जय हो मानव अधिकारों की…

Beyond Headlines
5 Min Read

Anita Gautam for BeyondHeadlines

कल शाम को आते हुए विनय मार्ग से बस में लगभग 5-6 पुलिसकर्मी मुफ्त की सवारी के मज़े लेते हुए ठाठ से बैठ गए. अभी दो-चार स्टैंड पार करने के बाद एक लड़का समान से भरा बैग लिए उतर ही रहा था कि एक पुलिसकर्मी महिला जो सादी वर्दी में थी, उसके सिर पर बैग का कोना मात्र लग गया, उसके मुंह से तीर की तरह अभी सॉरी निकला ही था कि औरत ने चिल्लाते हुए तेज़ कड़क आवाज़ में उस लड़के की मां-बहन-बीबी-बेटी, अड़ोसी-पड़ोसी सभी महिलाओं के नाम की गाली उसके नाम कर दी… इतना ही नहीं, उस लड़के के बस से उतर जाने के बाद भी लगातार ऐसे शब्दों का प्रयोग करती रही जिसका प्रयोग करना पुरूषों के लिए सार्वजनिक रूप भी शायद नामुमकिन होगा.

पूरी बस में सभी लोगों को मानों सांप सुंघ गया था… बाजू में बैठी उसी की सहकर्मी से जब मैंने पूछा कि ये दिल्ली पुलिस में हैं क्या? तो कानों से ईयर-फोन निकाल सिर हिलाते हुए हां बोली. मैंने उस महिला का रैंक पूछा तो पता चला वो महिला एएसआई के पद पर नियुक्त है. आगे बात करते हुए वो महिला बोली मैडम हम तो कान्सटेबल हैं, इसलिए अब क्या बोलें…

मैने तुरंत पूछा क्या ये दफ्तर मे भी इसी तरह व्यवहार करती है या….. नहीं-नहीं वहां तो चुप रहती हैं, पर थोड़ा डिप्रेशन में चल रही हैं, वो कास्टेबल चिंता जताते हुए बोली… बस की रफ्तार से मेल खाती हमारी बातें चल ही रही थी कि दुबारा वो गालियों के साथ बताने लगी कि दिल्ली पुलिस के ऑफिस में तबादले के नाम महिलाएं मजबुरन जिस्म तक सौंप देती हैं… वो इतने पर ही चुप नहीं हुई, उसने अपने नौकरी ज्वाइन करने से लेकर अब तक तमाम अधिकारियों सहित सफेद एम्बेसडर लाल बत्ती में सवार मंत्रियों ने उसके साथ जो भी किया, उसने पूरी तरह से निडर हो सरेआम बखान कर दिया… वो शायद आगे और भी कुछ बोलती पर तब तक केन्द्रीय सचिवालय का वो स्टैंड आ गया… उसे वहीं उतरना था, सो वो वहीं उतर गई.

इस वाक्ये के पहले तक मैं मज़े से एक किताब पढ़ रही थी और उसके उतरते ही फिर किताब खोल बैठ गयी, किन्तु पुस्तक के अक्षरो में महिला की बातें न जाने क्यों दिमाग में घुमने लगी… मैं सोचने पर विवश हो गई कि माना वो डिप्रेशन की शिकार थी, पर इस डिप्रेशन के पीछे का असल कारण क्या था? क्या उसकी पुलिस की नौकरी और वहां के अधिकारियों के द्वारा उसका मानसिक और शारीरिक शोषण तो नहीं, यदि हां तो वो क्यों इतने सालों तक चुप बैठी रही? और आज जब उसकी चुप्पी टूटी तो वो मानसिक रूप से पूरी टूट चुकी है, उसके मन का ये उबाल किस रूप में निकल रहा है फिर भी वो मन ही मन पल-पल जल रही है…

सबको न्याय दिलाने की बात करने वाली दिल्ली पुलिस, जिसका ध्येय वाक्य- ‘आपके लिए, आपके साथ सदैव’ है, वो वास्तव में किस हद तक हमारे साथ है? समाज का कोई भी तबका हो पुलिस के पास जाने से क्यों कतराता है और महिलाएं… हमें तो खासतौर से पुलिस से सचेत रहने की शिक्षा दी जाती है. थाने में महिला का क़दम रखना दूसरों के लिए चर्चा का विषय बन जाता है? थाने में शिकायत लेकर जाने वाली महिला के साथ क्यों सदैव अभद्र व्यवहार होता है? इन तमाम क्यों के बीच न जाने क्यों कल से आज तक मैं मानव अधिकारों की फेयर लिस्ट में मानव के असल अधिकारों को ढूंढ रही हूं… बावजुद आज मानव अधिकार दिवस है…  जय हो मानव अधिकारों की…

TAGGED:
Share This Article