Afroz Alam Sahil for BeyondHeadlines
मुस्लिम वोटों के लिए बनारस में खींचतान ने बेहद ही दिलचलस्प मोड़ ले लिया है. मुस्लिम कैबिनेट मंत्रियों से लेकर उलेमा, धर्मगुरू, संस्कृति-कर्मी, एक्टिविस्ट, गायक, लेखक, कलाकार सभी कौम के नाम पर बनारस की लड़ाई में कूद पड़े हैं. मगर खास बात यह है कि मुस्लिम वोटों के यह कथित ठेकेदार न सिर्फ आपस में बुरी तरह से बंटे हुए हैं, बल्कि अपनी-अपनी डपली और अपना राग भी अलाप रहे हैं.
इतना ही नहीं, यह तबका मुस्लिम मतदाताओं को बूरी तरह कंफ्यूज़ करने में भी जुटा हुआ है. मोदी विरोध के नाम पर पहुंची यह ताक़तें आखिरकार मुस्लिम मतों का बिखराव व बंटवारा कर पूरी शिद्दत से मोदी के हाथ को मज़बूत करने का काम कर रही हैं.
असल कहानी यह है कि इस समय मोदी को हराने के नाम पूरे देश से हज़ारों एक्टिविस्टों की टोली बनारस पहुंची हुई है. पर इनमें आधे अरविन्द केजरीवाल के पक्ष में हैं तो आधे कांग्रेस प्रत्याशी अजय राय के पक्ष में. सबकी अपनी-अपनी दलीलें हैं, अपनी-अपनी बातें व आंकड़ें हैं.
कई मुस्लिम संगठन तो दिल्ली अपने हेडक्वार्टर के वातानुकुलित कमरे में बैठकर चुनावी फैसला इस्लामिक जेहनियत के साथ ले रहे हैं. ऐसे में एक्टिविस्ट ग्रुपों का आरोप है कि यह मुस्लिम संगठन दरअसल आरएसएस के लिए काम कर रही है. उनके ऐलान से यहां मोदी को ही फायदा पहुंचेगा.
स्पष्ट रहे कि काशी के इस नगरी में 3 लाख से अधिक मुस्लिम वोटर्स हैं. जबकि यहां कुल वोटरों की संख्या 16 लाख 30 हजार के आसपास है. जिसमें पटेल बिरादरी के 2 लाख 75 हजार वोटर हैं. मुस्लिम वोटर तीन लाख 25 हज़ार, ब्राह्मण वोट दो लाख, भूमिहार एक लाख 35 हजार, हरिजन और पिछड़ा वर्ग दो लाख 70 हजार हैं.
यहां के चुनावी पंडित बताते हैं कि इस सीट का सियासी गणित बिगाडऩे और बनाने की दारोमदार मुस्लिम वोटरों के हाथों में ही है. यह वोट बैंक ही इस बार तय करेगा कि बनारस में जीत का ताज किसके सिर पर बंधता है. वो यह भी बताते हैं कि बनारस में अजय राय खासा प्रभाव रखते हैं और भूमिहार जाति पर उनकी खासी पकड़ है. राय समाज का अपना एक मजबूत वोट बैंक है, जिसकी नजीर वह पिछले लोकसभा चुनाव में दिखा भी चुके हैं. अब मुख्तार अंसारी के उनके समर्थन में आ जाने से बीजेपी के रणनीतिकार खासे परेशान हैं.
चुनावी पंडितों का यह भी मानना है कि अब मुस्लिम वोटर जिस प्रत्याशी के पक्ष में वोट करेगा जीत का सेहरा उसी के सिर बंधना तय है. वो बताते हैं कि जिस तरह से बनारस में अजय राय ने आक्रामक रुख अपना रखा है, उससे भी भाजपाई चिंतित हैं. एक ओर तो राय का स्थानीय होना उनके पक्ष में जाता है तो दूसरी ओर वहां के जातीय समीकरणों को साधने में भी राय भाजपा नेताओं से आगे निकल रहे हैं.
