ये दोगली-चरित्रहीन भारतीय मानसकिता का चरमोत्कर्ष है

Beyond Headlines
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प्रोफ़ेसर मटुकनाथ के प्रेम प्रसंग पर हाहाकार करने वाला समाज दिग्गी-अमृता के इश्क़ पर चटख़ारे ले रहा है. वो भी मिर्च-मसाला मारके. ये दोगली-चरित्रहीन भारतीय मानसकिता का चरमोत्कर्ष है.

सामाजिक नेटवर्क फ़ेसबुक और ट्विटर बुधवार को घोर ग़ैर सामाजिक रहे. नैतिकता नदारद रही. क़ानून धड़ल्ले से टूटते रहे. क़ानूनों का उल्लंघन करने वाले सिर्फ़ नौसिखिए-अतिउत्साहित दिग्विजय सिंह विरोधी या मोदी भक्त ही नहीं थे. बल्कि पढ़े-लिखे, बुद्धिजीवी और जागरुक नागरिकों की श्रेणी में आने वाले संपादक भी थे.

देश के सबसे बड़े हिंदी अख़बारों ने ग़ैर-ज़िम्मेदारी की तमाम सीमाएँ लाँघकर अपनी वेबसाइटों पर दिग्विजय सिंह और अमृता राय की वो निजी तस्वीरें भी चिपका दी जो ख़ुद उनकी भाषा में ‘बेहद आपत्तिजनक’ हैं.

ये पिछले कई वर्षों से ग़ायब हो रही पत्रकारीय नैतिकता और संपादकीय समझ के पतन का प्रमाण भी है. थोड़ी राहत की बात ये  है की मूर्ख़, ग़ैर ज़िम्मेदार, फ़ूहड़ और निर्लज्ज संपादकों की श्रेणी में सिर्फ़ हिंदी भाषीय वेबसाइटों के संपादक ही हैं. ‘पश्चिमी’ कहकर कोसी जाने वाली अंग्रेजी के संपादकों ने फिर भी नैतिक मूल्य बरक़रार रखे और निजी तस्वीरें प्रकाशित करने से परहेज किया.

लेकिन क्या निजी तस्वीरें समाचार वेबसाइटों पर प्रकाशित होना और उनके फ़ेसबुक पन्नों के ज़रिए लाखों लोगों तक पहुंचना सिर्फ़ नैतिक पतन का मामला ही है? नहीं ऐसा नहीं है. ये भारतीय क़ानूनों के उल्लंघन का मामला भी है. जो तस्वीरें दैनिक जागरण, दैनिक भास्कर, पंजाब केसरी और अमर उजाला जैसे अख़बारों की वेबसाइटों पर प्रकाशित की गई हैं उन्हें प्रकाशित करने का अधिकार इन वेबसाइटों के पास नहीं है.

तस्वीरें देखकर प्रतीत होता है कि ये या तो अमृता ने खींची हैं या दिग्विजय सिंह ने. जो स्पष्ट करता है कि इन तस्वीरों पर इन अख़बारों का कॉपीराइट नहीं हैं. और इन व्यवसायिक मीडिया संस्थानों ने इनके प्रकाशन के लिए कोई क़ीमत नहीं चुकाई है. इस लिहाज से इन संपादकों के ख़िलाफ़ प्रथम दृष्टया कॉपीराइट उल्लंघन का मामला तो बनता ही है.

यदि अमृता के अपना कंप्यूटर और ईमेल हैक होने के आरोपों को सही माना जाए तो साबित होता है कि ये तस्वीरें आपराधिक तरीके से हासिल की गई हैं. जो इनके प्रकाशन को आपराधिक मामला बना देता है.

साथ ही यह दिग्विजय सिंह और अमृता राय की निजता का तो खुला उल्लंघन है ही. यदि इन सभी क़ानूनी पहलुओं को नज़रअंदाज़ भी कर दिया जाए तब भी इन वेबसाइटों के संपादक अपनी ज़िम्मेदारी से बरी नहीं हो जाते हैं.

