BeyondHeadlinesBeyondHeadlines
  • Home
  • India
    • Economy
    • Politics
    • Society
  • Exclusive
  • Edit/Op-Ed
    • Edit
    • Op-Ed
  • Health
  • Mango Man
  • Real Heroes
  • बियॉंडहेडलाइन्स हिन्दी
Reading: डॉ. अच्युत सामंत : जिन्होंने बदला आदिवासी बच्चों का जीवन
Share
Font ResizerAa
BeyondHeadlinesBeyondHeadlines
Font ResizerAa
  • Home
  • India
  • Exclusive
  • Edit/Op-Ed
  • Health
  • Mango Man
  • Real Heroes
  • बियॉंडहेडलाइन्स हिन्दी
Search
  • Home
  • India
    • Economy
    • Politics
    • Society
  • Exclusive
  • Edit/Op-Ed
    • Edit
    • Op-Ed
  • Health
  • Mango Man
  • Real Heroes
  • बियॉंडहेडलाइन्स हिन्दी
Follow US
BeyondHeadlines > Lead > डॉ. अच्युत सामंत : जिन्होंने बदला आदिवासी बच्चों का जीवन
LeadReal Heroes

डॉ. अच्युत सामंत : जिन्होंने बदला आदिवासी बच्चों का जीवन

Beyond Headlines
Beyond Headlines Published March 28, 2014 6 Views
Share
9 Min Read
SHARE

Sony Kishor Singh for BeyondHeadlines

कहते हैं अगर इंसान कुछ ठान लेता है तो उसे पूरा करने में जी-जान लगा देता है और अगर भावना सेवा की हो, तो फिर मुश्किलें अपने आप हल हो जाती हैं. प्रतिस्पर्धा और आधुनिकता के इस दौर में आज जहाँ हर इंसान सिर्फ अपने बारे में सोचता है, उस परिस्थिति में एक ऐसा व्यक्ति जिसने स्वयं अपना जीवन गरीबी और अभावों में गुज़ारा, उसने हजारों गरीब बच्चों की जिन्दगी रोशन कर दी. डॉ. अच्युत सामंत ने अपने जीवन का उत्थान तो किया ही साथ-साथ हज़ारों गरीब, अभावग्रस्त आदिवासी बच्चों के कल्याण का भी बीड़ा उठाया.

सुनने में भले ही यह बात अजीब लगे, परन्तु इस बात का प्रत्यक्ष प्रमाण देखने को मिलता है ओडिशा राज्य की राजधानी भुवनेश्वर में, जहाँ डॉ. अच्युत सामंत बीस हज़ार से भी ज्यादा आदिवासी बच्चों को निशुल्क शिक्षा, रहना और अन्य सुविधाएं देने के अपने संकल्प को पूरी निष्ठा से पूरा कर रहे हैं.

अत्यंत गरीबी के कारण दो वक्त का भोजन जुटाने में असमर्थ डॉ. अच्युत सामंत ने कभी हार नहीं मानी और आज वो विश्व के सबसे बड़े निशुल्क आदिवासी आवासीय संस्थान ‘कीस’ के संस्थापक हैं.

उनका उद्देश्य है कि जिस भुखमरी में उनका बचपन बीता वो समाज के गरीब और पिछड़ी जाति के लोगों को न देखना पड़े. सामंत द्वारा स्थापित कलिंग इंस्टिट्यूट ऑफ़ सोशल साइंसेज (कीस), उन सभी गरीब आदिवासी बच्चों के लिए घर और विद्या का मंदिर बन चुका है, जो शायद एक वक़्त की रोटी जुटा पाने के लिए भी बहुत संघर्ष कर रहे होते. आज ये संस्थान ओडिशा की पहचान बन चुका है, हमेशा गरीबी के लिए जाना जाने वाला ओडिशा आज विश्व स्तर पर अपनी उपलब्धियों के लिए जाना जाने लगा है.

डॉ. अच्युत सामंत का जन्म उड़ीसा के कटक जिले के कलारबंका गाँव में हुआ था. माँ निर्मला रानी और पिता अनादि चरण के साथ उनका जीवन अत्यन्त गरीबी में बीता. चार वर्ष की छोटी सी आयु में पिता का चल बसे तो जीवन और कठिनाइयों से घिर गया.

