मत छेड़िये…

Beyond Headlines
1 Min Read


हिन्दू या मुस्लिम के अहसासात को मत छेड़िये
अपनी कुर्सी के लिए जज़्बात को मत छेड़िये
हम में कोई हूण, कोई शक, कोई मंगोल है
दफन है जो बात बात, अब उस बात को मत छेड़िये
गर गलतियां बाबर की थी, जुम्मन का घर फिर क्यों जले
ऐसे नाजुक वक़्त में हालात को मत छेड़िये
है कहां हिटलर, हलाकू, जार या चंगेज़ खां
मिट गए सब क़ौम की औकात को मत छेड़िये
छेड़िए एक जंग मिल-जुल कर गरीबी के खिलाफ
दोस्त मेरे, मज़हबी नग्मात को मत छेड़िये

अदम गोड़वी

 

Share This Article