Afroz Alam Sahil for BeyondHeadlines
नरेन्द्र मोदी ने बिहार के पुरणिया में हुंकार रैली के दैरान मुसलमानों के वोट बैंक को अपने पक्ष में करने की कोशिश में सच्चर समिति के जिन आंकड़ों को पेश कर अपना सीना चौड़ा किया है, दरअसल वो आंकड़ें 2005 के पहले के हैं. बेहतर होता कि नरेन्द्र मोदी यह बताते कि 2005 के बाद उनकी सरकार ने क्या किया? लेकिन शायद 2005 के बाद के 9 सालों का मोदी के पास कोई हिसाब नहीं है. या फिर इस दौरान गुजरात में मुसलमानों की दशा इस क़दर दुर्दशा में तब्दील हुई कि मोदी उसका हिसाब देने के लायक भी नहीं हैं. बिहार की धरती पर नीतिश को निशाना साधते हुए नरेन्द्र मोदी ने पहले की तरह झूठ बोला, उस पर टिप्पणी करने के बजाए हम कुछ तथ्यों को आपके सामने रखना ज़्यादा ज़रूरी समझते हैं.
दिलचस्प जानकारी यह है कि सच्चर समिति के जिन आंकड़ों को मोदी पेश कर अपने 56 इंच के सीने को 58 इंच कर रहे थे, उसी सच्चर समिति को उनकी गुजरात सरकार पिछले ही साल सुप्रीम कोर्ट में अपने एक हलफनामें में असंवैधानिक क़रार दे चुकी है. इतना ही नहीं, पिछले लोकसभा चुनाव में भाजपा सच्चर समिति की रिपोर्ट को एक प्रमुख मुद्दा बना चुकी है. पार्टी ने अपने अभियान के लिए सच्चर कमेटी रिपोर्ट का पुनरावलोकन शीर्षक से एक पुस्तिका भी वितरित की थी. जिसे दिल्ली विश्वविद्यालय के राजनीति विज्ञान के प्रोफेसर राकेश सिन्हा ने लिखा था. भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष राजनाथ सिंह ने राष्ट्रीय कार्यकारिणी बैठक के उद्घाटन भाषण में सच्चर कमेटी की रिपोर्ट को संविधान की मूल भावना के विपरीत ही नहीं बताया, बल्कि यहां तक कहा कि यह कमेटी बनाने का पूरा आधार ही गैर कानूनी होता दिखाई पड़ रहा है. खैर छोड़िए पुरानी बातों को. शायद अब भाजपा को इस रिपोर्ट से कोई खास बैर नहीं है.
मोदी बिहार का गुजरात के मुसलमानों के साथ तुलना करने में शायद यह भूल गए कि 2001 के जनगणना के मुताबिक बिहार में मुसलमान 15.9 फीसद (उस समय झारखंड भी बिहार में ही था) है, जबकि गुजरात का प्रतिशत मात्र 9.1 है.
गुजरात के मुसलमान देश के बाकी हिस्सों के मुकाबले ज्यादा गरीब
जिस समय मोदी यह आंकड़ा पेश कर रहे थे कि “बिहार में शहरी मुसलमानों में गरीबों की संख्या करीब 45 प्रतिशत है, जबकि जिस गुजरात को गालियां दी जाती है वहां यह प्रतिशत केवल 24 है. बिहार में ग्रामीण इलाकों में गरीब मुसलमानों का प्रतिशत 38 है, जबकि गुजरात में केवल 7 प्रतिशत है.” उस समय वो इस संबंध में सच्चर की कुछ और बातों को भूल गए. और हमेशा झूठ बोलने की आदत में 33 को 38 बता डाला. जी हां! रिपोर्ट के मुताबिक साल 2004-05 में बिहार के ग्रामीण इलाकों में गरीब मुसलमानों का प्रतिशत 33 है.
काश! मोदी सच्चर रिपोर्ट में लिखे इस बात को बताते कि गुजरात में मुसलमानों की गरीबी दर ग्रामीण एससी/एसटी से थोड़ा कम ज़रूर है, परन्तु ओबीसी और हिन्दूओं की तुलना में काफी अधिक है. काश! मोदी न्यूयॉर्क टाइम्स में लिखे इस बात को झूठला पाते कि ‘गुजरात में रहने वाले मुसलमान भारत के बाकी हिस्सों के मुसलमानों के मुकाबले ज्यादा गरीब हैं.’
गुजरात के सरकारी नौकरियों में मुसलमान
काश! मोदी सच्चर रिपोर्ट के इस बात को भी बता पाते कि गुजरात में सिर्फ 5.4 प्रतिशत मुसलमान सरकारी नौकरियों में हैं, जबकि बिहार में यह आंकड़ा 11.2 प्रतिशत है, जो उस समय पूरे देश में सबसे अधिक था.
