श्रीलंका के महान पत्रकार लसंत विक्रमातुंगा को पढ़ा. श्रीलंका के “द संडे लीडर” अखबार के संपादक… वह शख्स जिसने अपनी मौत के अगले दिन प्रकाशित होने वाला संपादकीय पहले ही लिखकर छोड़ दिया था. इस निर्देश के साथ जिस दिन मुझे मार दिया, अगले दिन के अखबार में यही संपादकीय छाप देना.
8 जनवरी 2009 को कोलंबो के निकट विक्रमातुंगा की गोली मारकर हत्या कर दी गई. अगले दिन उनका लिखा आखिरी संपादकीय “द संडे लीडर” में छपा. विक्रमातुंगा जब तक जिए उनके अखबार से चंद्रिका कुमारतुंगा की श्रीलंकाई सरकार बुरी तरह कांपती रही. फिर यही हाल महिंदा राजपक्षे की अगुवाई वाली अगली सरकार का था. वे लिट्टे को इस ग्रह पर नमूदार होने वाले सब से निर्मम और नृशंस संगठनों में से एक मानते रहे. वे यह भी कहते रहे- इस का खात्मा होना चाहिए. पर ऐसा करने के लिए तमिल नागरिकों के अधिकारों को छीनना. उन को बेरहमी से बमों और गोलियों का शिकार बनाना न केवल ग़लत है, बल्कि सिंहलियों के लिए ये शर्म की बात है.
लसंत हमेशा ही कहते रहे कि श्रीलंका विश्व का इकलौता ऐसा देश है जो आए दिन अपने ही नागरिकों पर बम बरसाता है. उन पर इसके पहले भी जानलेवा हमले हुये थे और उन्हें अंदेशा था कि उनकी जान लेने के प्रयास फिर किये जायेंगे. अपने आखिरी संपादकीय में लसंत ने वो लिख दिया था जो विश्व के किसी भी पत्रकार के लिए हर स्थिति में आदर्श सरीखा है-
लसंत ने उस संपादकीय में लिखा जो उनके कत्ल के अगले दिन उनके ही अखबार में छपा-
“कई लोगों को सन्देह है कि संडे लीडर का कोई राजनीतिक एजेंडा है, यह सच नहीं है. यदि हम विपक्ष से ज़्यादा सरकार की आलोचना करते हैं, तो वह केवल इसलिए कि क्रिकेट की भाषा इस्तेमाल करने के लिये क्षमा करें, फील्डिंग करने वाली टीम को गेंदबाजी करने से क्या फायदा.”
तो केजरीवाल साहब… अब फील्डिंग करने वाली टीम को गेंदबाजी करने के लिए हम थोड़े न आए हैं…