुत सारी अहम बातें लिखी हैं. तथ्यों को समझाने के लिए कई संदर्भ ग्रंथों का भी सहारा लिया गया है. और हर चैप्टर के शुरूआत में पेश किए गए शेर का तो कोई जवाब ही नहीं. इस पुस्तक और इसमें दिए गए तर्कों की अहमियत इसलिए भी बढ़ जाती है, क्योंकि ये बातें एक ऐसा व्यक्ति कह रहा है जो कि खुद उसी सिस्टम का हिस्सा है और जिस पर यह ज़िम्मेदारी है कि वह सच्चर की सिफारिशों को जल्द से जल्द लागू करे. लेखक वर्तमान में पुणे शहर में डीआईजी रैंक के अधिकारी हैं और फिलहाल अतिरिक्त पुलिस आयुक्त (प्रशासन) के रूप में अपनी सेवा दे रहे हैं. अब्दुर रहमान बिहार के पश्चिम चम्पारण ज़िला के एक साधारण कृषक परिवार से संबंध रखते हैं. वो 1997 बैच के भारतीय पुलिस सेवा के अधिकारी हैं और महाराष्ट्र कैडर में कार्यरत हैं. इन सब के बावजूद लेखक मुस्लिम  समाज के प्रति बहुत ही संवेदनशील हैं.

लेखक अपने कामों को लेकर हमेशा से चर्चा में रहे हैं. यही वजह है कि धुले और यवतमाल में सांप्रदायिक सामंजस्य को बढ़ावा देने तथा दो संप्रदायों के बीच मेल-मिलाप को बढ़ावा देने हेतु महाराष्ट्र सरकार द्वारा 2007-08 में महात्मा गांधी शांति पुरस्कार दिया गया. यही नहीं 2008 में पुलिस में आधारभूत ढ़ांचा एवं प्रशानिक सुधार हेतु महाराष्ट्र सरकार का राजीव गांधी प्रशासकीय गतिमानता पुरस्कार भी इन्हें ही मिला. इसके अलावा ढ़ेरों मेडल व पुरस्कार से लेखक नवाज़े जा चुके हैं.

लेखक अपने पुस्तक के दूसरे संस्करण की प्रस्तावना में लिखते हैं कि ‘तथ्य कभी पुराने नहीं होते हैं. विशेषकर जब तक उन्हें सुधारा नहीं जाए या बेहतर तथ्यों या परिणामों से बदल नहीं दिया जाता है. यही बात सच्चर समिति की रिपोर्ट तथा रंगनाथ मिश्रा आयोग की रिपोर्ट के लिए पूरी तरह लागू होती है. इस रिपोर्ट के आने के बाद मुस्लिम समुदाय व सरकारें हरकत में आई हैं तथा मुस्लिमों की दशा को सुधारने का प्रयास किया जा रहा है. केन्द्रीय सरकार सच्चर समिति द्वारा सुझाए गए 72 सिफारिशों में से 66 को लागू को कर रही है. लेकिन सच्चाई यह है कि शिक्षा तथा छात्रवृत्ति को छोड़कर अन्य क्षेत्रों में सफलता समाधानकारक नहीं रही हैं. इस परिस्थिति में सामुदायिक पहल तथा व्यक्तिगत पहल की भूमिका अहम हो जाता है. इन पहलों को आरंभ करने से पहले मूल रिपोर्ट तथा तथ्यों को जानना बेहद ज़रूरी है. एक वर्ष के भीतर ही दूसरा संस्करण आना मेरे लिए गर्व की बात है.’

यह पुस्तक 14 अध्यायों और 4 परिशिष्टों पर आधारित ये पुस्तक सच्चर समिति की रिपोर्ट को आम नागरिक के समझने के लिए एक अच्छा दस्तावेज़ हैं. यह बेहद ही महत्वपूर्ण पुस्तक है इसे पढ़ा जाना चाहिए.

पुस्तक  : सच्चर की सिफारिशें (द्वितीय संस्करण)

लेखक  : अब्दुर रहमान

मूल्य     : 220 रुपये

प्रकाशक           : कश्यप पब्लिकेशन, ग़ाज़ियाबाद

Share This Article
Facebook Copy Link Print
What do you think?
Love0
Sad0
Happy0
Sleepy0
Angry0
Dead0
Wink0
“Gen Z Muslims, Rise Up! Save Waqf from Exploitation & Mismanagement”
India Waqf Facts Young Indian
Waqf at Risk: Why the Better-Off Must Step Up to Stop the Loot of an Invaluable and Sacred Legacy
India Waqf Facts
“PM Modi Pursuing Economic Genocide of Indian Muslims with Waqf (Amendment) Act”
India Waqf Facts
Waqf Under Siege: “Our Leaders Failed Us—Now It’s Time for the Youth to Rise”
India Waqf Facts

You Might Also Like

IndiaLatest NewsLeadYoung Indian

OLX Seller Makes Communal Remarks on Buyer’s Religion, Shows Hatred Towards Muslims; Police Complaint Filed

May 13, 2025
IndiaLatest NewsLeadYoung Indian

Shiv Bhakts Make Mahashivratri Night of Horror for Muslims Across India!

March 4, 2025
Edit/Op-EdHistoryIndiaLeadYoung Indian

Maha Kumbh: From Nehru and Kripalani’s Views to Modi’s Ritual

February 7, 2025
HistoryIndiaLatest NewsLeadWorld

First Journalist Imprisoned for Supporting Turkey During British Rule in India

January 5, 2025
Copyright © 2025
  • Campaign
  • Entertainment
  • Events
  • Literature
  • Mango Man
  • Privacy Policy
Welcome Back!

Sign in to your account

Lost your password?