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Reading: सचिन को आदर्श स्वीकार करने की मजबूरी
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BeyondHeadlines > Edit/Op-Ed > सचिन को आदर्श स्वीकार करने की मजबूरी
Edit/Op-EdLead

सचिन को आदर्श स्वीकार करने की मजबूरी

Beyond Headlines
Beyond Headlines Published November 30, 2013 1 View
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7 Min Read
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Sandeep Pandey for BeyondHeadlines

सचिन तेण्डूलकर का महिमामण्डन सम्पन्न हुआ. सरकार ने बहती गंगा में हाथ धोते हुए उन्हें भारत रत्न भी दे डाला. कोई इस पर सवाल न खड़ा करे, इसलिए प्रख्यात वैज्ञानिक सी.एन.आर. राव को भी साथ में यह सम्मान दिया गया. खेल जगत से पहली बार किसी व्यक्ति को यह सम्मान मिला. पर सवाल यह है कि क्या खेल या मनोरंजन क्षेत्र के लोगों को ये सम्मान देकर या उन्हें संसद में सदस्य नामित कर हम यह संदेश नहीं दे रहे कि समाज में वास्तविक आदर्श व्यक्तित्व का अकाल पड़ गया है. बहुत दिनों के बाद राष्ट्रीय स्तर पर समाज में पुरुषार्थ के आदर्श के रूप में अण्णा हजारे को लोगों ने स्वाकार किया. बाजार के लोकप्रियता के मानकों के हिसाब से भी वे सचिन तेण्डूलकर और अमिताभ बच्चन से आगे निकल गए थे. यानी अपने ऊपर उपभोक्तावादी संस्कृति हावी होने के बावजूद हमने आदर्स के रूप में सादगी को ही चुना. आजकल आधुनिक किस्म के कुछ साधु-संतों ने विश्वसनियता का संकट खड़ा कर दिया है नहीं तो भारतीय समाज में त्याग और सादगी हमेशा पूजे जाने वाले गुण रहे हैं. भारतीय समाज ने शीर्ष आदर्श के रूप में गौतम बुद्ध, स्वामी विवेकानंद और महात्मा गांधी जैसे लोगों को माना है.

यह तो अण्णा और अरविंद केजरीवाल के मतभेदों के कारण भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन कमजोर पड़ गया नहीं तो आज भी अण्णा हजारे ही देश में सबसे लोकप्रिय व्यक्ति होते. अण्णा को लोगों ने इसलिए स्वीकार किया क्योंकि उनमें लोगों को गांधी का रूप दिखाई पड़ा.

समाजिक एवं राजनैतिक बदलाव की आकांक्षा के प्रतीक बन चुके अण्णा हजारे ही असल में राष्ट्रीय आदर्श हैं. किंतु अण्णा हजारे को सरकार और कुछ हद तक समाज भी पचा नहीं पाएगा. वह अपने मन से चलने वाले व्यक्ति हैं. वह सरकार के मन मुतिबक काम करने वाले नहीं. जब समाज अपने असली आदर्शो को नहीं पहचानता को उसे कृत्रिम आदर्श गढ़ने पड़ते हैं. सचिन इसी तरह के आदर्श हैं. अमिताभ बच्चन भी इसी तरह के हैं. इन नायकों से न तो सरकार को कोई परेशानी होगी न ही बाजार और बाजार का उपभोग करने वालों को. बल्कि अपना मुख्य काम करने के बाद ये नायक कम्पनियों का विज्ञापन भी करते हैं. करोड़ों-अरबों कमाने के बाद भी अपने मुख्य काम की कमाई से ये राष्ट्रीय नायक संतुष्ट नहीं रहते. पता नहीं क्यों इन्हें अतिरिक्त कमाई की ज़रूरत पड़ती है?

