BeyondHeadlinesBeyondHeadlines
  • Home
  • India
    • Economy
    • Politics
    • Society
  • Exclusive
  • Edit/Op-Ed
    • Edit
    • Op-Ed
  • Health
  • Mango Man
  • Real Heroes
  • बियॉंडहेडलाइन्स हिन्दी
Reading: फूलपुर संसदीय क्षेत्र : ऊँट किस करवट बैठेगा?
Share
Font ResizerAa
BeyondHeadlinesBeyondHeadlines
Font ResizerAa
  • Home
  • India
  • Exclusive
  • Edit/Op-Ed
  • Health
  • Mango Man
  • Real Heroes
  • बियॉंडहेडलाइन्स हिन्दी
Search
  • Home
  • India
    • Economy
    • Politics
    • Society
  • Exclusive
  • Edit/Op-Ed
    • Edit
    • Op-Ed
  • Health
  • Mango Man
  • Real Heroes
  • बियॉंडहेडलाइन्स हिन्दी
Follow US
BeyondHeadlines > Lead > फूलपुर संसदीय क्षेत्र : ऊँट किस करवट बैठेगा?
Leadबियॉंडहेडलाइन्स हिन्दी

फूलपुर संसदीय क्षेत्र : ऊँट किस करवट बैठेगा?

Beyond Headlines
Beyond Headlines Published April 9, 2014
Share
6 Min Read
SHARE

Chandra Prakash Shukla for BeyondHeadlines

इलाहाबाद जिले की फूलपुर संसदीय क्षेत्र का कभी भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरु नेतृत्व किया करते थे. लेकिन पिछले कई दशकों से यहाँ जातिगत समीकरणों से सांसदों का चयन होता रहा है. इस बार का चुनाव भी इसी जातीय गणित के आधार पर आगे बढ़ता दिखाई दे रहा है.

इस जातीय गणित के कारण ही कांग्रेस और बीजेपी जैसी राष्ट्रीय पार्टियों के प्रत्याशियों की ज़मानत ज़ब्त होती रही है. फूलपुर संसदीय क्षेत्र में मुसलिम, यादव, ब्राह्मण एवं कुर्मी की संख्या अधिक है. समाजवादी पार्टी (सपा) से धर्मराज सिंह पटेल के आ जाने से कुर्मी और यादव मतदाता एकजुट हो गए हैं. जहां तक यादवों का प्रश्न है तो वह परम्परागत रूप से सपा के साथ जुड़े हुए हैं.

इस सीट पर पूर्व में कुर्मी प्रत्याशियों ने कई बार विजय हासिल की है. उदाहरण के तौर पर प्रो. बी.डी. सिंह, रामपूजन पटेलपटेल (तीन बार), जंग बहादुर पटेल (दो बार) सपा के टिकट पर सांसद रह चुके हैं. इसके बाद सपा ने 2004 के लोकसभा चुनाव में अतीक अहमद को फूलपुर से प्रत्याशी बनाया जो विजयी रहे, लेकिन इसके बाद 2009 के चुनाव में बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के टिकट पर पंडित कपिल मुनि करवरिया चुनाव जीत गए.

कुर्मी बिरादरी के लिए यह एक बड़ा झटका था और अब उन्हें महसूस होने लगा था कि उनका फूलपुर संसदीय क्षेत्र में अब तक का वर्चस्व समाप्त होने लगा है. अपने खोये हुए वर्चस्व को पुनः प्राप्त करने के लिए इस बार कुर्मी पूरी ताक़त से धर्मराज पटेल के पक्ष में लामबंद हो गए हैं.

यहां यह बताना महत्वपूर्ण है कि करवरिया की जीत (2009 चुनाव में) के पीछे मौर्य, पाल, अनुसूचित जाति तथा बिन्द के साथ-साथ ब्राह्मणों का एकजुट हो जाना था. इस बार मोदी की “लहर”, जिसे बहुत लोग मीडिया की उपज भी बता रहे हैं, होने और बीजेपी से केशव प्रसाद मौर्य को प्रत्याशी बनाये जाने से मौर्य बिरादरी का झुकाव बीजेपी की तरफ हो गया है. इस कारण बसपा कुछ कमजोर होती प्रतीत हो रही है.

पूर्व के चुनावों में व्यापारी वर्ग सपा का साथ देता रहा है. इसका एक कारण श्यामाचरण गुप्त का सपा में शामिल होना भी था. लेकिन बदली हुई परिस्थितियों में श्यामाचरण बीजेपी में शामिल हो गए हैं और इस बार इलाहबाद से बीजेपी के टिकट पर चुनाव भी लड़ रहे हैं. इस कारण से व्यापारी वर्ग का फूलपुर में भी बीजेपी का नारा बुलंद करने लगे हैं.