दरअसल मुख्यधारा कि इन वेबसाइटों को बड़ी तादाद में नाबालिग भी पढ़ते हैं. ऐसे में ये विवेकहीन संपादक चंद क्लिक्स (और उनसे मिलने वाले कुछ पैसों) के लालच में बच्चों तक भी जानबूझकर आपत्तिजनक सामग्री पहुंचा रहे हैं.

अब बात करते हैं उन लोगों कि जिन्होंने इन तस्वीरों को अपनी फ़ेसबुक या ट्विटर टाइमलाइन पर शेयर किया है. यदि कम से कम भी आँकलन किया जाए तो अब तक ऐसे लोगों की तादाद लाखों में हैं.

ये लोग हमारे समाज का सबसे गंदा और घृणित चेहरा हैं. यौनकुंठा से पीड़ित ये लोग हमारे समाज के लिए सबसे बड़ा ख़तरा हैं. यदि आपकी टाइमलाइन में भी ये तस्वीरें आई हैं तो इन्हें साझा करने वालों की मानसिकता से सावधान हो जाइये.

हो सकता है कि इनमें बड़ी संख्या दिग्विजय सिंह के राजनीतिक विरोधियों या उनके राजनीतिक विरोधियों के समर्थकों की हो. लेकिन इससे यह सच्चाई नहीं छुप जाती कि ये वही लोग है जिनमें नाममात्र भी नैतकिता नहीं हैं. ये वो लोग हैं जो अपने विरोधी को नीचा दिखाने के लिए किसी भी स्तर तक गिर सकते हैं.

ये वही लोग हैं जो दिग्विजय सिंह को ‘कामुक’ संबोधित कर उनकी निजी तस्वीरें साझा करने की हड़बड़ी ये भी भूल जाते हैं कि उनके अपने परिवार के बच्चे (या दोस्तों के बच्चे) भी इन तथाकथित ‘आपत्तिजनक तस्वीरों’ को देख रहे होंगे.

लोग दिग्विजय सिंह को ‘चरित्रहीन’ कहते हुए उनकी तस्वीरें साझा करके अपनी चरित्रहीनता का ही प्रमाण दे रहे हैं.

लेकिन ये मामला सिर्फ़ क़ानूनों के उल्लंघन और समाज के नैतिक पतन का ही नहीं है. ये मामला हमारी बेबस न्याय व्यवस्था का भी है.

अभी कुछ साल पहले, अमरीका के टेक्सास प्रांत के एक शहर में एक सिरफिरे हैकर ने कुछ युवतियों की नग्न तस्वीरें हैक कर अपनी वेबसाइट पर प्रकाशित कर दीं थीं. उसे नग्न तस्वीरों के आरोप में गिरफ़्तार नहीं किया जा सका क्योंकि ऐसा करना क़ानून अपराध नहीं था और इंटरनेट क़ानूनों के तहत वह ऐसा करने के लिए स्वतंत्र था.

लेकिन पीड़ित लड़कियों ने अपने वकीलों की मदद लेकर तस्वीरों पर अपने कॉपीराइट के उल्लंघन का मामला दायर किया. बाद में आरोपी पर अन्य मामलें भी दायर हुए. नतीजतन लड़कियों की निजता का उल्लंघन और उनकी मानहानि करने वाली वह वेबसाइट बंद हो गई और उसका संचालक अब जेल में हैं.

दिग्विजय सिंह और अमृता राय के पास भी ऐसा करके आगे किसी और को अपने जैसे ‘पीड़ित’ न होने देने का विकल्प है. लेकिन वे शायद ही इसे चुनें. क्योंकि लंबी क़ानूनी लड़ाई लड़ना शायद उनके लिए भी सिरदर्द ही हो.

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