Edit/Op-Ed

दूसरे के काम का श्रेय अपने नाम कर लेते हैं मोदी

Uday Prakash

शायद 1995-96 का साल रहा होगा, जब मैं ‘भारतीय कृषि का इतिहास’ नामक विषय पर, एक निजी कंपनी के लिए, कृषि मंत्रालय के एक बड़े महत्वाकांक्षी कार्यक्रम पर काम कर रहा था. यह टेलीविज़न पर, राष्ट्रीय चैनल पर प्रसारित होने वाला कार्यक्रम था.

उस समय मैंने भारत में ‘हरित क्रांति’, ‘रजत क्रांति’, ‘पीत क्रांति’ वगैरह विषयों के साथ-साथ ‘श्वेत क्रांति’ यानी ‘दुग्ध क्रांति’ पर भी काम किया. और ज़ाहिर है, ‘श्वेत क्रांति’ का ज़िक्र हो और ‘अमूल’ का नाम न आये, ऐसा कैसे हो सकता है?

उसी दौरान ‘श्वेत क्रांति’ और ‘अमूल’ के जनक और पितामह महान वर्गीज़ कूरियन से भेंट हुई. दूर-दर्शन या कृषि मंत्रालय के आर्काइव्स में वह 45 मिनट की डाक्युमेंटरी कहीं पड़ी होगी. जिसमें उस महान भारतीय का साक्षात्कार भी है, जिसका नाम वर्गीज़ कूरियन था और जिसके कारण इस देश में, समूची दुनिया को आश्चर्य में डालने वाला, ‘अमूल’ नाम का सहकारी आंदोलन ( कोआपरेटिव मूवमेंट) संभव हुआ था.

आज तक ‘अमूल’ मक्खन, मिल्क पाउडर, चीज़, दही, श्रीखंड, दूध आदि का एक लोकप्रिय ब्रांड है. लेकिन उस समय, आज से बीस-बाइस साल पहले मैं किसी नरेंद्र मोदी नाम के व्यक्ति को नहीं जानता था. शायद इस देश का, या गुजरात के शहर आनंद का, जहां ‘अमूल’ संभव हुआ यानी ‘श्वेत क्राति’ घटित हुई, वहां कोई भी नरेंद्र मोदी नामक व्यक्ति का नाम नहीं जानता था.

निस्संदेह, इस क्रांति के नायक थे-वर्गीज़ कूरियन.

दुख होता है. ताज्जुब होता है और शर्म आती है, जब कोई राजनीतिक नेता, उस अपूर्व ऐतिहासिक सफलता का श्रेय अपने खाते में दर्ज कर लेता है.

यह ऐसा ही है, जैसे पंजाब और हरियाणा में कामयाब हुए ‘हरित क्रांति’ का उल्लेख करते हुए, कोई राजनीतिक नेता, महान वैज्ञानिक बोरोलाग, एम.एस.स्वामीनाथन और वहां के मेहनतकश किसानों को भुला कर, खुद अपने आप को श्रेय दे!

‘हरित क्रांति’ एक ज़माने में, उसकी चाहे जितनी भी सीमाएं रही हों, एक ऐसा आंदोलन था, जिसने दुनिया के सामने, अपना पेट भरने के लिए, भूखा कटोरा फैलाए इस देश को अन्न के मामले में आत्मनिर्भर बनाया.

राजनीतिक नेता झूठ के पुतले हैं. वे इस देश के दीमक, खटमल और पिस्सू और जोंक हैं. इनका योगदान क्या है, क्या हम नहीं जानते ?

नोटः यह लेख मशहूर हिंदी लेखक उदय प्रकाश की फ़ेसबुक वॉल से लिया गया है.

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