सचिन तेण्डुलकर एक पेशेवर खिलाड़ी हैं. उनको खेलने के लिए पैसे मिले हैं. उन्होंने समाज की उस अर्थ में सेवा नहीं की, जिस अर्थ में अण्णा हजारे ने की. उनका जीवन सुख-सुविधाओं से भरपूर रहा. समाज की वास्तविक समस्याओं को लेकर कभी उन्हें जूझना नहीं पड़ा. वे एक सहृदय और विनम्र व्यक्ति हैं किंतु देश की सामाजिक-आर्थिक-राजनीतिक हकीक़त को समझते हों ताकि संसद में अर्थपूर्ण योगदान कर सकें ऐसा ज़रूरी नहीं. बल्कि ऐसा लगने लगा है कि सरकार जानबूझ कर ऐसे लोगों को संसद में नामित करती है जो उसके कार्यकलापों पर सवाल खड़ा न करें. क्या किसी नामित सदस्य ने सरकार के भ्रष्टाचार जिसको लेकर दोनों सदनों में काफी हंगामा हुआ पर कोई टिप्पणी की? देखा जाए तो ऐसे ’गऊ’ किस्म के संसद सदस्य अपनी भूमिका के साथ न्याय नहीं कर रहे.

सचिन के महिमामण्डन की एक वजह यह भी है कि देश का ध्यान वास्तविक समस्याओं से हटाया जा सके. जब हम देश को चलाने में हर मोर्चे पर नाकाम साबित हो रहे हों, भ्रष्टाचार के मामले में प्रधान मंत्री कार्यालय पर भी सवाल उठ रहे हों, कानून व्यवस्था पर कोई नियंत्रण न हो और गरीबी, भुखमरी, बेरोज़गारी, मंहगाई का हमारे पास कोई उपाए न हो तो सचिन को भारत रत्न देकर देश के सामने कुछ उपलब्धि का भ्रम पैदा किया जा सकता है.

सचिन अमरीकी कम्पनी कोका कोला के ब्रांड ऐम्बैस्डर हैं. कोका कोला ने केरल और वाराणसी में भूगर्भ जल का इतना शोषण किया है कि किसानों ने दोनों जगह आंदोलन खड़ा कर दिया. केरल के प्लचीमाडा स्थित कारखाने को कम्पनी को बंद करना पड़ा. वाराणसी में भी अराजी लाइन विकास खण्ड जहां यह कारखाना स्थित है भूगर्भ जल स्तर केन्द्रीय भूगर्भ जल प्राधिकरण के अनुसार अति-दोहित श्रेणी में पहुंच गया है. दो बार किसान आंदोलन कर जेल जा चुके हैं. अमरीका के विश्वविद्यालय के छात्रों को कोका कोला की भारत में किसान विरोधी गतिविधियों की जानकारी है जिसकी वजह से कुछ परिसरों में कोका कोला पर प्रतिबंध भी लगाया गया. सचिन यदि सिर्फ एक खिलाड़ी होते तो उनसे यह सवाल नहीं पूछा जाता. किंतु एक सांसद के नाते क्या वे इस बात पर गौर करेंगे कि जिस कम्पनी का वे विज्ञापन कर रहे हैं वह कम्पनी इस देश के किसानों का पानी चोरी कर उनकी खेती के लिए संकट खड़ा कर रही है? पेप्सी के साथ मिलकर यह कम्पनी हमारा ही पानी हमें ही को पिला कर करोड़ों-अरबों रुपए लूट कर भारत को और गरीब बना रही है.

सचिन के विश्व प्रसिद्ध क्रिकेट खिलाड़ी होने से भारत की वास्तविक समस्याओं पर कोई फर्क नहीं पड़ता. न ही उनका मन मोहने वाला व्यक्तित्व ही भारत के गरीबों के किसी काम का है. देश के अंदरूनी गांवों में रहने वाले शायद बहुत सारे अति गरीब लोगों ने सचिन का नाम भी न सुना हो. लेकिन हमारी मीडिया ने अति उत्साह में उन्हें राष्ट्रीय नायक का दर्जा दे दिया है. जैसे बिजली जाने पर मीडिया बताती है कि देश की जनता परेशान है जबकि ज्यादातर गांवों में रहने वाले लोगों के पास अभी बिजली पहुंची ही नहीं है.

यह वर्तमान में मूल्यों का संकट है कि जिस समाज ने कभी बुद्ध, विवेकानंद व गांधी जैसे लोगों को अपना आदर्श माना आज वह सचिन को अपना आदर्श मानने के लिए मजबूर है. यह हमारे वैचारिक दिवालिएपन का भी प्रमाण है.

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