Lead

सुनंदा पुष्कर : महत्वाकांक्षा की वेदी पर प्राणों की आहूति ?

Alok Kumar for BeyondHeadlines

सुनंदा पुष्कर ने आत्महत्या कर ली या उनकी हत्या हुई. इस रहस्य पर से अभी पर्दा उठना बाकी है. और शायद कभी उठे भी नहीं. बात -बात पर ब्रेकिंग न्यूज़ बनाने वाली इलेक्ट्रॉनिक मीडिया भी कुछ ज्यादा सक्रिय नहीं है, क्योंकि मामला एक केंद्रीय कांग्रेसी मंत्री से जुड़ा हुआ है. सुनंदा पुष्कर की मौत की ख़बर सुनने के बाद मुझे पहले तो फिजा (चर्चित अनुराधा बाली) की याद आई, फिर मुझे कुछ वर्षों पहले की एक सनसनीखेज घटना की याद आई, जब उन दिनों भी एक ऐसी ही घटना चर्चाओं में थी, मगर उस केस में वैसी महिला की ह्त्या की गई थी, जो मीडिया जगत से संबंध रखती थी, उसका नाम था शिवानी भटनागर…

शिवानी भटनागर के केस में कई किस्से सामने आए थे. जिनमें एक था पुलिस अधिकारी आर.के. शर्मा से अवैध संबंधों का. इस मामले में एक दिवंगत चर्चित राजनेता का नाम भी आया था. आज उस बात को कई साल बीत गए… सुनंदा पुष्कर की राजधानी दिल्ली के एक पांच सितारा होटल के कमरे में रहस्यमयी मौत ने एक बार फिर उस याद को ताजा कर दिया. पीछे सुलगते कई सवाल छोड़कर… जिनका उत्तर ढूंढते-ढूंढते सरकारी एजेंसियों और मीडिया को पता नहीं कितना वक्त लग जाएगा!

आज सुनंदा पुष्कर के लिए सोशल मीडिया पर इंसाफ की गुहार लगाई जा रही है. संदेह के घेरे में हैं श्री शशि थरूर एक रसूखदार केंद्रीय मंत्री… शायद इसी लिए यह केस हाई-प्रोफाइल भी हो गया है. कुछ अर्से पहले एक और घटना घटित हुई थी, जिसमें फिजा (चर्चित अनुराधा बाली)  की संदिग्ध परिस्थितियों में अपने आवास पर मौत हो गयी  थी. इसके तार भी एक राजनेता से जुड़े हुए थे. तीनों केस हाई-प्रोफाइल हैं और महत्वाकांक्षी  महिलाओं की मौत से जुड़े हुए हैं.

दशकों पूर्व बिहार की राजधानी पटना में एक ऐसा ही वाक्या घटित हुआ था “बॉबी कांड” के रूप में. उत्तरप्रदेश का चर्चित “मधुमिता-अमरमणि त्रिपाठी” प्रकरण भी अभी तक हम सबों के स्मृति-पटल पर अंकित है.

मैं संदिग्धों व आरोपियों की पैरवी न करते हुए ये पूछना चाहूंगा कि क्या ऐसे मामलों में केवल पुरुषों को ही दोषी माना जाना चाहिए? क्या उन महिलाओं को हम दोषी नहीं ठहराएंगे, जो पहुंच वाले पुरुषों का इस्तेमाल करते हुए शिखर की तरफ बढ़ना चाहती हैं  एवं एक वक्त पर आ कर उनको कुछ समझ नहीं आता कि अब किसी ओर जाया जाए ?

मैं सामाजिक और राजनैतिक सरोकारों से जुड़ा रहता हूँ. ऐसे में काफी जगहों पर आना  जाना होता है. इस आने जाने में एक चीज़ तो देखी है कि पुरुषों से ज्यादा महिलाएं महत्वाकांक्षी होती जा रही हैं. कुछ करने का जुनून, उनको कब किसी ओर ले जाता है. उन्हें खुद भी समझ में नहीं आता. मगर इस जुनून के साथ वो महिलाएं अपनी जिंदगी खो देती हैं. जो जुनून के साथ साथ भावुक हो जाती हैं. जल्द ही सब कुछ हासिल करने की लालसा में अपना विवेक खो देती हैं और अपना सर्वस्व सर्मपित करने से भी गुरेज नहीं करतीं हैं.

मैं सब महिलाएं को दोषी नहीं ठहरा रहा, मगर उन महिलाएं को दोषी जरूर मानता हूँ, जिनको “शॉर्ट-कट” पसंद है. इसके लिए कभी शशि थरूर जैसे विकृत चरित्र वाले व्यक्ति का सहारा लिया जाता है. कभी आर.के. शर्मा जैसे भ्रष्ट पुलिस अधिकारी का, तो कभी चाँद मोहम्मद (चन्द्रमोहन) जैसे वासना में विक्षिप्त लोगों का…

जब हम किसी का इस्तेमाल कर रहे होते हैं, तो हम यह भूल जाते हैं कि कहीं न कहीं वो भी हमारा इस्तेमाल कर रहा है. ऐसे में वो महिलाएं अपनी जान गंवा बैठती हैं, जो बाद में बात दिल पर लगा बैठती हैं. हद से ज्यादा कोई किसी पर यूँ ही मेहरबान नहीं होता. व्यवसाय और राजनीति “एक हाथ दे और दूसरे हाथ ले” के सिद्धांतों पर चलती है.

