Lead

जानिए इरोम शर्मीला को…

Ravi Nitesh for BeyondHeadlines

देश के वर्तमान  चुनावी दौर में लगभग सभी  मुद्दों और नेताओं पर चर्चा हो रही है. हम आपको मिलाते हैं एक ऐसी महिला नेता (नेत्री) से, जो पिछले 14 वर्षों से एक महत्वपूर्ण सामाजिक-राजनीतिक आंदोलन का नेतृत्व कर रही हैं.

देश के सुदूर पूर्व में स्थित एक छोटे से प्रांत मणिपुर में बैठी इरोम शर्मीला के उपवास को 5 नवम्बर को 14 साल हो जायेंगे. पिछले 14 सालों से इस महिला ने अपने मुख से कुछ भी ग्रहण नहीं किया है.

पहली बार इस बात को सुनने में अजीब, आश्चर्यजनक लग सकता है. किन्तु यह आश्चर्यजनक रूप से सत्य, त्याग का अप्रतिम परिचय और आत्म विश्वास की कहानी है.यह विश्व की सबसे लम्बे समय तक चलने वाली भूख हड़ताल है. इरोम शर्मीला को अब पूर्वोत्तर की लौह महिला (द आयरन लेडी) के नाम से जाना जाता है.

इरोम का पूरा नाम इरोम शर्मीला चानू है. सन 2000 में शुरू हुआ उनका उपवास मणिपुर में लागू एक विवादस्पद कानून ‘सशस्त्र सेना विशेषाधिकार अधिनियम‘ को हटाये जाने की मांग लेकर है. यह विशेषाधिकार सशस्त्र बालों को इस क्षेत्र में कुछ ऐसे अधिकार प्रदान करता है, जिसका यहां के आम नागरिक विरोध करते रहे हैं.

इस अधिकार के अंतर्गत सिविल (नागरिक) क्षेत्रों में सैन्य बलों की तैनाती और उसके दौरान ‘किसी भी व्यक्ति पर संदेह के आधार पर गोली मारने का अधिकार’ (सशस्त्र सेना अधिनियम- खंड 4) और ‘यदि इस गोली से व्यक्ति की मृत्यु भी हो जाए तो सैन्य बल पर केंद्र सरकार की पूर्व अनुमति के बिना किसी प्रकार का मुक़दमा दर्ज नहीं किया जा सकेगा’ (सशस्त्र सेना अधिनियम-खंड 6), ऐसा अधिकार प्राप्त है.

यही नहीं, इसके अतिरिक्त और भी अधिकार जैसे बिना वारंट गिरफ्तार करना, किसी सेफ्टी लॉक को तोड़ सकना आदि अधिकार प्राप्त हैं. सैन्य बालों को प्राप्त इन अधिकारों का व्यापक तौर पर दुरूपयोग होने की शिकायतें दर्ज होती रही हैं.

इन दुरुपयोगों में सैन्य बालों द्वारा की जाने वाली हत्याएं, स्थानीय महिलाओं के बलात्कार, लोगों का अपहरण आदि निर्मम अपराध शामिल हैं, किन्तु ऐसी तमाम शिकायतों के बावजूद सैन्य बालों पर कोई मुक़दमा दर्ज नहीं किया सकता और ऐसी स्थिति में आम नागरिकों का जीवन दूभर है.

सन 2000 में ‘मालोम’ नामक एक स्थान पर, एक बस स्टैंड पर खड़े लगभग 16 लोगों को ‘आसाम रायफल्स’ द्वारा गोली मार दी गयी. मरने वालों में एक 70 वर्षीय वृद्धा और एक 16 वर्षीय बालिका भी थी. यह 16 वर्षीय बालिका राष्ट्रपति से वीरता पुरस्कार प्राप्त बालिका थी.

इस घटना को ‘मालोम नरसंहार’नाम से जाना गया.स्थानीय नागरिकों में रोष रहा, तमाम प्रदर्शन हुए किन्तु सैन्य बलों के विरुद्ध कोई करवाई न की जा सकी और उन्हें सशस्त्र सेना विशेषाधिकार अधिनियम में खंड-6 के अंतर्गत दंडाभाव प्राप्त रहा.

