BeyondHeadlinesBeyondHeadlines
  • Home
  • India
    • Economy
    • Politics
    • Society
  • Exclusive
  • Edit/Op-Ed
    • Edit
    • Op-Ed
  • Health
  • Mango Man
  • Real Heroes
  • बियॉंडहेडलाइन्स हिन्दी
Reading: अमेरिका की प्रतिबद्धता या कारोबार…?
Share
Font ResizerAa
BeyondHeadlinesBeyondHeadlines
Font ResizerAa
  • Home
  • India
  • Exclusive
  • Edit/Op-Ed
  • Health
  • Mango Man
  • Real Heroes
  • बियॉंडहेडलाइन्स हिन्दी
Search
  • Home
  • India
    • Economy
    • Politics
    • Society
  • Exclusive
  • Edit/Op-Ed
    • Edit
    • Op-Ed
  • Health
  • Mango Man
  • Real Heroes
  • बियॉंडहेडलाइन्स हिन्दी
Follow US
BeyondHeadlines > World > अमेरिका की प्रतिबद्धता या कारोबार…?
World

अमेरिका की प्रतिबद्धता या कारोबार…?

Beyond Headlines
Beyond Headlines Published February 5, 2014
Share
6 Min Read
SHARE

Irshad Ali for BeyondHeadlines

1991 में सोवियत संघ रुस के विघटन के बाद विश्व की एकमात्र महाशक्ति अमेरिका ने अपना वैश्विक वर्चस्व सिद्ध करने के लिए खाड़ी युद्ध के दौरान व्यापक हस्तक्षेप किया. जिसे ‘कंप्यूटर युद्ध’ या ‘ऑपरेशन डेजर्ट स्ट्रोम’ के नाम से भी जाना गया. अमेरिका ने 1950 के बाद से ही विभिन्न देशों, संगठनों को हथियार देना जारी रखा है. अमेरिका अपने वर्चस्व को सिद्ध करने के लिए समय-समय पर विभिन्न देशों पर सैनिक कार्रवाई या विभिन्न देशों में सैन्य हस्तक्षेप करता रहा है. फिर भी वह अपने आप को वैश्विक सुरक्षा का पहरेदार मानता है.

अमेरिका के पास विश्व में सर्वाधिक परमाणु हथियार हैं. साथ ही अमेरिका विश्व का सबसे बड़ा हथियार निर्माता और निर्यातक देश भी है. इस तथ्य की पुष्टि 31 जनवरी 2014 को जारी हुई ‘स्कॉटहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीटयूट’ (SIPRI) की सालाना रिपोर्ट से हो गई है. रिपोर्ट में कहा गया है कि विश्व के शीर्ष 100 हथियार निर्मातओं की सूची में अमेरिका सर्वोच्च स्थान पर है. रिपोर्ट से यह भी उजागर हुआ है कि वैश्विक स्तर पर हथियारों की बिक्री में अमेरिका की बादशाहत कायम है.

SIPRI की रिपोर्ट के अनुसार विश्व की 100 शीर्ष हथियार निर्माता कंपनियों पर पहले दो पायदान पर अमेरिका की ‘लॉकहीड मार्टिन कॉर्प’ और ‘बोंइग’ हैं. हालांकि हथियारों के निर्यात व निर्माण में रुस ने भी वृद्धि की है मगर इसकी मुख्य वजह देसी खरीद नहीं है.

एक तरफ अमेरिका वैश्विक शांति के पहरेदार होने की वकालत करता है, तो दूसरी तरफ दुनिया के देशों को हथियार निर्यात करता है. क्या यह वैश्विक शांति को बढ़ावी देने वाले संयुक्त राष्ट्र संघ के चार्टर का उल्लंघन नहीं है? विश्व शांति व सुरक्षा को सुनिश्चित करने के लिए अमेरिका संयुक्त राष्ट्र के मंच के साथ-साथ विभिन्न अंतर्राष्ट्रीय मंचों से अपनी प्रतिबद्धता जताता रहा है.

अमेरिका विभिन्न देशों के साथ होने वाले दिपक्षीय समझौतों में भी विश्व शांति के प्रति अपनी प्रतिबद्धता दोहराता है, लेकिन साथ ही वह उन देशों से हथियारों की डील तय कर लेता है. इसका एक उदाहरण वर्ष 2010 में भारत में देखनों को मिला. 2010 में ओबामा भारत दौरे पर आये थे. तब वह भारत के साथ 600 करोड़ रुपये के हथियारों का समझौता करके वापिस अमेरिका लौटे.

