Exclusive

‘जेड प्लस’ का राज…

Afroz Alam Sahil for BeyondHeadlines

हमारे देश में ‘जेड प्लस सुरक्षा’ का हक़दार कौन है? यह बात अगर सामने आ गई तो आफ़त टूट पड़ेगी. जनता के गाढ़ी कमाई के पैसों पर किन लोगों को सुपर कमान्डोज़ की सुरक्षा मुहैया कराई जा रही है, यह जानने का हक़ खुद इस देश के बेचारी जनता को भी नहीं है. ये हम नहीं कह रहे हैं, बल्कि खुद इस देश का गृह मंत्रालय सूचना के अधिकार कानून के आड़ में इन अजीबो-ग़रीब तर्को की बुनियाद पर सूचना देने से इंकार कर रही है.

वेलफेयर पार्टी के राष्ट्रीय सचिव डॉ. क़ासिम रसूल इलियास ने आरटीआई के ज़रिए गृह मंत्रालय से यह जानने की कोशिश की थी कि इस देश में कितने लोगों को ‘जेड प्लस सुरक्षा’ हासिल है और उनके नाम क्या हैं?

आरटीआई के इस सवाल के जवाब में गृह मंत्रालय का स्पष्ट तौर पर कहना है कि सूचना के अधिकार की धारा- 8(1)(g) और 8(1)(j) के तहत यह सूचना नहीं दी जा सकती.

स्पष्ट रहे कि सूचना के अधिकार की धारा- 8(1)(g) यह कहती है कि ऐसी सूचना आपको नहीं मिल सकती, जिसके प्रकटन से किसी व्‍यक्ति के जीवन या भौतिक सुरक्षा को खतरा हो, अथवा सूचना के ऐसे स्रोत की पहचान या कानून को लागू करने अथवा सुरक्षा प्रयोजनों के लिए विश्‍वास में दी गई जानकारी का पता चल जाने का अंदेशा हो. वहीं धारा- 8(1)(j) के मुताबिक आपको ऐसी सूचना नहीं मिलेगी जिसका किसी सार्वजनिक गतिविधि या हित से कोई संबंध नहीं है, या जिससे किसी व्‍यक्ति की निजता का अवांछित अतिक्रमण होता है. लेकिन यही धारा यह भी कहती है कि अगर मामला बड़ी संख्‍या में लोगों के हित से जुड़ा हुआ है तो वैसी सूचना  सूचना अधिकारी को उपलब्ध कराना होगा.

अपनी आरटीआई में डॉ. इलियास ने यह भी पूछा था कि पिछले पांच सालों में लोगों को ‘जेड प्लस सुरक्षा’ देने पर कितना खर्च हुआ. इस सवाल के जवाब में गृह मंत्रालय का कहना है कि ‘जेड प्लस सुरक्षा’ देने की प्रक्रिया में केन्द्र व राज्य सरकारों की कई एजेंसियां शामिल होती हैं, इसलिए खर्च बता पाना मुश्किल है और हमारे दफ्तर में इसका कोई हिसाब-किताब भी नहीं रखा जाता है.

हालांकि सच्चाई यह है कि सरकार पिछले साल सुप्रीम कोर्ट में एक हलफनामें में यह बता चुकी है कि देश की राजधानी में वीआईपी सुरक्षा पर हर साल तकरीबन 341 करोड़ का खर्च हो रहा है. यही नहीं, गृह मंत्रालय ‘जेड प्लस सुरक्षा’ पाने वालों की सूची भी कोर्ट को सौंप चुकी है.

इतना ही नहीं, सरकार अदालत को यह भी बता चुकी है कि देश की राजधानी में 376 वीआईपी केन्द्रीय हैसियत में और 83 स्थानीय वीपीआई को सुरक्षा मुहैया कराई जा रही है. और 8049 पुलिस जवान इनके संरक्षण में लगे हुए हैं. जबकि देश में एक लाख की आबादी पर सिर्फ 137 पुलिस वाले ही तैनात हैं. आंकड़ें यह भी बताते हैं कि पुलिस महकमें में फिलहाल 22 फीसद पद खाली हैं.

इस पूरे मसले में डॉ. इलियास का कहना है कि एक तरफ तो हमारी सरकार जनता के खून-पसीने की कमाई को इन तथाकथित वीआईपीज़ की सुरक्षा पर बेतहाशा खर्च कर रही है, वहीं उन्हें यह जानने का हक़ भी नहीं दिया जा रहा है कि कितनी रक़म और किन लोगों पर खर्च की जा रही है. वो आगे बताते हैं कि जेड प्लस सुरक्षा को नेताओं व कारपोरेट्स ने ‘स्टेटस सिम्बल’ बना लिया है, जिसका मक़सद झूठी शान व शौकत का प्रदर्शन है. और यह सब कुछ जनता की गाढ़ी कमाई से हो रहा है.

दीगर बात यह है कि राहुल गांधी व उनकी सरकार जिस आरटीआई को अपनी सबसे बड़ी कामयाबी के तौर पर गिनाते नहीं थकते हैं, उसी कामयाबी की धज्जियां रोज़ ही खुलेआम उड़ाई जा रही हैं और वो भी उनकी अपनी ही सरकार द्वारा…

Loading...

Most Popular

To Top

Enable BeyondHeadlines to raise the voice of marginalized

 

Donate now to support more ground reports and real journalism.

Donate Now

Subscribe to email alerts from BeyondHeadlines to recieve regular updates

[jetpack_subscription_form]