अपने सपने को साकार करना सामंत के लिए आसान नहीं था, लेकिन सामंत ने कभी हार नहीं मानी और अपनी मेहनत के बल पर उत्कल विश्वविद्यालय से रसायन शास्त्र में एमएससी की और उसके बाद आजीविका के लिये भुवनेश्वर विश्वविद्यालय के महर्षि कॉलेज में अध्यापन करने लगे. आज भी एक अविवाहित का जीवन जी रहे सामंत स्वयं एक किराये के मकान में ही रहते हैं और सादा जीवन जी रहे हैं.

‘कीस’ को शुरू करने के बारे में पूछने पर सामंत बताते हैं कि उनके अनुसार शिक्षा द्वारा ही गरीबी के अभिशाप से मुक्त हुआ जा सकता है.

सामंत कहते हैं- “मेरा गाँव से लेकर राज्य की राजधानी तक का सफ़र शिक्षा के कारण ही सफलता से संभव हुआ है, विकास का इससे बेहतरीन मॉडल और कोई नहीं हो सकता कि आप एक अभावग्रस्त बच्चे को शिक्षा की ताकत दे दें, फिर वह अपनी मंजिल खुद तलाश लेगा.”

मात्र पांच हज़ार रुपये की बचत राशि और दो कमरों की जगह से सामंत ने कलिंग इंस्टिट्यूट ऑफ़ इंडस्ट्रियल टेक्नोलॉजी (कीट) की शुरुआत सन् 1993 में की थी, जो आज एक पूर्ण विश्वविध्यालय की शक्ल ले चूका है, इसी इंस्टिट्यूट से प्राप्त होने वाले लाभ का रुख सामंत ने कलिंगा इंस्टिट्यूट ऑफ़ सोशल साइंसेज (कीस) की और मोड़ दिया.

केआईएसएस में 20,000 बच्चों को नर्सरी से स्नातकोतर स्तर की शिक्षा, भोजन, आवास, स्वास्थ्य सुविधा बिल्कुल निशुल्क प्रदान करने के अलावा रोज़गार के सुनिश्चित अवसर प्रदान करा रही है.

उनके अनुसार मुनाफे की सबसे बड़ी परिभाषा भारत के हर गरीब बच्चे को शिक्षित करना ही है, अब वे अपने इस सपने का दायरा बढाने में तत्पर हैं, उनके इस मॉडल से प्रभावित होकर इस वर्ष दिल्ली सरकार ने भी गरीब बच्चों के लिए ‘कीस’ दिल्ली की शुरुआत की, जो सुचारू रूप से चल रहा है और सामंत का प्रयास है कि कीस की शाखाएं और भी राज्यों में खोली जाएं.

कीस विश्वविद्यालय में भारत तथा विश्व की कई जानी मानी हस्तियां जा चुकी हैं और इस अजूबे को देख के प्रभावित भी हुई हैं और उनमे से अधिकतर की यह इच्छा है कि कीस का और विस्तार हो जिसमें वे लोग भी सहयोग करना चाहते हैं.

इस तरह के विकास में कई बार यह प्रश्न भी उठते हैं कि कहीं यह आदिवासी बच्चे विकास की दौड़ में अपनी बहुमूल्य संस्कृति से न कट जाएं, इस बात का विशेष ध्यान रखते हुए कीस में हर आदिवासी जाती के कला एवं संस्कृति के संरक्षण हेतु कई प्रयास किये जाते हैं.

विशेष कार्यक्रमों का आयोजन और विशेष कक्षाओं के माध्यम से इन आदिवासी बच्चों को उनके मूल से जोड़ा जाता है, बल्कि कीस के छात्र तो अपने आदिवासी होने पर गर्व महसूस करते हैं और उनमे एक स्वाभिमान का भाव देखने कोप मिलता है.

कीस में जा कर इन बच्चों से बात करके इस बात का स्पष्ट अनुमान होता है कि ये बच्चे आत्मनिर्भरता की और निरंतर बढ़ रहे हैं. शिक्षा के साथ-साथ इन सभी को आत्मनिर्भर होने के लिए व्यवसायिक प्रशिक्षण भी दिया जाता है.

जिस गुरुकुल पद्दति ने भारत को सम्पूर्ण विश्व में जगत गुरु की उपाधि दिलाई, उसी परंपरा को कीस ने पुनः जीवित कर दिखाया है, जहां शिक्षा का एक मात्र मतलब राष्ट्र का कल्याण ही होता था.

