Sanjeev Kumar (Antim) for BeyondHeadlines
समकालीन विश्व में व्यापक तौर पर विकास के दो मॉडल रहे हैं. प्रथम मॉडल भगवती मॉडल है, जो बिना शर्त नए निवेश को प्रोत्साहित करने की वकालत करता है. इस मॉडल के अनुसार नए निवेश से उत्पन्न आय का उपयोग समाज के निचले तबके के लोगों के जीवन स्तर के सुधार हेतु किया जा सकता है. यह नया उत्पन्न राजस्व जन कल्याणकारी योजनाओं पर सरकार के खर्च में तीव्र वृद्धि कर सकता है.
यह मॉडल प्रारंभिक स्तर पर जन कल्याणकारी योजनाओं के ऊपर भारी मात्रा में सरकारी खर्चों का विरोध करता है, क्योंकि इसके अनुसार अगर सरकार जन कल्याणकारी योजनाओं पर खर्च के ऊपर ज्यादा ध्यान देगी तो वो नए निवेश को निरुत्साहित करेगा. उदहारण स्वरुप आधारभूत संरचना के विकास पर व्यय, नए निवेश को प्रेरणा इत्यादि…
यही वह विकास का मॉडल है, जिसका गुजरात पिछले एक दशक से अनुसरण कर रहा है. विकास के इस मॉडल के सापेक्ष एक दूसरा मॉडल भी है जो जन कल्याणकारी योजनाओं पर व्यय को ज्यादा तवज्जो देता है, जैसे शिक्षा पर व्यय, स्वास्थ्य पर व्यय इत्यादी… इस मॉडल के संस्थापक अमर्त्यसेन को माना जाता है.
अमर्त्य सेन के अनुसार मानव पूंजी किसी भी देश की अर्थव्यवस्था के लिए सर्वाधिक अमूल्य धरोहर है. ऐसा माना जाता है कि यह मॉडल आंशिक रूप से मध्य प्रदेश और बिहार के द्वारा अपनाया गया है, और मेरी हार्दिक इच्छा है कि इसी पृष्ठभूमि में हमारे पाठकगण इस लेख को पढ़े और समझे.
अगर मैं पुरे लेख को संक्षेप में एक लाइन में प्रस्तुत करूं, तो ये कहूँगा कि गुजरात का विकास मॉडल नवउदारवादी विकास मॉडल का भोढापन या अश्लील (pornified) स्वरुप है, इससे ज्यादा कुछ नहीं…
हालांकि मैं इस बात से सहमत नहीं हूँ पर आज के दौर में निवेश को ही विकास कि संज्ञा दी जाती है, लेकिन गुजरात इस मामले में भी प्रथम स्थान पर नहीं आता है. वाइब्रेंट गुजरात के इतने नारे लगाने के वावजूद गुजरात जो की विदेशी निवेश के मामले में पहले पांचवे स्थान पर था (अतुल सूद पृ.स 52; और रिज़र्व बैंक की रिपोर्ट 2011-12), वो अब 2012-13 में छठे स्थान पर चला गया (dnaindia 12 अप्रैल 2013)(द हिन्दू 12 अप्रैल 2013)(दि फर्स्ट पोस्ट 15 अप्रैल 2013)
भारतीय रिज़र्व बैंक के नवीनतम रिपोर्ट के अनुसार प्रति व्यक्ति प्रत्यक्ष विदेशी निवेश को आकर्षित करने के मामले में गुजरात का भारत के कुल राज्यों में आठवां स्थान है. भारत के कुल प्रत्यक्ष विदेशी निवेश में गुजरात कि भागीदारी मात्र 3.1% है.
2000 से 2010 के बीच गुजरात में कुल प्रत्यक्ष विदेशी निवेश 28000 करोड़ रूपये था जबकि महाराष्ट्र में ये 1.75 लाख करोड़, दिल्ली में 1.02 लाख करोड़ और कर्नाटक में 31000 हजार करोड़ रूपये था (अत्री मुख़र्जी, पृ.स.108, तालिका 2).
विश्व बैंक द्वारा जारी किये गए भारत के प्रमुख 16 राज्यों के ‘निवेश माहौल सूचकांक’ में गुजरात का स्थान प्रथम नहीं, बल्कि तीसरा है (विश्व बैंक की रिपोर्ट, पृ.स.8).
