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यूपी में अब कानून का राज खत्म हो गया है –रिहाई मंच

BeyondHeadlines News Desk

लखनऊ : रिहाई मंच के अध्यक्ष मोहम्मद शुऐब ने कहा कि दक्षिण अफ्रीका के पूर्व राष्ट्रपति और मानवता विरोधी रंगभेद नीति के खिलाफ आजीवन संघर्ष करने वाले लोकप्रिय नेता नेल्सन मंडेला का निधन मानव समाज को एक अपूर्णीय क्षति है. नेल्सन मंडेला का संपूर्ण जीवन भेदभाव रहित मानव समाज के निमार्ण के लिए संघर्ष करते हुए बीता.

रिहाई मंच कार्यालय में एक शोक सभा का आयोजन कर महान नेता नेल्सन मंडेला के संघर्षों, कार्यों को याद करते हुए उन्हें श्रद्धांजलि दी गयी. वहीं बाबरी मस्जिद को शहीद करने वाले फिरकापरस्त पाटिर्यों और कथित धर्मनिरपेक्ष पाटिर्यों को बेनकाब करने का अभियान चलाने की भी मुहिम चलाने की रणनीति बनायी गई.

बैठक में मानवाधिकार दिवस 10 दिसम्बर को लक्ष्मण मेला मैदान में निमेष कमीशन की रिपोर्ट पर अमल करने, मौलाना खालिद मुजाहिद के हत्यारे पुलिस व आईबी अधिकारियों को तत्काल गिरफ्तार करने, आतंकवाद के नाम पर कैद निर्दोषों को तत्काल रिहा करने और मुज़फ्फरनगर सांप्रदायिक हिंसा समेत पूरे प्रदेश में सपा सरकार के शासन में हुए दंगों की सीबीआई जांच कराने की मांग को लेकर धरना देने का फैसला लिया गया.

मंच के अध्यक्ष मोहम्मद शुऐब ने कहा कि विधान सभा के शीतकालीन सत्र में मौलाना खालिद को बेक़सूर बताने वाली निमेष कमीशन की रिपोर्ट पर सरकार तुरंत अमल करते हुए, एक्शन टेकन रिपोर्ट लाये ताकि खालिद के हत्यारे पुलिस व आईबी अधिकारियों को कानून के कटघरे में खड़ा किया जा सके.

उन्होंने कहा कि रिहाई मंच का हस्ताक्षर अभियान व्यापक जनसमर्थन के साथ लगातार जारी रहेगा और आतंकवाद के नाम पर जब तक बेगुनाहों को कैद किया जाता रहेगा, सांप्रदायिक जेहनियत वाले आईबी और एटीएस के अधिकारियों की जवाबदेही तय नहीं होती, हमारी इंसाफ की लड़ाई पूरे जोर शोर से जारी रहेगी.

लखनऊ के बिल्लौजपुरा में हस्ताक्षर अभियान का नेतृत्व करते हुये रफीक़ सुल्तान ने कहा कि सपा सरकार आतंकवाद के नाम पर कैद निर्दोषों को छोड़ने का वादा पूरा करने के बजाए प्रदेश में साम्प्रदायिक दंगे कराकर सत्ता में बने रहने का नैतिक अधिकार खो चुकी है. उन्होंने अवाम से अपील की कि 10 दिसम्बर को रिहाई मंच के धरने में शामिल हो कर सपा की साम्प्रदायिक नीतियों के खिलाफ आवाज़ बुलंद करें.

शुक्रवार को शहर के बिल्लौजपुरा इलाके में आयोजित हस्ताक्षर अभियान को संबोधित करते हुए रिहाई मंच के प्रवक्ता राजीव यादव ने कहा कि 6 दिसंबर की पूर्व संध्या पर नदवा कालेज लखनऊ के गेट संख्या दो पर जिस तरह से सुतली बम से विस्फोट किया गया वह एक बड़ी साजिश की ओर इशारा कर रहा है.

उन्होंने कहा कि सांप्रदायिक और शरारती तत्वों द्वारा जिस तरह से लखनऊ का माहौल बिगाड़ने की कोशिश की गयी वह चिंताजनक है. सबसे अहम बात तो यह है कि ऐसा करीब चार माह पहले भी हो चुका है जिसके बाद वहां पर एक पुलिस चौकी भी बनायी गयी लेकिन इसके बावजूद भी इस तरह की घटनाएं नहीं रुक रही हैं, जो बिना राज्यमशनरी की सहमति के नहीं हो सकता.

