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BeyondHeadlines > Lead > भारतीय राजनीति की बदलती परिभाषा
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भारतीय राजनीति की बदलती परिभाषा

Beyond Headlines
Beyond Headlines Published December 24, 2013
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6 Min Read
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Irshad Ali for BeyondHeadlines

जब आप लीक से हटकर आगे बढ़ते हैं और तेजी से काम करते हुए विकास करते हैं. तब विरोधी आपके खिलाफ़ अनेक प्रतिक्रियाएं करते हैं. विरोधी सर्व-प्रथम आप पर हंसते हैं, लेकिन आप नहीं रुकते हो. तब वे आपको चिढ़ाते हैं, लेकिन आप फिर भी अपने उद्देश्य से नहीं भटकते और आगे क़दम बढ़ाते चलते हैं, तो विरोधी आपसे जान-बूझ कर उलझते हैं. टकराते हैं और परेशान करते हैं. लेकिन आप सब विरोधी प्रतिक्रियाओं को नज़रअंदाज करते हुए आगे बढ़ जाते हैं… तब आखिरकार विरोधियों को आपको स्वीकार करना मजबूरी बन जाता है. यही सब अरविंद केजरीवाल के मामले में देखने को मिल रहा है.

अन्ना के आंदोलन से सामने आए केजरीवाल को शुरुआत से ही राजनीतिक जगत से चुनौती मिलती रही है. कांग्रेस प्रवक्ता मनीष तिवारी ने तो कहा कि ‘संविधान ने व्यवस्था दी है, जिसके तहत लोग चुनकर आते हैं. अगर कुछ व्यक्ति जिनकों अपनी क्षमता पर भरोसा नहीं है और वे देश का कर्णधार बनने की कोशिश करते हैं, तो इससे बड़ी त्रासदी कोई और नहीं हो सकती.’

यही नहीं जन-लोकपाल बिल को पास कराने के संबंध में राजनीतिक दलों ने जनलोकपाल समर्थकों से कहा था कि ‘राजनीति में आओ, सड़क पर कानून नहीं बनते.’ 25 नवंबर 2012 को दिग्विजय सिंह ने तो यहां तक कह दिया था कि ‘केजरीवाल पहले एमपी या एमएलए या कम से कम म्यूनिसिपल कोरपोरेटर ही बनकर दिखाए.’ लेकिन जब आज अरविंद केजरीवाल दिल्ली के मुख्यमंत्री बनने की दहलीज पर खड़े हैं तो सबकी बोलती बंद है.

केजरीवाल ने सड़क पर ही अपनी ‘आम आदमी पार्टी’ बनायी. जनता को पार्टी की हर प्रक्रिया का हिस्सा बनाया. किसी ने ‘आप’ के संबंध में कहा ‘ये पार्टियां तो मानसूनी कीड़ों की तरह होती हैं, ये आती हैं, पैसे कमाती हैं और गायब हो जाती हैं.’ तो किसी ने कहा कि ‘जनता को आप को वोट देकर अपना वोट खराब नहीं करना चाहिए’.

जनता क्या चाहती है? राजनीति के ठेकेदार यह सब नहीं समझ सकते. तभी तो दिल्ली की राजनीति के साथ पूरे भारत में नई राजनीति का आगाज़ होते दिख रहा है. जनता सुशासन चाहती है. जनता शासन-प्रशासन में अपनी भागीदारी चाहती है. जनता पारदर्शिता चाहती है. सिर्फ यही नहीं, जनता राजनीतिक दलों को होने वाले सियासी लाभों से मुक्त लोकतांत्रिक राजनीति चाहती है.

जनता को ज़रुरत है कि उसे बदहाली मुक्त समाज मिले, लेकिन मौजूदा राजनीतिक दलों ने थोड़ा बहुत दिया, तो उसमें बहुत कुछ अधूरा छोड़ दिया. सरकार और राजनीतिक दल मिलकर अपराधी विधायकों और सांसदों को बचाने के लिए अध्यादेश लाते हैं. केंद्रीय सूचना आयोग के दिए गए फैसले कि ‘बड़े राष्ट्रीय दल सूचना के अधिकार के तहत आते हैं’ का विरोध करते हैं. जनता ऐसे राजनीतिक दल नहीं चाहती और न ही ऐसी राजनीति चाहती जो राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर फेल हो.

पाकिस्तान सेना द्वारा भारतीय सैनिकों के सिर काटने का मुद्दा हो या चीनी सैनिकों का भारतीय सीमा में घुसकर बैठने का. देश के रक्षामंत्री, राष्ट्रपति और राजनयिक देवयानी का अमेरिका में अपमान हो, स्विस बैंकों से काला धन वापस न लाने की विफलता हो या मालदीव की घुड़की हो. सभी मामलों में क्या मौजूदा सरकार या विपक्षी दलों की कमजोरी उजागर नहीं होती?

सरकार का उद्देश्य राष्ट्र-हितों की रक्षा और विकास करना होता है लेकिन अगर कोई सरकार या दल अपने स्वार्थों के लिए कलमाड़ी, ए.राजा, कनीमोझी जैसे लोगों को बचाने की कोशिश कर सकते हैं तो क्या वह ऐसा कर जनहित को नज़रअंदाज नहीं करते?

आज सांसदों, विधायकों और राजनीतिक दलों की नैतिकता का ग्राफ अपने निम्नतम स्तर पर पहुंच गया है. यही कारण है कि लोग ‘आम आदमी पार्टी’ जैसे नए दल को हाथों-हाथ ले रहे हैं जबकि इसकी सफलता अभी भविष्य के गर्त में हैं. हां! एक आशा ज़रुर है कि ‘आप’ के आने से देश में विकास होगा, भ्रष्टाचार पर लगाम लगेगी, शासन-प्रशासन में पारदर्शिता बढ़ेगी जिससे गरीबी, बेरोजगारी और महंगाई के स्तर में कमी आएगी.

इसलिए अब देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर-प्रदेश के पूर्व नौकरशाहों, दूसरे दलों के ईमानदार और उपेक्षित कार्यकर्ताओं तथा समाजसेवी लोग ‘ आम आदमी आदमी’ को अपने बायो-डाटा भेज रहे हैं. इससे उम्मीद जगती है कि राजनीति में अब पढ़े-लिखे, जिम्मेदार और ईमानदार लोगों का बोलबाला होगा. जिससे देश को एक नई दिशा मिलेगी. चाहे कोई दल सार्वजनिक रुप से बोले न बोले लेकिन सभी ‘आप’ की कार्यशैली से प्रभावित और अचंभित ज़रुर है

‘आप’ ने राजनीति करने के लिए जात-धर्म को आधार नहीं बनाया बल्कि जन भागीदारी को बढ़ावा दिया. हर मामले में जनता की राय को वरीयता दी है. जो सुशासन का भी मंत्र है और लोकतंत्र की सफलता का आधार भी. ऐसे में अन्य राजनीतिक दलों पर भी नैतिक और अप्रत्यक्ष रुप से ईमानदारी, पारदर्शी, स्वार्थमुक्त राजनीति करने का दबाव बढ़ेगा. जो निसंदेह भारत के विकास और लोकतंत्र को नये आयाम देगा.

(लेखन इन दिनों प्रशासनिक सेवा की तैयारी कर रहे हैं. उनसे  trustirshadali@gmail.com पर संपर्क किया जा सकता है.)

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