Lead

भाजपा और सामाजिक न्याय का सच

Mohd. Arif for BeyondHeadlines

सामाजिक न्याय का प्रश्न भारतीय सामाजिक संरचना और आर्थिक स्थितियों से गहरी तरह संबद्ध है. भारत में मौजूद सैकड़ों साल पुरानी मनुवादी वर्ण व्यवस्था से यहां सभी अच्छी तरह परिचित हैं, और सामाजिक न्याय का सवाल हमारे स्वतंत्रता आंदोलन में भी अहम रहा है.

इसी को देखते हुए संविधान में इसके लिए उपाय किये गए थे, लेकिन अभिलक्षित उद्देश्यों की पूर्ति न होने की वजह से मंडल कमीशन लागू किया गया. हालांकि इसके बाद भी पिछड़ों और दलितों की हालत में संतोषजनक बदलाव नहीं आए है. अभी भी उनकी शिक्षा, रोज़गार, व्यापार राजनीति में भागीदारी केवल कुछ ऊपरी सतह पर ही सिमटकर रह गयी है. हाशिए पर मौजूद जनसमूह आज भी सामाजिक बराबरी और अपने नागरिक अधिकारों को पाने के लिए संघर्षरत है.

हकीकत तो यह है कि सामाजिक न्याय का सवाल या दलितों, पिछड़ों का सवाल भारतीय राजनीति का वह कोना है, जिसे पैंडोरा बॉक्स कहा जा सकता है, जिसका जिक्र होते ही तमाम तरह के मुद्दे जैसे जाति, समुदाय, सामाजिक बनावट, आर्थिक स्थिति, पिछड़ा बनाम अगड़ा आदि बहसें शुरू हो जाती हैं. इस बार का लोकसभा चुनाव भी इन बहसों से अछूता नहीं है और हर बार की तरह इस बार भी पिछड़ों के सवाल पर ध्रुवीकरण की कोशिश की गयी है.

इस बार किसी भी कीमत पर सत्ता प्राप्त करने के लिए बीजेपी भी पिछड़ा कार्ड खेल रही है. भारतीय जनता पार्टी जो संघ की राजनीतिक इकाई के रूप में काम करती है और अपने मूल रूप में विचारधारात्मक स्तर एक यथास्थितिवादी संगठन है, के बावजूद बीजेपी के पीएम उम्मीदवार नरेन्द्र मोदी इस बार सामाजिक न्याय का लालच देकर दलितों, पिछड़ों को अपनी ओर मिलाने की पुरजोर कोशिश कर रहे हैं.

इस क्रम में उन्होंने खुद को पिछड़ा और राजनीतिक अछूत के रूप में भी पेश किया है.  मोदी ने ये ऐलान भी किया कि ‘आगामी दशक पिछड़े समुदायों के सदस्यों का दशक होगा.’

नरेन्द्र मोदी और बीजेपी के इस चुनावी पिछड़ा प्रेम को समझने के लिए गुजरात के बारे में समझ लेना आवश्यक होगा. गुजरात में जब दलित आरक्षण लागू किया गया था तो उस वक़्त ब्राह्मण, पाटीदार और बनिया वर्ग का ज़बरदस्त विरोध सामने आया जिसने बाद में 1981 में दलित विरोधी आंदोलन का रूप लिया और बीजेपी ने इस दलित विरोधी आन्दोलन का नेतृत्व किया था.

इस दलित विरोधी आन्दोलन ने दंगों की शक्ल अख्तियार की और गुजरात के 19 में से 18 जिलों में दलितों को निशाना बनाया गया. इन दंगों में मुस्लिमों ने दलितों को आश्रय दिया और उनकी मदद भी की. वास्तव में दलित, पिछड़ा और आदिवासी गुजरात की लगभग 75 प्रतिशत जनसंख्या बनाते हैं.

इसी को अपने साथ मिलाकर 1980 में कांग्रेस ने सत्ता प्राप्त की थी. यह गठजोड़ जिसे अंग्रेजी के खाम यानी क्षत्रिय, हरिजन, आदिवासी और मुस्लिम कहा जाता है, ने पहली बार ब्राह्मण और पाटीदारों को सत्ता के केंद्र से दूर कर दिया.

हालांकि इसके ठीक बाद बीजेपी ने 1980 में अपने कट्टर हिन्दुत्ववादी एजेंडे पर काम करना शुरू किया और आडवानी की रथ यात्रा ने उस प्रक्रिया को तेज़ किया, जिसमें सवर्ण और उच्च जाति के लोगों ने सत्ता से दूर होने के आधार पर एकजुट होकर आरक्षण विरोधी आन्दोलन को चलाया. साथ ही इसने गुजरात के भगवाकरण के लिए भी परिस्थितियां पैदा की.

1980 में कांग्रेस की जीत के बाद बीजेपी ने दलित विरोधी रणनीति में परिवर्तन कर इसे सांप्रदायिक रंग दिया और अब निचली जाति के दलित, आदिवासी समूह को मुस्लिमों के विरुद्ध खड़ा किया. इसी कारण 1981 में आरक्षण विरोधी आन्दोलन ने 1985 में सांप्रदायिक हिंसा का रूप धारण कर लिया और इसे आडवानी ने अपनी रथयात्रा से और भी उन्मादी और हिंसक बनाया. 1990 में जब आडवानी रथ यात्रा के ज़रिए देश में जहर घोल रहे थे, उस वक़्त गुजरात में उनके सिपहसलार नरेन्द्र मोदी थे जो गुजरात बीजेपी महासचिव थे.

