हतप्रभ मोदी, हतप्रभ मोदी…

Beyond Headlines
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Yamuna Prasad Pandeyfor BeyondHeadlines

अलापते हैं हर-हर मोदी, दावा करते घर-घर मोदी

कहते हैं हर दिल में मोदी, काशी के कण-कण में मोदी

                नर-नर मोदी, निर्भय मोदी,

                जनप्रिय मोदी, जय-जय मोदी

कैसी जनप्रियता निर्भयता, बैठे अनुप्रिया की गोदी,

                हतप्रभ मोदी हतप्रभ मोदी

 

ओम प्रकाश सिंह से पूछो, कितने हैं मनभावन मोदी

और केशरी नाथ बताएं, कितने लोक लुभावन मोदी

अपने निजी स्वार्थ में सौदा, करने में हैं माहिर मोदी

धीरे-धीरे हो जायेगा, कैसे हैं जग जाहिर मोदी

सौदा कर सत्ता के खातिर, हो गये रामविलासी मोदी

क्या आश्चर्य कि सत्ताहित, हो जाएं शाहबुद्दीन मोदी
नहीं आत्मविश्वासी मोदी,

                  घोर हैं अवसरवादी मोदी

यह कर देंगे वह कर देंगे, जैसे बादशाह हों मोदी

लोकतंत्र है फिर भी बकते, जैसे शहंशाह हों मोदी

                  कितने आत्मश्लाघी मोदी,

                  कितने हैं अभिमानी मोदी

पर जो किया लगा उससे, दूसरे सोहरावर्दी मोदी

राजधर्म जो नहीं निभाये, ऐसे हैं अमर्यादी मोदी

                   कैसे हैं अतिवादी मोदी,

                   कितने हैं उन्मादी मोदी

उनके विष बीजों के खातिर, है ज़मीन सूखी या ओदी

लेकिन बनने को आतुर हैं, हिटलर या इब्राहिम लोदी

काबिलियत-कूव्वत हो ना हो पर, अधिनायकवादी मोदी

                     सोच से फासीवादी मोदी,

                     विधा से नाजीवादी मोदी

सत्ता कि अतिलोलुपता में, अपनों की ही कब्र है खोदी

मान-अपमान भुलाकर कुछ ने, वह ही ले ली उन्होंने जो दी

अडवाणी गांधीनगर गये, और गये कानपुर जोशी

मोदी के दौर में भूल गये, अपनी-अपनी मदहोशी

जसवन्त हरेन पाठक अश्विनी, तो उतना भी ना पाये

भले भी बीजेपी में अपनी, सारी उम्र गंवाये

मोदी नहीं संघ-भागवत, मोदी दौर के पीछे

जिन्होंने बीजेपी नेताओं के, सुख चैन हैं नीछे

सदा नागपुर से निश्चित, होता सबका अस्तित्व

किसका क्या होगा, कैसा होगा किसका व्यक्तित्व

संघ को तो केवल हिंदुत्व का, चेहरा उग्र है भाता

अडवाणी जोशी या मोदी, जो कोई अपनाता

एक समय अडवाणी जोशी, भी थे बड़े चहेते

फीके पड़ जाने पर किसी का, नाम नहीं वे लेते

इन्होंने भी एक दौर में थी, हिंदुत्व कि अलख जगायी

अतिवादी नेता के रूप में, निज पहचान करायी

सोमनाथ रथयात्रा कर, माहौल को था गरमाया

कुछ ना सूझा तो, लालचौक पर राष्ट्रध्वज फहराया

अटल बिहारी की भी नसीहत एकदम से ठुकराया

राजधर्म का निर्वहन का भी, अनुरोध रास न आया

पर ये केवल कहते थे, मोदी ने कर दिखलाया

भागवत, संघ को इसीलिए, मोदी का चेहरा भाया

मोदी उच्छश्रिंखल हो जायं, तो क्या उनकी है गलती

इसी में उनकी सार्थकता, क्यों अहंकारिता खलती

उनके भी न हुए जिन्होंने पाल-पोष कर बड़ा किया

और विपत्ति काल में भी, देकर सहारा खड़ा किया

अत्यंत महत्वाकांक्षी हैं, क्या कर जायेंगे पता नहीं

भारत कि विपदा का कोई, वह कर जायें खता नहीं

कहते हैं कि लहर प्रबल है, मोदीमय है देश

फिर क्यों बाहर से लाये हैं कंडीडेट विशेष

राजनाथ गाजियाबाद को छोड़ लखनऊ आये

फिर कैसे समझें कि मोदी जन-जन में हैं छाये

मोदी लहर में भी जीत का, उनको रहा भरोसा