निवेश को प्रोत्साहित करने के लिए गुजरात सरकार द्वारा चलाई गई वाइब्रेंट गुजरात नामक योजना भी असफल ही साबित हुई, क्योंकि गुजरात सरकार के खुद के दस्तावेजों के अनुसार ही इस योजना का प्रदर्शन कुछ इस प्रकार है (फ्रंटलाइन 8 मार्च 2013).
क्र.स. | वर्ष | दावा (करोड़ रूपये) | वास्तविक (सामाजिक आर्थिक समीक्षा, गुजरात सरकार, 2011-12, पृ.स.24) |
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2003 | 66,068 | 37,746 करोड़ |
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2005 | 1,06,160 | 37,939 करोड़ |
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2007 | 4,65,309 | 107,897 करोड़ |
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2009 | 12,39,562 | 104,590 करोड़ |
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2011 | 20,83,047 | 29,81313 करोड़ |
गुजरात सरकार के द्वारा निवेश आकर्षित करने के लिए प्रायोजित वाइब्रेंट गुजरात योजना को प्रदेश की सरकार और मीडिया के द्वारा खूब बढ़ा चढ़ा के पेश किया गया. इस योजना के प्रचार प्रसार का करार भी उसी वैश्विक कम्पनी APCO वर्ल्ड वाइड को दिया गया था, जिसे 2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने अपने प्रचार प्रसार के लिए चुना था और जिसने दुनिया के कुछ गिने चुने तानाशाह के लिए प्रचार प्रसार का कार्य किया है. पर अंततः अब तक इस योजना में दावे किये गए कुल निवेश का मात्र 10% ही वास्तविक रूप से कार्यान्वित हो पाया है.
इसमें कोई शक नहीं है कि कुल निवेश के मामले में गुजरात कई राज्यों से आगे है, लेकिन निवेश की तुलना में रोज़गार पैदा करने के मामले में कई समकक्ष राज्यों से पीछे है. ऐसा बहुत हद तक इसलिए है, क्योंकि गुजरात सरकार ने रोज़गार प्रधान उत्पादन पद्धति को हर सिरे से नकार दिया है.
2006 से 2010 के बीच गुजरात ने लगभग 5.35 लाख करोड़ की मूल्य की एमओयू आमंत्रित की, जिससे कुल 6.47 लाख रोज़गार उत्पन्न होने की संभावना है, लेकिन वहीं महाराष्ट्र और तमिलनाडु ने क्रमशः 4.20 लाख करोड़ और 1.63 लाख करोड़ रूपये का एमओयू आमंत्रित किये, जिनसे क्रमशः 8.63 लाख और 13.09 लाख नए रोजगार सृजीत होने की संभावना है.
मतलब साफ़ है, महाराष्ट्र और तमिलनाडु सरकार कम निवेश के बावजूद रोजगार सृजन के मामले में गुजरात सरकार से काफी आगे है. 2009-10 में गुजरात में हर 26 लाख के निवेश पर मात्र एक व्यक्ति को रोजगार मिलता था, जबकि राष्ट्रीय औसत मात्र 14.76 लाख था (अतुल सूद, पृ.स. 59).
2001-02 में औद्योगिक क्षेत्र से होने वाले आय में मजदूरी का हिस्सा 14.96% था जो कि 2010-11 में घटकर 5.71% रह गया है (इकनोमिक एंड पोलिटिकल वीकली, नवम्बर 5, 2011 और http://mail.mospi.gov.in/index.php/catalog/142/download/1622)
गुजरात की तुलना में महाराष्ट्र की आबादी 20% अधिक है, लेकिन रोज़गार क्षेत्र में तमिलनाडु गुजरात से 70% अधिक लोगों को रोज़गार देता है. तमिलनाडु 18.9 लाख लोगों को रोजगार देता है, जबकि गुजरात 11.6 लाख लोगों को रोजगार देता है. योजीत सकल मूल्य के मामले में गुजरात तमिलनाडु से 50% आगे होते हुए भी रोजगार उत्पन्न करने के मामले में उससे पीछे है और गुजरात का स्थान पन्द्रहवां है (उद्योगों की वार्षिक सर्वेक्षण, 2008-09, पृ.स. S-2-1, पृ.स. 11-12 और 20).