बीजेपी न केवल दलित, पिछड़ा आरक्षण के विरोध का नेतृत्व करती रही है, बल्कि सत्ता में आने के बाद नरेन्द्र मोदी की सरकार ने गुजरात में इस आरक्षण के लाभ को भी सरकारी मशीनरी के दुरूपयोग से रोका है.

इसके लिए मशीनरी का किस तरह इस्तेमाल किया गया है, यह समझना आवश्यक है. बख्शी पिछड़ा वर्ग आयोग ने जिसने 1978 में अपनी संस्तुति प्रस्तुत की उसमें कुछ मुस्लिम पिछड़ी जातियों की पहचान की गई थी, जिसमें जुलाया और घांची भी शामिल थे, में राज्य कल्याण विभाग ने इन जातियों के आवेदन निरस्त कर दिए और 1978 के पहले के रिकॉर्ड मांगे. जबकि उन्हें 1978 में शामिल किया गया था.

इस प्रकार राज्य मशीनरी ने सामाजिक न्याय से उन्हें वंचित किया. इस तरह के हजारों मामले हैं जिनमें पिछड़ी, दलित और आदिवासियों को सामाजिक न्याय के लाभ से राज्य मशीनरी द्वारा जान बूझकर एक सोची-समझी रणनीति के तहत वंचित किया गया है.

इसी तरह कुछ और मामले हैं जिनमे हाईकोर्ट ने हस्तक्षेप किया (इमरान राजाभाई पोलार बनाम गुजरात राज्य). इस मामले में जाति कल्याण विभाग के डायरेक्टर ने जाति प्रमाण पत्रों को जाली और गलत तरीके से प्राप्त कहकर ख़ारिज कर दिया था.

ठीक इसी तरह से राज्य सरकार ने हजारों प्रमाण पत्रों को निरस्त कर दिया, जबकि वे विधिसम्मत और प्रक्रिया से प्राप्त किये गए थे. इमरान राजाभाई के मामले में हाईकोर्ट ने सुनवाई करते हुए डायरेक्टर के फैसले को रद्द  किया और यह भी कहा कि डायरेक्टर ने जानबूझकर मामले को आगे बढाया क्योंकिन जुलाया समुदाय पहले से ही पिछड़ी जाति के रूप में अधिसूचित हैं.

अब इस मामले को देखें तो स्पष्ट हो जायेगा कि यह केवल तकनीकी गड़बड़ी नहीं है, बल्कि एक सोची समझी साजिश के तहत लोगों को वंचित किया जा रहा है.

यह सामाजिक न्याय को नकारने का एक सरकारी उपक्रम है जो अपने स्वभाव से ही दलित, पिछड़ा और आदिवासी विरोधी है.

बीजेपी वास्तव में संघ परिवार का राजनीतिक उपक्रम है और यह संघ की रणनीति को ही लागू करती है, जो अपने मूल वैचारिक स्वरुप में घोर सांप्रदायिक, प्रतिक्रियावादी, जनतंत्र विरोधी है. संघ का राष्ट्रवाद असमानता पर आधारित राष्ट्र के निर्माण की बात करता है.

नरेन्द्र मोदी खुद को भले ही पिछड़ा और राजनीतिक अछूत घोषित करें, लेकिन हकीकत सभी को अच्छी तरह पता है कि वो खुद दलित, पिछड़ा विरोधी आन्दोलन के नेता रहे हैं. इसके अलावा रही बात संघ की तो यह बात जगजाहिर है की संघ मनुस्मृति को ही शासन का आधार मानता है और मनुस्मृति स्पष्ट रूप से वर्ण व्यवस्था की वकालत करती है क्योंकि उनके अनुसार यह प्रकृति का नियम है और असमानता शाश्वत है, जिसे दूर नहीं किया जा सकता है. (एम. एस. गोलवलकर, बंच ऑफ़ थॉट्स,1960)

इससे साफ़ है कि बीजेपी भले ही दिखावा करे लेकिन वह सामाजिक न्याय विरोधी और जनतंत्र की मूल अवधारणा के भी विरुद्ध है. इसका सामाजिक राजनीतिक दर्शन ही फासीवादी और एकात्मवादी है, जहां दलितों, पिछड़ों, आदिवासियों के लिए सामाजिक न्याय की कल्पना नहीं की जा सकती है.

बीजेपी कितना भी कोशिश कर ले, किन्तु वह देश की जनता को भ्रमित नहीं कर सकती है और आनेवाले दिनों में लोकसभा परिणाम इस तथ्य की पुष्टि करेंगे कि हमें फासीवादी नहीं, बल्कि एक जनतांत्रिक और सामाजिक न्याय में यकीन रखने वाली सरकार चाहिए.

Loading...

Most Popular

To Top

Enable BeyondHeadlines to raise the voice of marginalized

 

Donate now to support more ground reports and real journalism.

Donate Now

Subscribe to email alerts from BeyondHeadlines to recieve regular updates

[jetpack_subscription_form]