क्या दुनिया को हथियार निर्यात करके अमेरिका वैश्विक शांति व सुरक्षा को स्थापित कर सकता है? जबकि अमेरिका इसके परिणाम भुगत भी चुका है. रुस ने 1979 में अफगानिस्तान में साम्यवाद लाने के लिए सैन्य कार्यवाही की थी. तब अमेरिका ने वहां के कबिलाई लोगों को इस्लाम बचाने के नाम पर काफी बड़ी मात्रा में हथियार दिये थे. यही लोग बाद में तालिबानी बने और आतंकवाद का उदय हुआ.

आज अमेरिका अफगानिस्तान में अपनी लड़ाई हार चुका है. लेकिन फिर भी वह सीरिया के विद्रोहियों को हथियार देकर वही गलती दोहरा रहा है. हालांकि सीरिया में राष्ट्रपति बसर-अल-असद बेशर्मी की हद तक अपने पद पर काबिज है. जबकि वहां की जनता अब बसर-अल-असद को सत्ता में देखना नहीं चाहती है.

अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर अमेरिका की भूमिका महत्वपूर्ण है. चाहे कोई भी क्षेत्र हो. मगर अमेरिका के द्वारा अपने आर्थिक हितों के लिए हथियारों का व्यापक पैमाने पर निर्यात करना वैश्विक सुरक्षा के लिए चुनौती ही खड़ी करेगा. साथ ही यह अमेरिका के वैश्विक सुरक्षा का दरोगा होने पर भी सवाल खड़े करता है.

अगर अमेरिका को वैश्विक शांति व सुरक्षा ही लानी है तो उसे हथियारों का निर्यात बंद करके, वैश्विक शांति व सुरक्षा के प्रति अपनी प्रतिबद्धता पूरी करनी चाहिए. अमेरिका को निसशस्त्रीकरण को बढ़ावा देना चाहिए. पर्यावरण सुधार व बचाव पर ध्यान देना चाहिए क्योंकि आने वाले समय में विश्व को सबसे ज्यादा खतरा पर्यावरणीय समस्याओं से ही है.

यदि पर्यावरण सुरक्षित नहीं है तो कोई भी देश सुरक्षित नहीं रह सकता है. इसलिए अमेरिका को इस दिशा में अहम भूमिका निभानी चाहिए. हथियारों के आयात-निर्यात से विकास, समद्धि, शांति और सुरक्षा नहीं खरीदी जा सकती बल्कि यह तो विनाश और पतन को ही बढ़ावा देगा.

वैसे भी खुद हथियारों के ढेर पर बैठकर अमेरिका, नैतिक रुप से किसी अन्य देश को हथियारों के निर्माण न करने के लिए मना करने का अधिकार नहीं रखता. इसलिए अमेरिका को स्वंय अपने हथियारों के जख़ीरे को कम करना चाहिए ताकि अन्य देशों को ऐसा करने की प्रेरणा मिले और वैश्विक शांति व सुरक्षा का विस्तार हो.

(लेखक इन दिनों प्रशासनिक सेवा की तैयारी कर रहे हैं. उनसे trustirshadali@gmail.com पर संपर्क किया जा सकता है.)

Share This Article
Facebook Copy Link Print
What do you think?
Love0
Sad0
Happy0
Sleepy0
Angry0
Dead0
Wink0
“PM Modi Pursuing Economic Genocide of Indian Muslims with Waqf (Amendment) Act”
India Waqf Facts
Waqf Under Siege: “Our Leaders Failed Us—Now It’s Time for the Youth to Rise”
India Waqf Facts
World Heritage Day Spotlight: Waqf Relics in Delhi Caught in Crossfire
Waqf Facts Young Indian
India: ₹1,662 Crore Waqf Land Scam Exposed in Pune; ED, CBI Urged to Act
Waqf Facts

You Might Also Like

I WitnessWorldYoung Indian

The Earth Shook in Istanbul — But What If It Had Been Delhi?

May 8, 2025
HistoryIndiaLatest NewsLeadWorld

First Journalist Imprisoned for Supporting Turkey During British Rule in India

January 5, 2025
Edit/Op-EdIndiaLeadM ReyazMedia ScanWorldYoung Indian

Arrest of Hindu monk in Bangladesh and propaganda in India

December 15, 2024
I WitnessIndiaLeadWorldYoung Indian

From Istanbul to Kolkata: A Call to Revive Kolkata’s Heritage Trams

October 14, 2024
Copyright © 2025
  • Campaign
  • Entertainment
  • Events
  • Literature
  • Mango Man
  • Privacy Policy
Welcome Back!

Sign in to your account

Lost your password?