कीस के अधिकतर कार्यों में UNDP, UNICEF, UNESCO, UNFPA  और US Federal Government की भागीदारी से यह पता चलता है कि किस तरह इस संस्थान को विश्व विख्यात संस्थान विकास का एक उत्तम मॉडल स्वीकार करते हैं.

सामंत से बात करने पर पता चलता है कf विश्व के कई और देश भी इस संस्थान को विकास के एक सम्पूर्ण मॉडल के रूप में स्वीकृति देते हैं.

कई राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय समाचार पत्र-पत्रिकाओं ने, सामंत के इस प्रयास को अपने प्रकाशनों में सम्मानित जगह प्रदान की है और उन्हें समय-समय पर कई विशेष सम्मान भी प्राप्त होते रहते हैं. सामंत इस समय स्वयं भी विश्वविद्यालय अनुदान योग (UGC) के सदस्य भी हैं.

अपनी सफलता का राज़ पूछे जाने पर अपने व्यक्तित्व के अनुरूप ही सादे स्वभाव वाले सामंत कहते हैं, “अथक परिश्रम, निरंतर अपने लक्ष्य की और बढ़ना और ईश्वर कृपा, इसी से सब संभव हो पाता है.”

आज जब कई सरकारी ढांचे भी अभावग्रस्त लोगों को शिक्षा का बेहतर अवसर देने में विफल साबित हो रहे हैं ऐसे में एक अकेले इंसान का इतना लम्बा सफ़र तय करना, काबिले तारीफ़ ही है. किसी भी कार्य को आरंभ करने और शिखर तक ले जाने से भी मुश्किल है उसे शिखर पर बनाये रखना, जिसे कर पाने में कीस सफल रहा है, जिसका प्रमाण है आज तक एक भी छात्र का बीच में ही शिक्षा छोड़ के ना जाना.

[box type=”success” ]‘कीस’ को देख कर लगता है कि इसी भारत में कभी तक्षशिला और नालंदा जैसे विश्वविद्यालय भी रहे होंगे जहा विश्व के हर हिस्से से ज्ञान की तलाश में जिज्ञासु आते थे. ये विद्यालय एक साथ कई महान उद्देश्यों की पूर्ति कर रहा है, न केवल भारत को एक बेहतर और प्रशिक्षित मानव संसाधन मिल रहा है बल्कि एक बड़ी तादात देश की मुख्यधारा से जुड़ रही है. आदिवासी समुदाय की यह नयी पौध नक्सलवाद और आतंक की भेंट चढ़ने से भी बच रही है. जिन लोगों का इस्तेमाल अलगाववादी ताकतें देश को क्षति पहुंचाने के लिए करती थीं वही नव भारत का निर्माण करने में संलग्न हैं.[/box]

TAGGED:Dr. Achyutananda Samantaडॉ. अच्युत सामंत : जिन्होंने बदला आदिवासी बच्चों का जीवन
Share This Article
Facebook Copy Link Print
What do you think?
Love0
Sad0
Happy0
Sleepy0
Angry0
Dead0
Wink0
“Gen Z Muslims, Rise Up! Save Waqf from Exploitation & Mismanagement”
India Waqf Facts Young Indian
Waqf at Risk: Why the Better-Off Must Step Up to Stop the Loot of an Invaluable and Sacred Legacy
India Waqf Facts
“PM Modi Pursuing Economic Genocide of Indian Muslims with Waqf (Amendment) Act”
India Waqf Facts
Waqf Under Siege: “Our Leaders Failed Us—Now It’s Time for the Youth to Rise”
India Waqf Facts

You Might Also Like

IndiaLatest NewsLeadYoung Indian

OLX Seller Makes Communal Remarks on Buyer’s Religion, Shows Hatred Towards Muslims; Police Complaint Filed

May 13, 2025
IndiaLatest NewsLeadYoung Indian

Shiv Bhakts Make Mahashivratri Night of Horror for Muslims Across India!

March 4, 2025
Edit/Op-EdHistoryIndiaLeadYoung Indian

Maha Kumbh: From Nehru and Kripalani’s Views to Modi’s Ritual

February 7, 2025
HistoryIndiaLatest NewsLeadWorld

First Journalist Imprisoned for Supporting Turkey During British Rule in India

January 5, 2025
Copyright © 2025
  • Campaign
  • Entertainment
  • Events
  • Literature
  • Mango Man
  • Privacy Policy
Welcome Back!

Sign in to your account

Lost your password?