इस अवसर पर रिहाई मंच के प्रवक्ता शाहनवाज़ आलम ने कहा कि इत्तेहाद-ए-मिल्लत कौंसिल के अध्यक्ष तथा हथकरघा एवं वस्त्र उद्योग में सलाहकार मौलाना तौकीर रजा द्वारा मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को लिखी गयी चिट्ठी से यह बात साफ हो गयी है कि सारा हथकंडा मुस्लिम समाज के सामने केवल और केवल यह दर्शाने के लिए है कि वह मुस्लिम समाज के हित को लेकर कितने संजीदा हैं और वह ही मुस्लिम समाज के अकेले खैर ख्वाह हैं. इस चिट्ठी में की गयी शिकायतों का तब तक कोई मतलब नहीं है, जब तक वे सरकार में स्वयं शामिल हैं. आखिर जब वे यह कह चुके हैं कि मुज़फ्फरनगर दंगों के लिए सपा सरकार दोषी नहीं है तो फिर सवाल है कि असल दोषी कौन है. अगर उनकी मांग के मुताबिक दंगों पर कोई कमेटी सरकार बना भी देती है तो उसकी कानूनी हैसियत क्या होगी? उन्होंने कहा कि इन सब सवालों को उठाकर परोक्ष रूप से वे सपा सरकार को उसकी नाकामियों के कारण उपजे असंतोष से बचाने की एक राजनैतिक कोशिश भर कर रहे हैं. आखिर सरकार का हिस्सा रहते हुए मुख्यमंत्री को लिखे गये इस पत्र का क्या मतलब है? जहां तक बरेली की मस्जिदों में नमाज़ न हो पाने का सवाल है तो सरकार उन्हीं की है कानून व्यवस्था भी उन्हीं की है, ऐसे में जिम्मेदारी भी उनके ही सरकार की बनती है.

मुज़फ्फरनगर सांप्रदायिक हिंसा के बाद कानूनी मदद के लिए मुज़फ्फरनगर, शामली व बागपत इलाके में कैंप किए सामाजिक संगठन आवामी काउंसिल फॉर पीस एण्ड डेमोक्रेसी के महासचिव असद हयात ने जारी बयान में मुज़फ्फरनगर सांप्रदायिक हिंसा के दौरान निरस्त किये गये शस्त्र लाइसेंसों में से पांच सौ शस्त्र लाइसेंसों को बहाल करने की सपा सरकार की प्रक्रिया पर सवाल उठाते हुए कहा कि इससे राहत शिविरों में रह रहे पीडि़त परिवारों में और दहशत आएगी और पीडि़त परिवार न्याय से वंचित हो जाएंगे. इस डर व दहशत के माहौल में ज़रूरी है कि सपा सरकार चल रहे शीतकालीन सत्र में ही एक कानून बनाकर सांप्रदायिक हिंसा में पीडि़त मुसलमानों को भी आत्म रक्षा के लिए शस्त्र लाइसेंस प्रदान करे. अगर ऐसा नहीं हुआ तो दबंग जाट परिवार पीडि़त मुसलमान परिवारों से असलहे के बल पर जबरन सुलह करवा लेंगे.

उन्होंने बताया कि अभियोजन पक्ष की लचर पैरवी के कारण ही इसी हफ्ते मुज़फ्फरनगर के थाना शाहपुर के कुटबी गांव में हाजी सिराजुद्दीन के घर पर हमला, आगजनी और हिंसा फैलाने वाले काला उर्फ विनीत, गौरव चौधरी व रवि को ज़मानत मिल गई. न्याय के हित में यह चीजें बेहद खरनाक है.

मंच के नेता असद हयात ने कहा कि मुज़फ्फरनगर सांप्रदायिक हिंसा पीडि़त परिवारों के राहत कैंपों में प्रशासनिक लापरवाही का विरोध करने पर जिस तरह से अब्दुल जब्बार को शांति व्यस्था बनाये रखने के लिए प्रशासन द्वारा मुचलका भरवाया गया उससे यह साफ हो जाता है कि सपा सरकार अपने खिलाफ, सरकारी मशीनरी द्वारा की जा रही लापरवाही पर एक भी बात सुनने को क़तई तैयार नहीं है. यह प्रक्रिया लोकतांत्रिक न होकर फासीवाद का द्योतक है. इसी के चलते पिछले दिनों जब मुजफ्फरनगर व आस-पास के जिलों के पीडि़त रिहाई मंच द्वारा आयोजित जनसुनवाई में शामिल होने गए थे तो सपा सरकार ने लखनऊ में उन्हें कार्यक्रम करने तक की इजाजत नहीं दी.

सामाजिक कार्यकर्ता और पत्रकार हरे राम मिश्र ने कहा कि अंबेडकरनगर में जिस तरह से हिन्दू युवा वाहिनी के नेता राम मोहन गुप्ता की हत्या के बाद भाजपा और टीम योगी द्वारा सुनियोजित तरीके से क्षेत्र के माहौल को हिन्दुओं के लिए असुरक्षित बताया जा रहा है वह समाज को बांटने की सांप्रदायिक ताक़तों की एक चाल भर है. अगर किसी की हत्या होती है तो यह मामला किसी भी तरह से सांप्रदायिक न होकर कानून और व्यवस्था का है और इसे सांप्रदायिक रंग देने के पीछे का मक़सद केवल धार्मिक ध्रुवीकरण है.

रिहाई मंच के प्रवक्ताओं ने कहा कि सीतापुर में भाकपा माले के नेता नासिर हुसैन पर उनके घर में जिस तरह से जानलेवा हमला किया गया है, उससे यह साबित हो जाता है कि इस प्रदेश में अब कानून का राज खत्म हो गया है और अराजक तत्व अब अपने को कानून से ऊपर समझने लगे हैं. उन्होंने भाकपा माले के नेता पर जानलेवा हमला करने वाले अराजक तत्वों को तत्काल गिरफ्तार करने की मांग की.

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