Edit/Op-Ed

पर्यावरणीय अन्या य के आंदोलनों को कुचलने के लिए ‘कूटनीति’ की जगह ‘नीच नीति’

Dr. Seema Javed for BeyondHeadlines

खुफिया विभाग द्वारा पिछले दो हफ्ते से लीक किए जा रहे रिपोर्ट के बारे में सिर्फ एक ही बात कही जा सकती है और वह है – पर्यावरणीय अन्‍याय के आंदोलनों को कुचलने के लिए “कूटनीति”  की जगह  “नीच नीति” का सहारा…

ग्रीनपीस इंडिया ने अपने उपर लगाए गए आरोपों पर कड़ी प्रतिक्रिया देते हुए इसे झूठ का पुलिंदा बताया है. ग्रीनपीस इंडिया का कहना है कि खुफिया विभाग निहित स्वार्थवश सभी तरह के विरोध को खत्म कर देना चाहती है.

ग्रीनपीस वास्‍तव में पर्यावरण चेतना का विश्वव्यापी आन्दोलन है. इसकी स्थापना सन १९७१ में कनाडा के वैनकूवर  में हुई थी. तात्कालिक रूप से यह अमेरिका द्वारा अलास्का में नाभीकीय हथियारों के परीक्षण का विरोध करने के लिये बनी थी, किन्तु बाद में इसका उद्देश्य व्यापक रूप से पर्यावरण की सुरक्षा होता गया.

यह महात्‍मा गांधी के आदर्श अहिंसा को अपनाकर पर्यावरण को नुक़सान पहुंचाने वाली नीतियों का पुरजोर विरोध करते हुए उनमें बदलाव लाती है. पर्यावरण समस्‍याओं का हल खोजना और इन हलों को अपनाने के लिए उचित कार्यवाही करना ही इसका मक़सद है. चूंकि ग्रीनपीस कोयला खदानों और परमाणु ऊर्जा परियोजनाओं के खिलाफ लगातार प्रतिवाद करता रहा है, इसलिए उसे बदनाम करने की नापाक कोशिश की जा रही है.

ग्रीनपीस की सबसे मजबूत कड़ी और उसकी स्‍वतंत्रता का आधार उसके समर्थक हैं जो  निजी स्‍तर पर उसे सहायता राशि या फंड देते हैं. ऐसे में जब वह सरकार, कारपोरेट जगत एवं राजनैतिक दलों से न तो चंदा मांगती है और न उसे स्‍वीकार करती है.

ग्रीनपीस इंडिया के कार्यकारी निदेशक समित आईच का कहना है,”ऐसा लगता है कि सरकार की यह रणनीति है कि आने वाले दिनों में विरोध के सभी स्वर को खत्म कर दो जिससे कि लंबित परियोजनाओं को त्वरित मंजूरी दी जा सके. लेकिन ग्रीनपीस को बदनाम करके जलवायु परिवर्तन से दुनिया को नहीं बचाया जा सकता है. हमारी पीढ़ी शायद अंतिम पीढ़ी है जिनके उपर जलवायु परिवर्तन से दुनिया को बचाने का सारा दारोमदार है.”

पिछले कई वर्षों से ग्रीनपीस इंडिया के कार्यकर्ता सरकार और कॉरपोरेट्स के खिलाफ आम लोगों के गुस्से को स्वर देता रहा है.  ऐसे में विरोध की आवाज़ों को कुचलने की सरकारी साजि़श है.

कांग्रेस सरकार के समय पर्यावरण एवं वन मंत्री रहे जयराम रमेश ने स्‍वयं मीडिया के सामने यह बात कही कि ग्रीनपीस विदेशी धन पर निर्भर नहीं है. एक जयराम रमेश ही नहीं, बल्कि पुष्‍पा भार्गवद्, बिट्टू सहगल, सुरजीत भल्‍ला जैसे तमाम लोग पिछले दिनों ग्रीनपीस की सफाई पेश करने सामने आ चुके हैं लेकिन  खुफिया विभाग का यह कृत्य इस बात को दर्शाता है कि भारत सरकार अपने विरोध को किसी भी तरह कुचल देना चाहती है.

ग्रीनपीस इंडिया इस तरह के दुर्भावनापूर्ण रिपोर्ट से डरने वाला नहीं है और वह बेहतर भविष्य के लिए अपनी लड़ाई अनवरत जारी रखेगा. समित आईच का कहना है, “सरकार जनता और हमारे तीन लाख समर्थकों के बीच सफेद झूठ या अर्ध सत्य बोलकर भ्रम फैलाना चाहती है. खुफिया विभाग की दोनों रिपोर्ट सफेद झूठ और झूठ का पुलिंदा है.

(लेखिका स्‍वतंत्र पत्रकार व ग्रीनपीस से जुड़ी हुई हैं.)

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