एक रिपोर्ट में पढ़ा था कि शिवानी भटनागर एक वरिष्ठ पत्रकार बनने से पहले जब प्रशिक्षु थीं, तो उन्होंने अपने सीनियर पत्रकार से शादी की जबकि दोनों की आदतों में बहुत ज्यादा अंतर था. उस पत्रकार एवं पति की बदौलत उनको मीडिया में वो रुतबा हासिल नहीं हुआ, जो बहुत कम समय में मिलना बेहद मुश्किल था. इस दौरान उनकी नज़दीकियां पुलिस अधिकारी आर.के. शर्मा से बढ़ीं, जिसके पीछे त्वरित सफलता पाने की शिवानी की ख्वाहिश काम रही थी. नजदीकियां हदों से पार निकल गयीं. अंततः वो मौत का कारण भी बन गई.

फिजा की बात करें तो फिजा कौन थी, एक अधिवक्ता अनुराधा बाली… मगर राजनीति के गलियारों में पैठ बनाने के लिए मिला एक शादी-शुदा चंद्रमोहन (एक प्रभावशाली राजनैतिक खानदान का बिगड़ैल वारिस) एक प्रदेश का उप-मुख्यमंत्री. दोनों ने शादी भी कर ली चाँद और फिजा बनकर. मगर जब फिजा दुनिया से रुखसत हुईं तो अफसोस के सिवाय उसके पास कुछ नहीं था. ना तो चाँद ही हासिल हुआ और ना ही चाँद सी ऊँचाईयों को पाने की हसरत…

सुनंदा पुष्कर ने चुना एक केंद्रीय मंत्री, जिसके पिछली पारिवारिक जिंदगियाँ सदैव संदेह के घेरों में रहीं. सुनंदा की भी पृष्टभूमि कोई पाक साफ़ नहीं थी. वो एक तथाकथित सोशलाइट थीं, जिसमें शीर्ष के लोगों के साथ की ललक व चाहत थी. मगर यहां सवाल ये उठता है कि सुनंदा पुष्कर और शशि थरूर के बीच ऐसे कौन से हालात बन गए थे, जिसकी परिणति एक असामयिक और संदिग्ध मौत के रूप में हुई? कुछ तो ज़रूर होगा जो शायद महत्वाकांक्षा की अतिशयता से जुड़ा होगा? सुनंदा का मामला जाँच में है और अवश्य ही कोर्ट में भी जाएगा (ऐसा प्रतीत होता है) और पता नहीं कितने दिन चलेगा ?

रहस्यों पर से पर्दा उठाने वाला मीडिया का एक तबका सुनंदा पुष्कर व शशि थरूर की जन्म-कुंडली खंगालना शुरू कर चुका है. एक पाकिस्तानी महिला पत्रकार से शशि थरूर की नजदीकियों का भी जिक्र हो रहा है, जो अवश्य ही जाँच का विषय है. इस महिला पत्रकार की वास्तविक पृष्ठ-भूमि क्या है और एक केंद्रीय मंत्री से उसके जुड़ाव के पीछे की कहानी का मकसद क्या है? नित्य नए सनसनीखेज तथ्य, कई आरोप, कई अफवाहें सामने आ रही हैं और आगे भी आएँगी. सुनंदा पुष्कर की मौत के पीछे अगर शशि थरूर का हाथ है तो कारण भी ढूंढे जाएँगे कि सुनंदा पुष्कर ऐसा कौन दबाब बना रही थी या ऐसे कौन से राज की राजदार थी जिसके कारण उसे मौत मिली ?

बस चलते चलते इतना ही कहूँगा कि सुनंदा पुष्कर के मौत की सच्चाई सामने आए और इस तरह के प्रकरणों से जुड़ीं या जुडनेवाली महिलायों को नसीहत व सबक… आज के इस युग में जब संवेदनाएँ सूख रही हैं और संबंधों का भी बाजारीकरण हो चुका है, अस्तित्व भौतिकवादी अनास्तित्व से घिरा है तो आवश्यकता सजगता और संयम की है. ” जिंदगी से बड़ा कुछ भी नहीं है…”

Loading...

Most Popular

To Top

Enable BeyondHeadlines to raise the voice of marginalized

 

Donate now to support more ground reports and real journalism.

Donate Now

Subscribe to email alerts from BeyondHeadlines to recieve regular updates

[jetpack_subscription_form]