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बड़ी दुश्मनी के लिए छोटी दुश्मनी भुलानी पड़ती है…

Afroz Alam Sahil for BeyondHeadlines

बनारस की चुनावी जंग जैसे-जैसे नज़दीक आ रही है, चुनावी समीकरण नई पलटी मारते दिखाई दे रहे हैं. बल्कि सच पूछे तो बनारस की लड़ाई एक बेहद दिलचस्प मोड़ पर पहुंच गयी है. मोदी को हराने की खातिर अब तक एक दूसरे के खांटी दुश्मन रहे अब गलबहियां करते दिखाई दे रहे हैं. बनारस की गलियों में कांग्रेस के उम्मीदवार अजय राय और कौमी एकता दल के मुख़्तार अंसारी की पुश्तैनी अदावत की कहानियां बिखरी हुई हैं. मगर मोदी से पार पाने की खातिर अजय राय ने मुख़्तार की ओर दोस्ती का हाथ बढ़ा दिया है. उधर मुख़्तार की पार्टी के भी सुर बदले हुए हैं. उसका अब कहना है कि बड़ी दुश्मनी की खातिर छोटी दुश्मनी भुलाई जा सकती है.

कौमी एकता दल के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष अतहर जमाल लारी BeyondHeadlines से खास बातचीत में बताते हैं कि ‘हमने मुलायम और मायावती से अनुरोध किया है कि वो अपने कैंडिडेट वापस ले लें.’ वो बताते हैं कि सच पूछे तो सपा और बसपा दोनों ही पार्टियों के उम्मीदवार डमी साबित हो रहे हैं.  वो अपना समर्थन किस पार्टी को देंगे? यह सवाल पूछने पर वो बताते हैं कि जो भी मोदी को हराने की ताक़त रखता है, कौमी एकता दल उसे अपना समर्थन देगी. और काफी मज़बूती के साथ देगी.

वो यह भी बताते हैं कि चाहे नेता मीडिया में हमसे सम्पर्क करने या समर्थन लेने की बात छिपाने की कोशिश कर रहे हो, लेकिन सच यह है कि सारे नेता हमारे समर्थन के लिए हमसे सम्पर्क कर रहे हैं. चाहे वो केजरीवाल के लोग हो या अजय राय के…

इतना ही नहीं, अतहर लारी अपने मोबाइल में अजय राय की कॉल करने का समय भी दिखाते हैं. 11 अप्रैल को 3 बजकर 46 मिनट पर… उनके मुताबिक अजय राय ने कॉल कर उनका समर्थन  मांगा था. लारी ये भी कहते हैं कि बड़ी दुश्मनी के लिए छोटी दुश्मनी भुलानी पड़ती है.

उधर मुख़्तार के खिलाफ खुलकर बोलने वाले अजय राय का रुख भी काफी बदला हुआ है. उनसे बार-बार पूछने पर कि क्या उन्हें मुख़्तार से समर्थन पर कोई गुरेज़ है, वो मुख़्तार के खिलाफ कुछ नहीं कहते और सारा ज़िम्मा पार्टी पर डाल देते हैं. उनका बस एक ही जवाब है कि ‘मैं कुछ नहीं बोलूँगा. सब पार्टी तय करेगी. और पार्टी जो तय करेगी, वो हमारे लिए सर्वमान्य होगा.

अजय राय और मुख़्तार अंसारी कभी एक दूसरे के जानी दुश्मन थे. दुश्मनी भी नई नहीं, बल्कि पुश्तैनी है. मुख़्तार अंसारी पर अजय राय के भाई अवधेश राय की हत्या और दूर के रिश्तेदार कृष्णानंद राय की हत्या का भी आरोप है. अजय राय भी मुख्तार अंसारी के निशाने पर रहे हैं. बल्कि मुख्तार पर कोर्ट में गवाही के दौरान अजय राय पर हमला करवाने का भी आरोप है. उस वक्त अजय राय बाल-बाल बच गए थे.

अजय राय को कांग्रेस ने लम्बे इंतज़ार के बाद बनारस से अपना उमीदवार घोषित किया है. पिछले लोकसभा चुनाव में मुख़्तार अंसारी को बनारस से 1.87 हज़ार वोट मिले थे. अजय राय की नज़र इन्हीं वोटों पर है. उधर कौमी एकता दल भी सपा बसपा की उम्मीदवारी वापस करने पर जोर डाल रहा हैं.

कहा जाता है कि बनारस का जो कॉम्बीनेशन है, वो बहुत ही दिलचस्प है. यहां की लड़ाई में अलग-अलग जातियों के वोट-बैंक काफी मायने रखते हैं. चाहे वो भूमिहार वोट-बैंक हो, ब्रह्मण वोट-बैंक हो या फिर मुस्लिम वोट बैंक… सब इन्हें अपने साथ करने के लिए दिन-रात एक किए हुए हैं. इन वोट बैंकों को अपने पक्ष में करने में करने के लिए नरेन्द्र मोदी को भी काफी मुशक्कत करना पड़ रहा है. बज़ाब्ता  गुजरात से आए कई टीम इसके लिए काम कर रहे हैं. ऐसे में मोदी को हराने के लिए अगर पुरानी दुश्मनी दोस्ती में बदल जाए तो कोई हैरान करने वाली बात नहीं है. और वैसे भी राजनीत बड़े-बड़े समीकरण ध्वस्त कर देती है और नए समीकरण बना देती है. अब देखना दिलचस्प होगा कि मुख्तार व अजय की दुश्मनी, दोस्ती में तब्दील होने की तारीख क्या होगी?

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