शायद यही वजह है कि नरेन्द्र मोदी का खेमा भी मुस्लिम वोटरों में पैठ बनाने की भरपूर कोशिश में जुटा हुआ है. यहां के मुस्लिम वोटरों का साथ पाने के लिए गुजरात से मुसलमानों का एक जत्था बुलाया गया हैं, जो बनारस में घूम-घम कर मुसलमानों को मोदी को वोट देने की अपील में जुटा हुआ है. वो बनारस के लोगों को समझा रहा है कि कैसे मोदी गुजरात में पतंग उद्योग का बढ़ावा दिया है. अगर यहां से जीत गए तो बनारस के बुनकरों की भी चांदी हो जाएगी.
इतना ही नहीं, संघ के विवादित नेता इंद्रेश कुमार भी बनारस में पहुंचे हुए हैं. इन्हें खासतौर पर मुसलमान वोटरों के वोट हासिल करने की रणनीति बनाने के लिए बुलाया गया है. इंद्रेश कुमार आने वाले दिनों में कई सभाओं को संबोधित करेंगे, जिनमें खासतौर पर मुस्लिम वोटर्स पर जोर रहेगा. वैसे संघ के साथ जुड़ा मुस्लिम राष्ट्रीय मंच पहले से ही वाराणसी में प्रचार कर रहा है, लेकिन आरएसएस के अल्पसंख्यक मोर्चे का कामकाज देखने वाले इंद्रेश कुमार को संघ की इन वोटों में सेंध लगाने की गंभीर कोशिश के रूप में देखा जा रहा है.
हालांकि बीजेपी का यह भी मानना है कि बनारस का मुसलमान मोदी को ज़रूर वोट देगा. वो इसके लिए मोदी नामांकन रैली का भी हवाला देते हैं कि उस रैली में मुस्लिम समाज भी शामिल था. उनका यह भी कहना है कि यहां के शिया समुदाय के लोग मोदी के साथ हैं. हालांकि बीजेपी एक अहम मक़सद यह भी है कि किसी भी तरह से मुस्लिम वोटों को बांटा जाए.
उधर मोदी को हराने की खातिर कांग्रेस वाराणसी में मुस्लिम वोटों का चक्रव्यूह खड़ा करने की क़वायद में है. कांग्रेस ने विशेष तौर पर अल्पसंख्यक तबके के कैबिनेट मंत्रियों और नेताओं की बनारस में तैनाती कर दी है. इनमें अल्पसंख्यक तबके से ताल्लुक रखने वाले कैबिनेट स्तर के 3 मंत्री शामिल हैं. सभी को मुस्लिम वोटरों के अलग-अलग तबकों को साधने की ज़िम्मेदारी सौंप दी गयी है. कांग्रेस को भी लगता है कि अगर मुस्लिम वोट एक मुश्त उसकी झोली में आ गए तो वह मोदी की राह मुश्किल कर सकती है.
कांग्रेस के 3 ताक़तवर कैबिनेट मंत्री इन दिनों बनारस में डेरा डाले हए हैं. स्वास्थ्य मंत्री ग़ुलाम नबी आजाद, विदेश मंत्री सलमान खुर्शीद और अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री के. रहमान खान… ये सभी कांग्रेस के हक़ में बनारस के मुस्लिम वोटरों को साधने की क़वायद में जुटे हुए हैं. सलमान खुर्शीद ने आते ही बुनकर तंजीमो को साधने की क़वायद शुरू कर दी. खुर्शीद ने इनके सरदारों से मुलाकात की और कांग्रेस के लिए इनका समर्थन मांगा. ‘तंजीम पांचों’ के सरदार और काबीना के मेम्बरों से सलमान खुर्शीद ने मुलकात की. हाजी निसार अहमद और हाजी अली अहमद साफ़ तौर पर कहते हैं कि सलमान खुर्शीद उनसे मिलने आए थे और इनसे वोटों का बंटवारा रोकने और कांग्रेस को वोट देने की अपील की.
कांग्रेस मोदी को हराने के खातिर बुनकरों के वोटों को खासा महत्वपूर्ण मान रही है. बनारस में बुनकरों की कई बिरादराना तंजीमें हैं. सभी तंजीमो के अपने-अपने सरदार हैं. मसलन तंजीम बावनी, तंजीम बाईसी, तंजीम चौदहों, तंजीम चौतीस, तंजीम बारह, तंजीम पांचों…
एक एक तंजीम में बुनकरों के कई-कई मोहल्ले आते हैं. ये तंजीमें बनारस भर में फैली हुई हैं. बनारस में करीब 4.5 मुस्लिम लाख आबादी इन्हीं तंजीमों से ताल्लुक रखती हैं तंजीमें 9 या 10 तारीख की रात मीटिंग में इस बाबत फैसला लेंगी कि उनका वोट किस ओर जाएगा?
