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धारा 370: भाजपा और उसके मिथक

Anil Yadav for BeyondHeadlines

हाल में राज्यमंत्री जितेन्द्र सिंह का धारा-370 को समाप्त करने को लेकर आए बयान को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ की मुलाकात को हमें जोड़कर देखना होगा. क्योंकि संघी ‘राष्ट्रवाद’ पाकिस्तान विरोध और जम्मू और कश्मीर को लेकर ही हमारे देश में ‘फल-फूलता’ है.

इनके ‘पूर्वज’ श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने कश्मीर संबन्धी धारा-370 के खिलाफ एक अभियान चलाकर 7 अगस्त 1952 में एक नारा दिया ‘एक देश दो निशान, एक देश दो विधान, नहीं चलेगा.’

इस अनुच्देछ के विरुद्ध मुखर्जी ने भारतीय जनसंघ की स्थापना की, जो 1980 में भाजपा के रुप में परिवर्तित हो गया. वस्तुतः भाजपा का उदय ही धारा-370 के विरोध में हुआ. ऐसे में जब भी भाजपा राजनीति की चक्रव्यूह में फंसती है, तो वह धारा-370 की ‘संजीवनी’ का इस्तेमाल करती है.

राज्यमंत्री जितेन्द्र सिंह कहना है कि केन्द्र सरकार जम्मू और कश्मीर के हर वर्ग के साथ बातचीत के माध्यम से असहमति को सहमति में बदलने की कोशिश करेगी. असहमति को सहमति में बदलने के खिलाफ कश्मीर की अवाम का विरोध प्रदर्शन साफ करता है कि जम्मू और कश्मीर उनके लिए किसी आस्था का नहीं, बल्कि स्वायत्ता व स्वतंत्रता से जुड़ा मसला है.

बहरहाल, श्यामा प्रसाद मुखर्जी से लेकर जितेन्द्र सिंह तक इस धारा को समाप्त करने का तर्क ‘देश हित’ के रुप में देते हैं, आखिर यह ‘देश हित’ क्या है. दर्शन शास्त्र में ऐसे अमूर्त विचारों और सिद्धांतों को निरंकुशता के रुप में चिन्हित किया जाता है.

दक्षिणपंथी राजनीति का यही ‘देश हित’ राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की हत्या को वध बताकर तर्क संगत साबित करता है. यही ‘देश हित’ 2002 गुजरात दंगे को क्रिया की प्रतिक्रिया बताता है. गौरतलब है कि ऐसे तमाम शब्दों के आडंबर निरंकुशता व फासीवाद के पोषक होते हैं.

लोकसभा चुनावों के मद्देनजर दिसंबर 2013 में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने एक रैली में धारा-370 के लाभ-हानि को अपने ‘विवेक’ के तराजू पर तौलकर उसे समाप्त करने की घोषणा कर दी थी. दक्षिणपंथी हिन्दुत्वादी गुट धारा-370 को लेकर लगातार एक भ्रामक प्रचार करते हैं कि यह महिला विरोधी है.

वे भ्रम फैलाते हैं कि जम्मू और कश्मीर की कोई महिला यदि देश के अन्य किसी व्यक्ति से शादी करती है तो वो अपनी सम्पत्ति के अधिकार के साथ ही साथ उसकी कश्मीर की नागरिकता भी समाप्त हो जाती है. जबकि महिला की सम्पत्ति और नागरिकता का संबंध धारा-370 से नहीं, बल्कि जम्मू और कश्मीर के राज्य के संविधान के कानून से था, जिसे जम्मू और कश्मीर के उच्च न्यायालय ने 2002 में ही समाप्त कर दिया था. परन्तु प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी सहित तमाम भाजपा व संघ के नेताओं द्वारा यह मिथक प्रचारित किया जाता रहा है.