गुजरात सरकार रोजगार केन्द्रित उत्त्पादन प्रणाली के बजे पूंजी केन्द्रित उत्त्पादन प्रणाली को स्थान देती है. पूंजी उत्त्पदन प्रणाली प्रायः उन देशों में अपनाया जाता है, जहां की जनसंख्या वृद्धि दर या तो नगण्य हो या ऋणात्मक हो.
अब गुजरात या भारत की जनसंख्या वृद्धि दर कितनी है, ये तो बताने की ज़रुरत नहीं है. इशारा साफ़ है, गुजरात सरकार के विकास मॉडल का मुख्या उद्देश्य रोजगार पैदा करना नहीं है, बल्कि उत्त्पदन और लाभ बढ़ाना है जिसे पूंजी केन्द्रित उत्त्पदन प्रणाली भी कहते है.
यही कारण है कि गुजरात में रोजगार उत्त्पदन प्रणली का प्रतिक कपड़ा उद्योग में हाल के वर्षो में खासी गिरावट दिखी है. 2010-11 में गुजरात में हुए कुल निवेश में से कपड़ा उद्योग को मात्र 15.4% ही मिला, जबकि इतने कम निवेश में भी कपड़ा उद्योग ने कुल रोज़गार में 10.89% योगदान दिया.
90 के दशक तक गुजरात में कपड़ा उद्योग में कुल निवेश का 10% से कम नहीं रहा. कपड़ा उद्योग के विपरीत बुनियादी ढांचा क्षेत्र को कुल निवेश का 37.59% हिस्सा मिलता है, जबकि इस क्षेत्र से मात्र 21% रोजगार का सृजन होता है (अतुल सूद, पृ.स. 221, तालिका 3.4).
ऐसा प्रतीत होता है कि हाल के वर्षों में गुजरात ने रोज़गार गहन निवेश को छोड़कर पूंजी गहन निवेश का रास्ता अपना लिया है, जिसमें गरीबों और मजदूरों के हित का कोई स्थान नहीं होता है.
निवेश को प्रोत्साहन के नाम पर गुजरात सरकार ने जिस प्रकार से पूंजीपतियों को लूट की छूट दे रखी है, वो शायद ही किसी अन्य राज्य में देखने को मिले.
अब टाटा की नैनो फैक्ट्री को ही ले लीजये… मोदी जी ने टाटा की 2300 करोड़ रूपये लगत वाली इस फैक्ट्री को बनाने के लिए टाटा को 10000 करोड़ रूपये का कर्ज दे डाला और वो भी एक पैसे के व्याज पर.
अब आप ही बताइए, एक पैसे में भला कहीं कर्ज मिलता है? इतने प्रोत्साहन के बावजूद गुजरात का कुल इन्वेस्टमेंट महाराष्ट्र के कुल निवेश के 9% कम है, जबकि इन निवेशों से होने वाले आय में महाराष्ट्र गुजरात से 20% आगे है (उद्योगों की वार्षिक सर्वेक्षण, 2008-09, पृ.स. 11-12 और 20) औद्योगिक निवेश के मामले में गुजरात तीसरे स्थान पर आता है (अतुल सूद, पृ.स.219)
कर्ज के मैनेजमेंट के लिए तो कैग ने भी गुजरात सरकार को लताड़ लगा चुकी है, पर उनके कान पे जूं भी नहीं रेंगता है. गुजरात सरकार ने कॉर्पोरशंस, बोर्ड्स, सरकारी कंपनियों, ग्रामीण बैंक और ज्वाइंट वेंचर्स में कुल मिलाकर 39179 करोड़ रूपये का निवेश किया है, जबकि इस निवेश से पिछले 5 सालो में सड़कों को मात्र 0.25% वार्षिक का लाभ हुआ है, जबकि सरकार को इस निवेश के लिए 7.75% वार्षिक की दर से कर्ज पर सूद देना पड़ा था.
CAG ने सरकार की इस बात की भी आलोचना की कि सरकार ने 9066.34 करोड़ के यूटिलाइजेशन सर्टिफिकेट को फर्निश नहीं किया (इकनोमिक टाइम्स: 8 holes CAG picked in Narendra Modi’s Gujarat development plan).
(लेखक जेएनयू के छात्र के साथ-साथ एक थियेटर एक्टिविस्ट और जागृति नाट्य मंच के संस्थापक सदस्य हैं. इनसेSubaltern1987@gmail.com पर सम्पर्क किया जा सकता है. )