Fahmina Hussain for BeyondHeadlines
नई दिल्ली : जब सारा हिन्दुस्तान होलिका दहन की तैयारी में मग्न होता है, ठीक उसी समय जेएनयू के छात्र ‘बारात’ की तैयारियों में मस्त होते हैं. पूरे रस्म व रिवाज के साथ ताप्ती होस्टल से एक अद्भूत बारात ढोल-नगाड़ों के साथ जेएनयू परिसर में घूमते-घामते झेलम हॉस्टल के लॉन में पहुंचती है. बारात का झाड़ू के साथ भव्य स्वागत किया जाता है. फिर शुरू होता है जेएनयू का मशहूर ‘महा चाट सम्मेलन’…
लेकिन इस बार इस ‘महा चाट सम्मेलन’ में झाड़ू का प्रयोग प्रतिबंधित कर दिया गया था ताकि इसका फायदा कोई राजनीतिक पार्टी न ले सके. लेकिन दुल्हों में ‘अरविन्द केजरीवाल’ ज़रूर नज़र आए वो भी झाड़ू के साथ… कान मफलर से ढ़का हुआ, शरीर पर हाफ स्वेटर के साथ-साथ अपने सदाबहार खांसने वाले स्टाइल में… साथ ही साथ राहुल गांधी, नरेन्द्र मोदी, लालू प्रसाद यादव या अन्य नेता जनता को कैसे चाटते हैं, इन बातों से भी यहां मौजूद जनता को परिचित कराया गया. जिसका सबने जमकर लुत्फ उठाया.
दरअसल, जेएनयू की यह अद्भूत परंपरा पिछले 30 सालों से चली आ रही है. पहले यह ‘महा चाट सम्मेलन’ झेलम हॉस्टल के मेस में ही आयोजित किया जाता था. लेकिन लोगों की बढ़ती भीड़ व दिलचस्पी को देखते हुए सन् 2001 से इसे लॉन में शिफ्ट कर दिया गया. छात्र बताते हैं कि तभी से ताप्ती हॉस्टल से बारात निकालने की रवायत भी शुरू हुई.
इस ‘महा चाट सम्मेलन’ के आयोजन की पूरी ज़िम्मेदारी झेलम चाट समिति की होती है और झेलम का हॉस्टल प्रेजिडेंट आमतौर पर इसका अध्यक्ष होता है. कैंपस के पुराने चाट इसके निर्णायक मंडल में शामिल होते हैं और वक्ताओं को ग्रेड देते हैं. बेहतर प्रदर्शन करने वालों को ‘चाट’ और ‘चटाइन’ का खिताब दिया जाता है, लेकिन इस बार यह निर्णय लिया गया है कि अब से जेंडर बायसनेस नहीं चलेगी. जिस तरह महिला नेता को ‘नेताइन’ या ‘नेतानी’ नहीं कहते हैं, उसी प्रकार अब हम ‘चटाइन’ नहीं कहेंगे. लड़कियों को भी अब ‘चाट’ का ही खिताब दिया जाएगा.
यह सम्मेलन देर रात तक मामू के इंतज़ार में चलता रहता है. जब आगमन होता है और वो अपने शायरी व अपनी बातों से लोगों का मनोरंजन कर देते हैं तब जाकर इसके समाप्ती की घोषणा की जाती है, और फिर यहां से शुरू होता है कैंपस में रंगों वाली होली का आगाज़…
जेएनयू की एक सबसे बड़ी देन है यहां का सबसे अलग कल्चर… और वही बात इस ‘महा चाट सम्मेलन’ में भी बखूबी देखने को मिलता है. होली के जश्न में यहां हंसी-ठिठोली खूब चलती है, भोजपूरी गानों व संवादों का प्रयोग खूब किया जाता है, लेकिन यह छिछोरेपन में न बदल जाए, इसका खास ख्याल रखा जाता है. यही कारण है कि लड़कियां भी सहज भाव से इस ‘महा चाट सम्मेलन’ में खूब भाग लेती हैं और खूब मस्ती भी करती हैं.
शायद यही वजह है कि ‘रांझणा’ फिल्म के डायरेक्टर आनंद एल. राय को आज भी मलाल है कि काश फिल्म में बनारस की होली के साथ जेएनयू के इस ‘महा चाट सम्मेलन’ और यहां की होली को शामिल कर लिया होता तो फिल्म और ज्यादा कमा लेती…