Fahmina Hussain for BeyondHeadlines
हाल के दिनों में उत्तर प्रदेश के बदायूं ज़िले में दो युवतियों का साथ हुए सामूहिक बलात्कार की घटना को शौचालय के साथ जोड़ कर देखा गया. क्योंकि दोनों नाबालिग़ लड़कियां अपने घर से शौच के लिए ही निकलीं थीं और उसके बाद लापता हो गई थी. शौचालय के आंकड़ों पर खूब बहस हुए. लेकिन सूचना के अधिकार के माध्यम से उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ की जो महत्वपूर्ण सूचना हासिल हुई है. वो काफी चौंका देने वाली है.
सूचना के अधिकार कानून के ज़रिए लखनऊ की प्रसिद्ध आरटीआई एक्टिविस्ट व एश्वर्याज़ सेवा संस्थान की सचिव उर्वशी शर्मा को मिले महत्वपूर्ण दस्तावेज़ बताते हैं कि देश में सर्वाधिक आबादी वाले राज्य उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ, जिसकी आबादी 2000 की जनगणना के मुताबिक 45,89,838 है. जहां प्रति 58,844 लोगों के सिर्फ एक शौचालय है और महिलाओं के लिए अलग से तो कोई शौचालय है ही नहीं.
दस्तावेज़ बताते हैं कि सूबे की राजधानी में सार्वजनिक शौचालयों की संख्या 78 है. वहीं सार्वजनिक मुत्रालयों की संख्या 105 है. वहीं महिलाओं के लिए एक भी शौचालय नहीं हैं, जबकि 2000 के जनगणना के मुताबिक आरटीआई से मिले आंकड़े बताते हैं कि महिलाओं की संख्या 21,95,362 है. दस्तावेज़ बताते हैं कि पुरूष व महिला के शौचालय सामान्यतः एक ही में होते हैं.
आरटीआई कार्यकर्ता उर्वशी शर्मा का कहना है कि इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं हैं कि शहर के व्यस्त इलाकों में सैकड़ों लोग खुले में शौच जाते हैं, यही नहीं वीआइपी कालोनियों की भी यही दशा है. उनका मानना है कि यह शहर एक तरह से खुला शौचालय बन गया है. शर्मा ने अपने आरटीआई में लखनऊ नगर निगम (एलएमसी) से 11 सवालों पर सूचना मांगी थी.
स्पष्ट रहे कि विश्व स्वास्थ्य संगठन और यूनिसेफ़ के आंकड़ें बताते हैं कि भारत के क़रीब आधे अरब लोगों यानी आबादी की 48 फ़ीसदी जनता को शौचालय के अभाव में गुज़र बसर करना पड़ता है. इन्हें खुले में शौच के लिए जाना होता है. गांवों में स्थिति और भी ख़राब है. ग्रामीण इलाक़ों में 65 फ़ीसदी लोग खुले में शौच करते हैं. इनमें शामिल महिलाओं को हिंसा और उत्पीड़न का सामना करना पड़ता है, क्योंकि वो शौच के लिए बेहद सुबह या फिर देर रात निकलती हैं. जब सन्नाटा होता है… ऐसे में किसी राज्य के राजधानी में महिला के लिए शौचालय न होना अपने आप में की गंभीर प्रश्न खड़े करता है.