इसीलिए अटल शरण में, जगी है उनको आशा

शरसैया पर पड़े अटल जी, देख रहे सब खेल

क्या होगा भविष्य जब, नेताओं में ही ना मेल

अगर लहर में भी अपनों पर, इतना है संदेह

जो थे जनमानस में प्रतिष्ठित, अब तक निःसंदेह

नेता होंगे मायूस, हतोत्साहित होंगे जब वर्कर

तो मोदी का रथ रुक जायेगा, कुछ दूर खिसककर

मिशन दो हजार चौदह, फिर होगा चकनाचूर

और भागवत मोदी, रोने को होंगे मजबूर

आज आर.एस.एस. खुलकर, बीजेपी पर हुआ सवार

बीजेपी मृतप्राय हुई, मच गया है हाहाकार

भारत की ना राजनीति के लिए है, शुभ संकेत

दुर्भाग्यपूर्ण परिणाम, अगर ना जनता हुई सचेत

गाँधी जी की हत्या में भी, जो अब तक हैं संदिग्ध

कैसे वह जनमानस में, हो सकते हैं स्निग्ध

उनके अतीत का एक अंधेरा, पक्ष भयंकरतम है

स्मरण मात्र से रूह कांपती है, इतना निर्मम है

अहमदाबाद के दंगे से, जिसकी जो प्रासंगिकता

जिसके नेतृत्व के पीछे हो, हिंदुत्व की यह बर्बरता

छिन्न-भिन्न हो सकती जिसमें, सामजिक-समरसता

क्या यह देश के हित में होगा, आहट हो राष्ट्रीयता

विकृत एक मुखौटा बनकर के, मोदी हैं उभरे

संघ के इसके पीछे, न जाने क्या राज़ हैं गहरे

कैसे जाने, क्या है इनकी मंशा क्या मंतव्य

कौन सी इनकी राह, कौन सी मंजिल है गंतव्य

मोदी मोदक मधुर बहुत, पर विष का है सम्मिश्रण

चखते ही फिर दिल-दिमाग, चकरा जाता है तत्छण

काशी ने किया भयंकर गलती, दे राजर्षि कि पदवी

जिसकी देशवासियों को, अनुभूति हुई है कड़वी

देश हुआ अभिशप्त और, बेचैनी उसकी अब तक

अनुभव करते हैं लोग, न जाने व्यथित रहेंगे कब तक

मण्डल और कमण्डल के, पीड़ादायी संघर्ष

क्या अब काशी फिर से, दोहरायेगी ऐसी गलती

जिसकी कड़वी अनुभूति आज भी, जन-जन को है खलती

यह विघटनकारी है, भेदकारी है इनकी नीति

नहीं राष्ट्रहित में है, इन पर करिये नहीं प्रतीति

भावना उभारेंगे, भावुकता में ना तनिक भी बहिए

सोच-समझ विवेकसम्मत ही, कोई निर्णय करिए

यह अमोघ अस्त्र है, चूक हुई तो हुआ विनाश

अतः सोचकर वोट कीजिए, करके यह अहसास

कालनेमि इव आपके सम्मुख, माया फैलायेंगे

छद्मवेश में शुभचिंतक बन, आपको बहकायेंगे

बहक गये तो रावण बन, अस्मिता का हरण करेंगे

आत्मग्लानि होगी सुख-शांति में, अपने क्षरण करेंगे

भगवन ना करे अवसर मिले, करें यह नंगा नाच

भारत का अस्तित्व अस्मिता, भग्न हो जैसे कांच
उस दिन जन-जन में निश्चय ही, होगा अतिशय क्षोभ

अतः छोड़ दें जाति-धर्म की, भावुकता का लोभ

राजनीति में भावुकता के लिए, नहीं स्थान

भावुकता में बहे तो होगा, भारत का नुकसान

गंगा-यमुनी साझी संस्कृति, फिर निश्चय होगी आहत

ऐसा मत करिए जिससे, भारत मां हों मर्माहत

समझ-बूझ करके विवेक से, अपने मताधिकार

का प्रयोग कर रचें देश कि, मन माफिक सरकार

याद रहे ना ही पैतृक, ना दैवी मताधिकार

संविधान द्वारा प्रदत्त है, यह अमूल्य अधिकार

संविधान सम्मत ही श्रेयस, इसका हो उपयोग

दायित्व परम-पावन पवित्र मन, से ही करें प्रयोग

आप ही हैं इस देश के भी, खुद के भी भाग्य विधाता

तदनुरूप कर्तव्य बड़ा, प्यारे भाई मतदाता

चूकिये नहीं भारत की, गरिमा गौरव का है प्रश्न

संवैधानिक सरकार बनायें, नित्य मनायें जश्न

(लेखक सी.एम.पी. डिग्री कॉलेज, इलाहबाद विश्वविद्यालय के राजनीतिक विज्ञान विभाग के पूर्व प्राध्यापक हैं.)

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