गुजरात में वक्फ सम्पत्तियों का सच
काश! मोदी सच्चर रिपोर्ट के इस बात को भी बता पाते कि गुजरात में 22,485 वक्फ सम्पत्तियां हैं, जिनसे भारी-भरकम मलाई खाने के लिए गुजरात सरकार को मिलता रहा है, और न जाने कितनी वक्फ सम्पतियों गुजरात सरकार हड़प चुकी है. जिसका जवाब वो आरटीआई के ज़रिए भी देने में कतराती है. जानकारी बताती है कि इस समय गुजरात में सिर्फ 11,592 वक्फ सम्पत्तियां ही बची हुई है. बाकी के 11 हज़ार सम्पत्तियां कहां गई यह मोदी ही बता सकते हैं. और इन सम्पत्तियों से कमाई को मोदी सरकार ज़ीरो बताती है.
इसके विपरित सच्चर रिपोर्ट के मुताबिक बिहार में सिर्फ 2,459 वक्फ सम्पतियां ही हैं. जबकि इस समय बिहार सुन्नी वक्फ बोर्ड के पास 2,548 वक्फ सम्पत्तियां हैं. और अच्छा खासा रेविन्यू जेनरेट कर रही है. शिया वफ्फ बोर्ड के आंकड़े अभी अलग हैं.
गुजरात के जेलों में बंद मुसलमान
काश! मोदी सच्चर रिपोर्ट के इस बात को भी बता पाते कि उनके गुजरात में सबसे अधिक मुसलमान नौजवान जेलों में बंद हैं. यह बात खुद हाल-फिलहाल राजेन्द्र सच्चर साहब भी बता चुके हैं. सच्चर साहब उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश से मिलकर यह भी कह चुके हैं कि गुजरात के जेलों में बंद अधिकतर मुस्लिम युवा उत्तर प्रदेश के हैं.
वहीं BeyondHeadlines को नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो से हासिल 2012 की रिपोर्ट बताती है कि इस साल गुजरात में 932 मुसलमान बच्चों को सज़ा सुनाई दी गई. जो जेल की जनसंख्या का 21 फीसद आबादी है. वहीं 1583 मुसलमान कैदी अंडर ट्रायल हैं, जो जेल की आबादी के 24 फीसद है. वहीं साल 2012 में 151 मुसलमान कैदियों को डिटेन किया गया है, जो गुजरात के जेल की आबादी का 30 फीसद है.
सारी योजनाएं फेल, राजनीति में कोई भागीदारी नहीं
इसी गुजरात में प्रधानमंत्री 15 प्वाइंट प्रोग्राम पूरी तरह से फेल है. यहां के गरीब अल्पसंख्यक छात्रों को छात्रवृत्ति तक नहीं मिल पाती. इससे बड़ा अन्याय यहां के अल्पसंख्यकों के साथ और क्या होगा?
काश! मोदी यह भी बताते कि गुजरात के पॉलिटिक्स में मुसलमानों की हिस्सेदारी क्या है? आलम तो यह है कि गुजरात के दो मुस्लिम विधायको पर भी भाजपा में शामिल होने का दबाव लगातार डाला जाता रहा है. (जिसकी खबर हम BeyondHeadlines पर कर चुके हैं)
दूसरी तरफ सच्चाई यह कि इसी गुजरात के मुसलमान अपने चंदे से भाजपा को चलाने का काम भी कर रहे हैं. अब यह जानना दिलचस्प होगा कि गुजरात के अमीर मुसलमान पार्टी को चंदा अपनी खुशी से देते हैं या फिर वो आज भी किसी डर में जी रहे हैं.
गुजरात के सरकारी स्कूलों का सच
मोदी अपने भाषण में साक्षरता दर की बात कर रहे थे, पर यह बताना भूल गए कि गुजरात में सरकारी स्कूलों की हालत कैसी है? क्या पढ़ाया जाता है इन स्कूलों में? कैसे इतिहास को तोड़-मरोड़ कर बच्चों को पेश किया जा रहा है? गुजरात के बच्चे गांधी के जन्म दिवस तक गलत जानते हैं. आप ही के गुजरात के एक गैर सरकारी संगठन प्रथम के मुताबिक ग्रामीण गुजरात में करीब 95 फीसदी बच्चे विद्यालयों में पंजीकृत हैं, लेकिन ज्ञान का स्तर काफी कम है. पांचवीं कक्षा में पढऩे वाले करीब 55 फीसदी बच्चे दूसरी कक्षा के पाठ्यक्रम नहीं पढ़ पाते हैं. लगभग 65 फीसदी बच्चे ऐसे हैं जो गणित के सामान्य जोड़ घटाव भी नहीं कर पाते हैं. इससे बड़ी शर्म की बात गुजरात के लिए क्या होगी?
अपने भाषण में मोदी बार-बार इस बात पर ज़ोर दे रहे थे कि गुजरात में हमने ‘सच़्ची’ धर्मनिरपेक्षता पर अमल किया है. पर क्या मोदी व उनकी पार्टी धर्मनिरपेक्षता का मतलब समझती भी है? और आखिर में एक बात और… गुजरात मोदी सरकार से पहले भी एक सम्पन्न राज्य रहा है. इसे पहले से एक इंजस्ट्रीयल स्टेट के तौर पर देखा जाता रहा है. ऐसे में बिहार से तुलना कितना जायज है मोदी को इस बात पर भी एक बार ज़रूर सोच लेना चाहिए…