इरोम शर्मीला चानू उस वक़्त लगभग 28 वर्ष की एक आम लड़की थी, जो सामजिक विषयों में रूचि रखती थीं और मानवाधिकार के विषय पर स्थानीय स्तर पर काम करती थीं. मालोम नरसंहार ने इरोम शर्मीला को अन्दर तक झकझोर कर रख दिया और उन्होंने भूख हड़ताल पर जाने का निश्चय किया.

सरकार और लोगों द्वारा प्रारंभ में उनके इस फैसले को एक त्वरित प्रतिक्रिया के रूप में देखा गया, किन्तु इरोम ने दृढ निश्चय का परिचय देते हुए भूख हड़ताल तब तक ख़त्म न करने की बात कही, जब तक यह मानवधिकार उल्लंघनकारी अधिनियम रद्द नहीं कर दिया जाता.

देखते देखते इरोम की भूख हड़ताल विश्व भर में मानाधिकार प्रेमी संस्थाओं और कार्यकर्ताओं के लिए एक मिसाल बन गयी. नोबेल शान्ति पुरस्कार से सम्मानित शिरीन इबादी ने इरोम के समर्थन में व्यक्तव्य दिया.

विश्व भर के तमाम लोग इरोम के पक्ष में अपना समर्थन दे रहे हैं और भारत सरकार से इस कानून को हटाने की मांग कर रहे हैं. संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार आयोग ने भी इस कानून को खतरनाक मानते हुए भारत सरकार को इसे हटाये जाने की सलाह दी है.

स्थानीय लोगों में रोष और सैन्य बालों द्वारा बढ़ते मानवाधिकार उल्लंघन की घटनाओं को देखते हुए सरकार ने ‘जस्टिस जीवन रेड्डी आयोग’ का गठन कर विकल्प जानने का प्रयास किया.

आयोग ने अपनी रिपोर्ट में इस कानून को हटाये जाने का सुझाव दिया, जिसे सरकार ने मानना तो दूर, सार्वजनिक तक नहीं किया. आज भी यह कानून बरकरार है.

इरोम शर्मीला की भूख हड़ताल को आज लगभग 13 साल हो गए, उनकी उम्र 28 से करीब 41 हो गयी और आज भी उनका जज्बा बरकरार है. मणिपुर सरकार ने उनके ऊपर ‘आत्महत्या के प्रयास’ का मुक़दमा दर्ज किया है और उन्हें जवाहर लाल नेहरु अस्पताल के सुरक्षा वार्ड में कारावास दिया है.

इरोम शर्मीला पर कई किताबें लिखी गयीं.कुछ फिल्में (वृत्तचित्र) भी बनी हैं. इरोम की दिनचर्या में मुख्यतया योग और किताबें पढना शामिल हैं. उन्हें भारत के संविधान में विश्वास है, जो सबके लिए बिना भेदभाव न्याय सुनिश्चित करता है.उन्हें उम्मीद है कि जन हितकारी प्रशासन और शान्ति पूर्ण शासन की स्थापना होगी और उनका उपवास शायद सरकार को सुदूर पूर्व में स्थित इस प्रांत में लागू एक मानवाधिकार उल्लंघनकारी कानून से निजात दिलवा पायेगा.

इरोम का अप्रतिम संघर्ष स्वयं में एक इतिहास है.उनकी मांगों का पूरा हो पाना वास्तव में व्यापक रूप से लोकतंत्र, अहिंसा, धैर्य और न्याय के मूल्यों की स्थापना का सार्थक प्रयास होगा.

Loading...

Most Popular

To Top

Enable BeyondHeadlines to raise the voice of marginalized

 

Donate now to support more ground reports and real journalism.

Donate Now

Subscribe to email alerts from BeyondHeadlines to recieve regular updates

[jetpack_subscription_form]