एक तरफ जहां पाकिस्तान के प्रधानमंत्री को आने का न्योता दिया जाता है, तो वहीं दूसरी तरफ जम्मू और कश्मीर के नागरिकों को चिढ़ाने के लिए जिस तरह से धारा-370 को समाप्त करने का बयान दिया गया. उससे स्पष्ट होता है कि यह सरकार इस मुद्दे का कोई तार्किक हल नहीं चाहती.

जहां तक राज्यमंत्री जितेन्द्र सिंह का कुछ सीटों और वोट प्रतिशत का हवाला देकर धारा-370 की समाप्ती की बात करते हैं, तो उन्हें यह जानना चाहिए कि भारत सरकार ने नोटा के अधिकार को जम्मू और कश्मीर के नागरिकों को नहीं दिया है. क्योंकि जम्मू और कश्मीर के नागरिक जनमत संग्रह की बात लगातार करते आए हैं और भारत सरकार को यह खतरा था कि अगर वह वहां नोटा के अधिकार को देगी तो वह उसके खिलाफ एक जनमत संग्रह का प्रमाण पत्र हो सकता है.

इसलिए भाजपा को यह समझ लेना चाहिए कि देश जुमलों से नहीं चलता हैं, जम्मू और कश्मीर की अवाम को सेना से नहीं, बल्कि उनके अधिकारों के संरक्षण व उनकी स्वयतत्ता और स्वतंत्रता जैसे मसलों पर हमें गंभीर होना होगा.

कश्मीर से जुड़े मुद्दों पर सेवानिवृत्त न्यायाधीश सगीर अहमद के नेतृत्व में मनमोहन सिंह की सरकार द्वारा गठित पाचवी कार्य समिति ने अपनी अनुसंशा में कहा है कि कश्मीर के लोगों को ही तय करना है कि वह धारा-370 के तहत विशेष दर्जा चाहते हैं या नहीं.

कश्मीर मसले का हल ‘संघ कार्यालय’ से नहीं बल्कि कश्मीर की अवाम से बातचीत पर ही संभव है. जितेन्द्र सिंह को बताना चाहिए कि अगर उनकी कश्मीर के लोगों से बातचीत थी तो उनके इस बयान के बाद वहां हो रहे विरोध प्रदर्शन का आधार क्या है.

राज्यमंत्री के अतार्किक बयान के आधार को हम पा´चजन्य के सोशल साइट्स पर देख सकते हैं. पर मंत्री महोदय को जानना चाहिए कि देश पा´चजन्य से नहीं, बल्कि डा. भीमराव अम्बेडकर द्वारा लिखित संविधान से चलता है.

हिन्दुत्वादी धारा कहती है कि धारा-370 वास्तविकता के मुकाबले एक मानसिक बाधा है. जम्मू और कश्मीर में आखिर बाधा क्या है? प्रसिद्ध मानवाधिकार नेता गौतम नवलखा द्वारा जारी रिपोर्ट ‘अत्याचार और पीड़ा’ में बताया गया है कि पिछले दो दशक में उत्तर कश्मीर के मात्र दो जिलों- कुपवाड़ा और वारामूला के पचास गांव से 500 व्यक्ति या तो मार दिए गए हैं या तो अभी तक लापता हैं. सेना द्वारा किए जा रहे अत्याचार जग जाहिर है.

जम्मू और कश्मीर तथा धारा-370 पर बहस करने वालों को यह जान लेना चाहिए कि यह धारा भारत और कश्मीर का एक पुल है, इसे खत्म करने का अर्थ कश्मीर से अलग होना ही है, इन सारे तथ्यों को नज़रंदाज कर भाजपा दूसरा मुद्दा उठा रही है.

भाजपा के घोषणा पत्र या संघ के मुखपत्र इस बात की पुष्टि करतें हैं कि भाजपा की नीति में हथियारों का खेल खेलना प्रमुख एजेंडा होगा. देश की तमाम सुरक्षा व खुफिया एजेंसियों को सशक्त बनाने के नाम पर देश में तनाव का वातावरण कायम कर जनता के बुनियादी सवालों से ध्यान हटाने की कोशिश मात्र है धारा-370 खत्म करने का बयान…..

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