राहुल जी! ज़रा इधर भी ध्यान दीजिए…

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Chakresh Surya for BeyondHeadlines

जबलपुर : क्रेडिट लेने की होड़ में राहुल गांधी हमेशा से आगे रहे हैं. लोकपाल बिल पास होते ही उन्होंने देश में आरटीआई कानून लागू कराने का भी क्रेडिट बड़े शान से ले लिया. आने वाले लोकसभा चुनाव में भी सरकार इसका फायदा लेने की मूड में है. लेकिन हक़ीक़त में आरटीआई अब हर स्तर पर दम तोड़ती नज़र आ रही है.

पूरे देश में न जाने कितने ही आरटीआई आवेदन आवेदक द्वारा फॉलोअप के इंतज़ार में दम तोड़ देते हैं. आवेदक अगर उपस्थित हो भी जाए तो उसे सूचना प्राप्त करने के लिए दो बार शुल्क देना पड़ता है. ये मुझे तब समझ आया जब मैंने जबलपुर नगर निगम में भवन शाखा से सम्बंधित एक सूचना अधिकार अधिनियम के तहत आवेदन दिया. 30 दिन बीत गए और मैं आवेदन द्वारा प्राप्त सूचना लेने के लिए पहुँचा. लेकिन सहायक लोक सूचना अधिकारी ने बताया कि सूचना अभी नहीं आयी है.

उन्होंने सम्बंधित विभाग के अधिकारी के पास जाने की सलाह दी. वहां पहुंचकर पता चला कि मेरे आवेदन में जो जानकारी दी जानी है उसकी फ़ाइल अब तक उन्होंने मंगवाई नहीं है. अगले दिन का समय देने के बाद भी फ़ाइल न आ पाने की वजह से सूचना नहीं मिल पाई. उसके अगले दिन फ़ाइल मिलने का आश्वासन देकर मुझे फिर बुलाया गया. फ़ाइल में सम्बंधित सूचना की मुंह दिखाई के बाद आवश्यक दस्तावेज़ों को चिन्हित करके मुझसे फोटोकॉपी के लिए 200 रुपये लिए गए और कहा गया कि मैं अब सहायक लोक सूचनाधिकारी से संपर्क करके सूचना दो दिन बाद प्राप्त कर लूँ.

आज मैं जब सूचना प्राप्त करने पहुँचा तो उसमें सूचना अधूरी पाई, क्योंकि उसमें भवन के लिए स्वीकृत नक्शा नहीं था. जिसके लिए भवन शाखा अधिकारी ने कहा कि उसकी फ़ोटो-कॉपी साहब ने फाड़ दी है और असली नक़्शे की छायाप्रति देने की पेशकश की है. इसके लिए साहब ने आपको मिलने के लिए भी कहा है.

खैर, अब मेरे पास पूरी तो नहीं लेकिन काफ़ी सूचनाएं थीं. लेकिन सहायक लोक सूचना अधिकारी ने फोटो-कॉपी का शुल्क जोड़कर सौ रुपये की रसीद काउंटर से कटवाने के लिए कहा तो मैं असमंजस की स्थिती में पड़ गया. मैंने दुबारा भवन शाखा में संपर्क किया और वहां से फ़ोटो-कॉपी का 130 रुपये का बिल प्राप्त किया. साथ ही 70 रुपये भी वापिस लिए.

बिल लेकर दोबारा सहायक लोक सूचना अधिकारी के पास पहुँचा और उन्हें पूरी बात बतायी, तब उन्होंने विभागीय दुखड़ा सुनाया कि नगर निगम में एक फ़ोटोकॉपी मशीन है. अगर आप उसके भरोसे रहेंगे तो महीनों लग जायेंगे. इसलिए जिसको सूचना जल्दी चाहिए (तीस दिन बीत चुके हैं उसके बाद भी यहाँ “जल्दी” कहा जा रहा है) उसे ऐसा करना पड़ता है. अब कोई इसके लिए आवाज़ उठाये तो कुछ हो. बस, मैंने उन्हें जाते हुए धन्यवाद दिया और कहा मैं उन्हें निराश नहीं करूँगा.

यहां हालात तो फिर भी बेहतर है. मध्य-प्रदेश के साथ-साथ कुछ राज्यों का भी आलम ऐसा है कि कुछ कहा नहीं जा सकता. सूचना लेना इतनी टेढ़ी खीर हो चुकी है कि कुछ कहा नहीं जा सकता. वहीं दूसरी ओर आरटीआई आवेदकों के क़त्ल व उन पर लगातार हमलों की खबरें हर हफ्ते अखबारों में आसानी से देखने को मिल जाते हैं. काश! आम आदमी को साथ जोड़ने की बात करने वाले राहुल गांधी इस ओर भी ध्यान देते. और वैसे भी नरेन्द्र भाई मोदी से इस संदर्भ में ज़्यादा उम्मीद नहीं की जा सकती. आरटीआई कार्यकर्ताओं की हत्या कराने में गुजरात सरकार तो हमेशा से आगे रही है. और आखिर में बताता चलूं कि अब जनता मेरी तरह जागरूक हो चली है….

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