नीतिश के टूटते हुए तिलिस्म का ट्रेलर…

Beyond Headlines
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Alok Kumar for BeyondHeadlines

कल बिहार के बेगूसराय जिले के गढ़पुरा में नीतिश कुमार की सभा में जिस प्रकार का विरोध-प्रदर्शन हुआ वो फिर से यह दर्शाता है कि नीतिश के शासन के खिलाफ जनता में कैसा आक्रोश है. हैरान करने वाली बात तो यह है कि बिहार से सम्बंधित मीडिया के किसी भी माध्यम में इसका जिक्र तक नहीं है. ये कोई नई बात नहीं है… नीतिश जी कि सभाओं में ये सब लगातार होता रहा है. पिछले डेढ़ वर्षों के दरम्यान नीतिश जहां भी गए हैं उन्हें जनता के आक्रोश का सामना करना पड़ा है.

हद तो तब ही हो गयी थी, जब लगभग एक महीने पहले अपने ही गृह-जिले (नालंदा) में उन्हें विरोध का सामना करना पड़ा था. नीतिश  ने इन्हीं विरोध-प्रदर्शनों के कारण एक लम्बे अर्से के लिए जनता के बीच जाना ही छोड़ दिया था, लेकिन अब तो चुनावों का मौसम है और जनता के बीच जाने से बचा भी नहीं जा सकता. ना ही इन विरोध-प्रदर्शनों को सदैव “विपक्षी साजिश” क़रार दिया जा सकता है.

बेगूसराय से जैसी ख़बरें मिली हैं उसके अनुसार कल नीतिश की सभा में जमकर हंगामा हुआ. लोगों ने सुशासनी-कुव्यवस्था के खिलाफ़ जमकर नारेबाजी की. कुर्सियां चलाईं और भीड़ से एक चप्पल भी मंच पर फेंकी गई. सभा में पोशाक-राशि में गड़बड़ी की शिकायत लेकर सैकड़ों स्कूली बच्चों ने भी प्रदर्शन किया.

एक स्थानीय पत्रकार इसके बारे में बताते हैं कि “ये नीतिश के टूटते हुए तिलिस्म का ट्रेलर है.” उन्होंने आगे कहा कि “जब तक नीतिश अपनी शासन-शैली में सुधार नहीं करेंगे, उन्हें ये सब झेलना भी पडेगा और शायद सत्ता से जाना भी होगा.”

शासक जब जनता से विमुख होकर फैसले लेता है और जनता को केवल बरगलाने की फिराक में रहता है तो जनाक्रोश स्वाभाविक है. जनहित के मुद्दों पर अतिशय व कुत्सित राजनीति की परिणति जनाक्रोश ही है.

एक साक्षात्कार के दौरान एक अल्पसंख्यक ग्रामीण बिहारी की कही हुई बात सदैव मेरे जेहन में कौंधती है “जनहित की कब्र पर दिखाऊ विकास की इमारत खड़ी नहीं की जा सकती.” नीतिश के लिए जनता के मिजाज को समझने का वक्त शायद अब निकलता जा रहा है!

सत्ताधारी दल के ही एक वरिष्ठ नेता से जब बेगूसराय की घटना के बारे में पूछा तो उनका जबाव था “वक्त के साथ नीतिश जी के चाल, चरित्र और चिंतन में बदलाव नहीं आया तो वो दिन दूर नहीं जब उन्हें हिंदी फ़िल्म का मशहूर गाना “हमसे क्या भूल हुई जो ये सजा हमको मिली… गाने के लिए विवश होना पड़ेगा.”

(आलोक कुमार  पटना में पत्रकार व विश्लेषक हैं, उनसे alokkumar.shivaventures@gmail.com पर सम्पर्क किया जा सकता है.)

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