Afroz Alam Sahil for BeyondHeadlines
जिस बनारस की प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने तक़दीर बदल देने का दावा किया था, वही बनारस आज अपनी तक़दीर पर रो रहा है. सांसद मोदी जी के इस शहर में भूखे-प्यासे कुपोषित बच्चों की भरमार है.
बनारस के दीन दयाल उपाध्याय अस्पताल के इमरजेंसी वार्ड में 2 साल 4 महीने का पवन भर्ती है. इसका वज़न सिर्फ 4.5 किलो है, जबकि इसका वज़न उम्र के हिसाब से लगभग 13 किलो होना चाहिए. अस्पताल के स्टाफ इसकी हालत काफी गंभीर बता रहे हैं.
पवन के मां-बाप हरहुआ ब्लॉक के आयर मुसहर बस्ती में रहते हैं. वो दिन भर इंट के भट्टा पर काम करके बहुत मुश्किल से अपने परिवार को चला पाते हैं. इनके पास वोटर कार्ड तो ज़रूर है, पर अब तक कोई राशन कार्ड नहीं है. पवन की मां बताती है कि उनके पास रहने को घर-ज़मीन भी नहीं है. मनरेगा का जॉब कार्ड बना है, लेकिन अब तक कभी हमें काम नहीं मिला.
पाखंडी मुसहर अपने अपने भरण-पोषण के लिए भट्टा मालिक से कर्ज लिए, जिसके एवज में अब वो अपनी पत्नी के इसा इंट भट्टा पर काम करता है.
यह कहानी सिर्फ इनकी ही नहीं है. पवन की तरह आयर गांव के 20 बच्चे और कुपोषण के शिकार हैं. जिनके कुपोषित होने की पुष्टि खुद आज एनआरएचएम के तहत चलने वाले आशीर्वाद बाल स्वास्थ्य गारन्टी योजना के हेल्थ कैम्प में डॉक्टरों ने की है. इस कैम्प में डॉक्टरों ने 20 बच्चों को उम्र के लिहाज से कम वज़न का पाया है, और इनमें से 6 को काफी गंभीर मानते हुए अस्पताल में भर्ती कराने को रेफर किया है.
याद रहे कि ये तथ्य किसी एनजीओ की ज़बान से निकल कर सामने नहीं आ रहा है, बल्कि खुद शासन व प्रशासन के नुमाइन्दे इस दिल दहला देने वाली सच्चाई से वाकिफ हैं. लेकिन हैरानी की बात यह भी है कि पी.एम. मोदी की सरकार को एक महीना पूरा हो गया है, बावजूद इसके सांसद मोदी जी ने शपथ लेने के बाद बनारस में झांकने तक की ज़हमत नहीं उठाई. ऐसे में इन मासूमों का दर्द कौन सुने?
कहानी यहीं खत्म नहीं होती. जब इन 6 बच्चों के माता-पिता शहर के दीन दयाल उपाध्याय अस्पताल में आए तो यहां के डॉक्टरों ने कुछ दवाएं आदि देकर उनको बच्चों का सही-देखभाल करने का आदेश दे दिया. इन बच्चों के अभिभावक काफी परेशान हैं कि एक तरफ हेल्थ कैम्प के डॉक्टर्स इन्हें गंभीर मान रहे हैं, वहीं दूसरी तरफ अस्पताल के डॉक्टर्स इन्हें गंभीर मानने को तैयार नहीं हैं और न हीं इन बच्चों की देखभाल के लिए उन्हें भर्ती करने को ही तैयार हैं. ऐसे में वो करें तो क्या करें? आखिर इन मासूमों के दर्द को समझे कौन?
पीपुल्स वीजिलेंस कमिटी ऑन ह्यूमन राईट्स से जुड़े चाइल्ड राइट्स एक्टिविस्ट सोभनाथ व आनन्द प्रकाश बताते हैं कि हमारी संस्था ने इसी जून के आरंभ में इस आयर गांव में स्वास्थ्य एवं पोषण की स्थिति का सर्वे किया है, जिसमें 27 बच्चे गंभीर रूप से कुपोषित हैं. पर इस पर कोई ध्यान नहीं दे रहा है.
वो यह भी बताते हैं कि इस गांव के लोग ज़्यादातर इंट भट्टे पर काम करते हैं और वहां कोई ICDS की सेवाएं नहीं हैं. खुद आज से 2 साल पहले वाराणसी में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग व बाल संरक्षण आयोग की जन सुनवाई में आयोग द्वारा यह निर्देश दिया गया था कि प्रत्येक ईंट-भट्टों पर आंगनवाड़ी केन्द्र खोला जाए, जिससे भट्टे पर काम करने वाले मजदूरों के बच्चों को स्वास्थ्य-पोषण की सुविधा मिल सके, लेकिन इस मामले पर अभी तक प्रशासन ने कोई ध्यान नहीं दिया और न ही यहां आज तक ICDS सेन्टर ही खुल सका है.
खैर, यह भयावह तस्वीर बनारस के महज़ एक ब्लॉक के आईने की है. अब अगर पूरे बनारस का आईना सांसद मोदी जी के सामने रख दिया जाए तो उनकी आंखें फटी की फटी रह जाएंगी. हालांकि एक संभावना यह भी है कि मोदी जी की आंखों को इस तस्वीर से कोई मतलब ही न हो, क्योंकि अभी तो उनके हाथ में सत्ता की चाबी है और खजाना भी सामने है….