इस तरह से पिछले चुनाव की अपेक्षा इस बार सपा और बसपा दोनों के मतों में कमी आती दिख रही है, जबकि बीजेपी पहले की अपेक्षा मज़बूत हुई है.

इन बदली हुई परिस्थितियों में ब्राह्मण और मुस्लिम की भूमिका काफी महत्वपूर्ण हो गयी है. मोहम्मद कैफ के कांग्रेस प्रत्याशी होने से मुसलिम अनिर्णय की स्थिति में आ गये हैं और ब्राह्मणों की ओर देख रहे हैं. यदि ब्राह्मण मतदाता बीजेपी की तरफ रुख करता है तो मुस्लिम गोलबंद होकर सपा के साथ चले जायेंगे और यादव, कुर्मी का पहले से ही साथ होने से सपा की स्थिति काफी मज़बूत हो जाएगी.

वहीं दूसरी और ब्राह्मण, व्यापारी, अन्य पिछड़ी जातियों (कुर्मी और यादव को छोड़कर) के साथ आने से बीजेपी भी लड़ाई में आ जाएगी. बसपा के कमजोर होने पर कुछ अनुसूचित जाति के मतदाता भी बीजेपी के पक्ष में जा सकते हैं. यदि ऐसा होता है तो टक्कर सीधे-सीधे बीजेपी और सपा के बीच में होगी और इस बात से इन्कार नहीं किया जा सकता कि बीजेपी कभी न जीतने वाली सीट पर विजयश्री हासिल करके एक नया कीर्तिमान स्थापित कर दे.

यदि पिछली बार की तरह ही इस बार भी ब्राह्मण करवरिया (बसपा प्रत्याशी) के साथ खड़ा हो जाता है, तो अनुसूचित जाति और अन्य पिछड़ी जातियां (यादव और कुर्मी को छोड़कर) भी करवरिया के साथ ही रहेंगी और मुस्लिम कांग्रेस प्रत्याशी मोहम्मद कैफ को वोट देकर अपनी एकजुटता प्रदर्शित करेंगे. ऐसा होने पर हमेशा की तरह इस बार भी सपा-बसपा के बीच कांटे की टक्कर देखने को मिलेगी.

ब्राह्मणों का एक वर्ग मुस्लिमों को यह समझाने में लगा है कि विधानसभा के चुनाव में ब्राह्मणों ने बसपा प्रत्याशी प्रवीण पटेल के बजाय अपना दल के राधेश्याम तिवारी को वोट देकर सपा के मुस्लिम प्रत्याशी की जीत में अप्रत्यक्ष भूमिका निभाई थी. इस बार आप लोग (मुस्लिम) कैफ को वोट करें. मुस्लिम समाज में एक बड़ा वर्ग कुर्मी प्रत्याशी को पसंद नहीं करता. अतः बीजेपी के कमजोर होने पर बसपा का दामन भी थाम सकता है. मिला-जुलाकर मामला अब ब्राह्मणों के उपर आकर टिक गया है. देखते हैं कि ऊँट किस करवट बैठता है?

(लेखक इलाहबाद में सामाजिक कार्य से जुड़े हुए हैं.)

TAGGED:phoolpur
Share This Article
Facebook Copy Link Print
What do you think?
Love0
Sad0
Happy0
Sleepy0
Angry0
Dead0
Wink0
“Gen Z Muslims, Rise Up! Save Waqf from Exploitation & Mismanagement”
India Waqf Facts Young Indian
Waqf at Risk: Why the Better-Off Must Step Up to Stop the Loot of an Invaluable and Sacred Legacy
India Waqf Facts
“PM Modi Pursuing Economic Genocide of Indian Muslims with Waqf (Amendment) Act”
India Waqf Facts
Waqf Under Siege: “Our Leaders Failed Us—Now It’s Time for the Youth to Rise”
India Waqf Facts

You Might Also Like

ExclusiveIndiaLeadYoung Indian

Weaponizing Animal Welfare: How Eid al-Adha Becomes a Battleground for Hate, Hypocrisy, and Hindutva Politics in India

July 4, 2025
IndiaLatest NewsLeadYoung Indian

OLX Seller Makes Communal Remarks on Buyer’s Religion, Shows Hatred Towards Muslims; Police Complaint Filed

May 13, 2025
IndiaLatest NewsLeadYoung Indian

Shiv Bhakts Make Mahashivratri Night of Horror for Muslims Across India!

March 4, 2025
Edit/Op-EdHistoryIndiaLeadYoung Indian

Maha Kumbh: From Nehru and Kripalani’s Views to Modi’s Ritual

February 7, 2025
Copyright © 2025
  • Campaign
  • Entertainment
  • Events
  • Literature
  • Mango Man
  • Privacy Policy
Welcome Back!

Sign in to your account

Lost your password?