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जान बूझ कर अशांति के बीज मत बोइये

Himanshu Kumar

पत्थरबल कश्मीर में पांच ग्रामीणों को सेना ने घर से निकाला और पांच दिन बाद सेना ने प्रेस कांफ्रेंस करके कहा कि हमने पांच पाकिस्तानी आतंकवादियों को मार डाला है.

लेकिन जब मारे गए इन ग्रामीण मज़दूरों के परिवार जनों ने मीडिया में शोर मचाया तो सीबीआई जांच का आदेश दिया गया.

सीबीआई ने लाशों को कब्र में से निकलवाया. बात साफ़ हो गयी मारे गए लोग कश्मीरी गांव के ही थे. सेना के जवानों ने उनके अंग भी काट डाले डाले थे और उन्हें जलाया भी था.

मामला सर्वोच्च न्यायालय में आया. सेना ने सीबीआई जांच का विरोध किया. अदालत ने सेना को दो विकल्प दिए कि या तो मामले की सुनवाई अदालत करेगी या सेना अपनी अंदरूनी प्रक्रिया के तहत इस मामले की जांच करे. सेना ने कहा कि वह अंदरूनी जांच करेगी.

इस महीने की 23 जनवरी को सेना ने कहा है कि उसके जवानों पर कोई अपराध तो छोडिये मामला चलाने का कोई प्रारम्भिक कारण भी नहीं है. इसलिए पांच निर्दोष नागरिकों की मौत के इस मामले को बंद घोषित कर दिया गया.

आप चिल्ला कर कहते हैं कि कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है. लेकिन अपने नागरिकों की हत्या पर आप खुलेआम इस तरह का अन्याय करते हैं. आपकी यह करतूत सिर्फ कश्मीरी नागरिकों के मन में ही गुस्सा और नफ़रत नहीं पैदा करेगा बल्कि यह पूरे देश के कमज़ोर और न्याय-प्रिय नागरिकों के मन में असंतोष पैदा कर रहा है.

ये सर्वोच्च न्यायालय की बेईज्ज़ती है ये पूरी भारत सरकार की बेईज्ज़ती है. ये भारतीय सेना की भी बेईज्ज़ती है. भारतीय सेना को बदमाशों का हज़ूम मत बनाओ. इसे एक लोकतान्त्रिक और सभ्य देश की ज़िम्मेदार सेना बनने में मदद करें. सेना में घुसे हुए बदमाश और अपराधी तत्वों पर ज़रूरी कार्यवाही करें. नागरिकों में सरकार की न्यायप्रियता और निष्पक्षता की भावना पैदा करें. इस तरह लोगों को कुचलने से न देश का फायदा है न सरकार का. जान बूझ कर अशांति के बीज मत बोइये…

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