इससे पहले ग़ुलाम नबी आज़ाद मुस्लिम वोटों की खातिर मुख़्तार अंसारी की पार्टी से गठजोड़ कर चुके हैं. उन पर इस गठजोड़ को वोटों में तब्दील करने की ज़िम्मेदारी दी गयी है. एक अभूतपूर्व घटनाक्रम में कांग्रेस कैंडिडेट अजय राय जाती दुश्मनी भुलाकर महज़ मुस्लिम वोटों की खातिर मुख़्तार की पार्टी के साथ मंच भी शेयर कर चुके हैं.
गुलाम नबी आजाद इससे पहले मुफ़्ती-ए-बनारस अब्दुल बातिन नोमानी से मुलाकात कर मुस्लिम वोटो की गुजारिश कर चुके हैं. इस शहर में गुलाम यासीन और अब्दुल बातिन नोमानी… दो ऐसे मुस्लिम धर्मगुरू हैं, जहां तमाम पार्टियों के नेता अपनी हाज़िरी लगा रहे हैं.
इतना ही नहीं, कांग्रेस ने यहां सहयोगी दलों के मुस्लिम नेताओं को भी बुला रखा है. एनसीपी के महाराष्ट्र के विधायक नवाब मलिक भी मुस्लिम वोटों को साधने की जुगत में यहां पहुंचे हुए हैं.
उधर आम आदमी पार्टी के अरविन्द केजरीवाल का भी सारा ध्यान सिर्फ और सिर्फ मुस्लिम वोटरों पर ही है. यहां के मोमिन कांफ्रेस ने तो बजाफ्ता केजरीवाल को अपने समर्थन का ऐलान भी कर दिया है. दिल्ली में जमाअत-ए-इस्लामी हिन्द ने भी केजरीवाल के समर्थन का ऐलान कर दिया है. इसके अलावा जेएनयू छात्र संघ भी केजरीवाल के पक्ष में ही प्रचार कर रही है.
सच तो यह है कि मुसलमानों को लुभाने के लिए केजरीवाल ने अपनी यात्रा के पहले ही दिन पहली मुलाक़ात बनारस के शहर काज़ी से की. यहां तक कि अपनी टोपी पर से झाड़ू का निशान हटाकर उर्दू में अपनी पार्टी का नाम लिखना मुनासिब समझा, ताकि मुस्लिम वोटरों को अपने पक्ष में किया जा सके. इसके अलावा उर्दू में लिखे पर्चे भी बनारस में तक़्सीम किए जा रहे हैं.
ऐसे में देखा जाए तो बनारस के मुसलमानों के लिए यह चुनावी दौर किसी सीज़न की तरह होता है. सीज़न की शुरूआत होते ही नेताओं का आना शुरू हो जाता है. सारे दल मुसलमानों से सम्पर्क कर रहे हैं, उनसे वोट मांग रहे हैं. सच पूछे तो इस सीज़न में मुसलमानों की झोली वायदों व आश्वासनों से भर चुकी है.
अब देखने वाली बात यह है कि अल्पसंख्यक वोटर अपना विश्वास किसके ऊपर जताते हैं. यदि यह वोट एकमुश्त किसी भी प्रत्याशी के खाते में गया तो परिणाम मोदी के चुनावी पंडितों की भविष्यवाणी को गड़बड़ा सकते हैं.
खैर, 12 मई की तारीख नज़दीक आ रही है. अल्पसंख्यक वोटर आखिरी के बचे दिनों में ही अपने वोट की दिशा तय करेंगे. ऐसे में ज़रूरत इस बात की है कि मुस्लिम वोटों के इन ठेकेदारों को किनारे किया जाए और इस बात की पूरज़ोर कोशिश की जाए कि मुस्लिम एकजूट होकर अपनी भलाई व देशहित का ख्याल करते हुए ही अपने मुस्तकबिल का फैसला करे.
