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क्या भारत दंगा युग के फ़्लैश-प्वांट पर खड़ा है?

BeyondHeadlines Editorial Desk

पिछले साल उत्तर प्रदेश के मुज़फ़्फ़रनगर में बाइक-साइकिल की टक्कर को ऐसा रंग दिया गया कि समूचा ज़िला बेग़ुनाहों के ख़ून से लाल हो गया. हज़ारों ज़िंदगियां अभी भी राहत कैंपों में सिसक रही हैं. कहा गया कि दंगे राजनीतिक कारणों से कराया गया और चुनावों के बाद दंगे नहीं होंगे. लेकिन ये उम्मीद भी बेमानी ही साबित हुई.

हैदराबाद में सिख समुदाय का धार्मिक झंडा जलाने का आरोप मुसलमानों पर लगा और बात इतनी बढ़ी कि पुलिस फ़ॉयरिंग में चार मुसलमान ‘जन्नत रसीद’ कर दिए गए.

और अब मोदी की कर्मभूमी अहमदाबाद में भी एक मामूली बात, जो कहासुनी तक ही सिमट सकती थी को इतना तूल दिया गया कि दो समुदाय आमने-सामने आ गए और कई दुकानों और वाहनों को आग लगा दी गई.

अहमदाबाद के पुलिस आयुक्त के शब्दों में कहें तो, “इस दंगे की शुरुआत दो गुटों के बीच में हुए मामूली विवाद से हुई. देखते ही देखते गुटों के बीच में विवाद इतना बढ़ गया कि लोग ताबड़तोड़ फायरिंग करने लगे. मौके पर सूचना पाकर पहुंची पुलिस ने भीड़ को शांत किया और वहां से भगाने के लिए आंसू गैस छोड़ी.”

बढ़ते तनाव के मद्देनज़र पुलिस को इलाक़े में धारा-144 लगानी पड़ी. दंगे की ये वारदात दो अलग-अलग समुदाय के लोगों की गाड़ियों की टक्कर का नतीजा थी.

गुजरात के पूर्व मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी की भारत के पंद्रहवें प्रधानमंत्री के रूप में हुई ताजपोशी की पूर्व संध्या हुई इस घटना को स्थानीय और राष्ट्रीय मीडिया ने कोई जगह नहीं दी.

मीडिया ने इस घटना को क्यों नज़रअंदाज़ किया, ये सवाल पूछा जा रहा है. लेकिन इससे भी बड़ा सवाल यह है कि हमारा समाज इतना नाज़ुक कैसे हो गया कि जिन घटनाओं को कह-सुनकर रफ़ा-दफ़ा किया जा सकता है वे अप बेग़ुनाहों की मौत का सबब बन रही हैं.

समाचार एजेंसी पीटीआई की एक रिपोर्ट के मुताबिक कर्नाटक के बीजापुर में भी मोदी के शपथग्रहण समारोह के दौरान निकाले गए विजय जुलूस के दौरान दो समुदायों में हिंसक झड़प हुई जिसमें आठ लोग घायल हो गए.

रिपोर्ट के मुताबिक विजय रैली निकाल रहे मोदी समर्थकों ने मुसलमानों पर गुलाल फ़ेका जो सांप्रदायिक तनाव का कारण बना. फ़ेसबुक पर पोस्ट की गईं तस्वीरों में हिंसा के नतीजे में एक व्यक्ति लहूलुहान हालत में सड़क पर पड़ा दिख रहा है.

पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने भारत के नए प्रधानमंत्री को दंगा बाबू कहा है. तो क्या ये भारत के दंगा युग की शुरूआत है?

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