Edit/Op-Ed

साहेब का ‘भांड’ और भक्तों की नैतिकता…

Afroz Alam Sahil for BeyondHeadlines

सोशल मीडिया पर मोदी समर्थक अक्सर मीडिया को ‘भांड’ कहकर संबोधित करते हैं. ‘पेड मीडिया’ शब्द का भी बार-बार प्रयोग किया जाता है, यह दर्शाने के लिए की मीडिया बिका हुआ है.

मीडिया के बिके होने के मोदी समर्थकों के आरोपों में सच्चाई हो सकती है. लेकिन सवाल फिर भी यही रह जाता है कि आख़िर मीडिया को ख़रीदा किसने है?

मीडिया की बात बाद में, आज मुद्दा है एक साहेब का ‘भांड’. हम ‘भांड’ शब्द का इस्तेमाल इसलिए कर रहे हैं ताकि अंधभक्तों को मुद्दा समझने में आसानी हो. यह उनकी अपनी भाषा का चिर-परिचित शब्द है और वे इसके मायनों से भलीभांति वाकिफ़ भी हैं.

शुक्रवार को दिल्ली में खोजी पत्रकारिता की वेबसाइट cobrapost.com और gulail.com ने एक वीडियो जारी किया जिसमें गुजरात के गृहमंत्री रहे अमित शाह और एक शीर्ष ख़ुफ़िया अधिकारियों के बीच का संवाद है.

संवाद में अमित शाह ख़ुफ़िया अधिकारी को एक युवती की जासूसी करने का आदेश दे रहे हैं. एक वक़्त तो वे कहते हैं कि उसके साथ जो भी पुरुष है उसे गिरफ़्तार करो और ये सुनिश्चित करो कि वह अधिक से अधिक समय तक जेल में रहे.

अमित शाह बार-बार कहते हैं, ‘साहिब पूरी जानकारी चाहते हैं’, ‘साहिब नाराज़ हो जाएंगे’, ‘वो लड़की कहीं निकल न पाए’, ‘पता करो उसके साथ होटल में कौन रुका है’ आदि आदि.

गुजरात का गृहमंत्री किसी ‘साहिब’ के लिए भांडगिरी कर रहा है और देश का मीडिया और भक्त खामोश हैं. जो संवाद सामने आया है उससे जाहिर है कि ‘भांड’ अपने साहिब के लिए किसी भी हद तक जा सकता है और उसे न किसी क़ानून की परवाह है और न ही किसी के मानवाधिकारों की.

क़ानून और मानवाधिकार तो छोड़िये, उसे तो अपने प्रदेश के नागरिकों की सुरक्षा की भी कोई परवाह नहीं है. गृहमंत्री के तौर पर उसकी पहली ज़िम्मेदारी राज्य के नागरिकों की सुरक्षा सुनिश्चित करनी है. लेकिन जब गृहमंत्री किसी साहिब के लिए ‘भांड’ की भूमिका में आता है तो नागरिकों की सुरक्षा को ताक पर रखकर प्रदेश की पूरी ख़ुफ़िया व्यवस्था को एक लड़की की जासूसी करने के लिए लगा देता है.

अंधभक्तों के सामने भांडगिरी खुलकर आ गई है. लेकिन अंधभक्त भक्ती में लीन हैं. वे जानना नहीं चाहते कि साहिब कौन है. उनके पास तर्क हैं. इस पूरे खुलासे के पीछे उन्हें राजनीति नज़र आ रही है. भक्ती में लीन रहने के उनके पास अपने निराले तर्क हैं. उन्हें फिलहाल तो यह खुलासा ही फ़र्ज़ी लग रहा है.

अगर यह मान भी लिया जाए कि खुलासा राजनीतिक माहौल को गर्माने के लिए किया गया है. या इसके पीछे कोई विपक्षी पार्टी है. या यह अमित शाह के सच सामने लाने की साज़िश है तो भी क्या यह तथ्य बदल जाएगा कि एक गुजरात पुलिस और ख़ुफ़िया व्यवस्था का दुरुपयोग किया गया.

क्या अंधभक्त चाहते हैं कि उनका ‘साहिब’ किसी भी लड़की के जीवन में दखल देने के लिए स्वतंत्र हो? वो जब चाहे किसी भी युवती के पीछे अपने पालतू छोड़ दे? क़ानून या मानवाधिकारों के लिए उसके मन में कोई सम्मान न हो. अपने निज स्वार्थ के लिए वह जनता के पैसे से संचालित और जनता की सुरक्षा के लिए बनाई गई संस्थाओं का मनमर्ज़ी इस्तेमाल करे?

नैतिकता के इन सब सवालों के बीच भक्त फिर से ‘भांड’-‘भांड’ ‘पेड मीडिया’-‘पेड मीडिया’ चिल्लाने की तैयारी कर रहे हैं. ये अलग बात है कि अब वे अच्छी तरह से समझ चुके हैं कि ‘भांड’ कौन है और मीडिया को किसने ख़रीदा है. अपनी नैतिकता को ताक पर रखकर वे चिल्लाएंगे. आख़िर चिल्लाने के पैसे जो मिल रहे हैं.

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