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Reading: रिलायंस कथा : जानिए पर्दे के पीछे का सारा खेल…
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रिलायंस कथा : जानिए पर्दे के पीछे का सारा खेल…

Beyond Headlines
Beyond Headlines Published June 9, 2014 2 Views
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12 Min Read
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Amit Bhaskar for BeyondHeadlines

कभी आपने सोचा है कि क्यों आप अभी गैस के लिए 4.2$ दे रहे हैं? गैस के कुएं अम्बानी को कैसे मिला? सरकार ने क्या किया? क्या है KG बेसिन? नहीं ना! तो आईए अब जान लीजिए… क्योंकि यह गैस आपको और रूलाने वाला है. आपके  घरेलू बजट पर ज़बरदस्त डाका डालने वाला है…

KG D6 बेसिन आखिर है क्या बला?

दरअसल, KG का तात्पर्य कृष्णा गोदावरी बेसिन से है, जो आंध्र प्रदेश के तटीय क्षेत्र में कृष्णा और गोदावरी नदी किनारे करीब 50000 स्क्वायर किलोमीटर में फैला है. इन किनारों में एक जगह है, जिसे धीरुभाई-6 कहते हैं, यानी D6… यहीं पर रिलायंस इंडस्ट्री ने देश के सबसे बड़े गैस के भण्डार का पता लगाया.

सरकारी आंकड़ों की मानें तो 50000 में से 7645 स्क्वायर किलोमीटर के एरिया, जहां गैस का पता लगा, उस जगह को KG-DWN-98/1 कहा गया है.

 

जानिए पर्दे के पीछे का सारा खेल…

1991 में भारत सरकार ने भारतीय निजी कंपनियों और विदेशी कंपनियों के साथ एक हाइड्रोकार्बन एक्सप्लोरेशन एंड प्रोडक्शन (E&P) का काम शुरू किया. इसके तहत छोटे-छोटे ब्लॉक्स दिए गए कंपनियों को तेल और गैस के उत्पादन के लिए. पर 1999 में न्यू एक्सप्लोरेशन एंड लाइसेंसिंग पालिसी (NELP) लाई गयी भारत सरकार द्वारा, जिससे सारे छोटे-छोटे ब्लॉक्स, जो अलग-अलग कंपनियों को दिए जा रहे थे, उसे बंद करके एक बड़ा ब्लाक जिसे धीरुभाई-6 D6 कहा गया, वो रिलायंस को दे दिया गया. अर्थात पॉलिसी बदली गयी, जिससे कई कम्पनियां इस काम में ना लगे और एक बड़ी कंपनी सारे बेसिन का गैस तेल आदि का उत्पादन करे.

अब सवाल ये है कि बेसिन तो रिलायंस को दे दिया गया, पर क्या सरकार का उस पर नियंत्रण है कि नहीं? क्योंकि कोई भी प्राकृतिक सम्पदा देश के जनता की होती है. इसीलिए सरकार इस एक्सप्लोरेशन और प्रोडक्शन को मॉनिटर करती है. अब किसी भी प्राकृतिक सम्पदा को निजी कंपनी कैसे निकालती और बेचती है, इसे मॉनिटर करने के लिए सरकार ने प्रोडक्शन शेयरिंग कॉन्ट्रैक्ट (PSC) के तहत निजी कंपनियों के साथ समझौता करती है.

PSC दरअसल एक कॉन्ट्रैक्ट ही है, जिसमें खरीदार और बेचने वाली पार्टी के लिए नियम कानून तय किये गए हैं. इसमें ये बताया गया है कि प्राकृतिक सम्पदा की खोज करने से लेकर उस सम्पदा को निकाल कर बेचने तक कौन-कौन से प्रक्रियाओं को फॉलो करना है… साथ ही इस कॉन्ट्रैक्ट में मुनाफे का बंटवारा कैसे होगा… इसकी भी एक प्रक्रिया है. इस कॉन्ट्रैक्ट का उल्लंघन न हो, इस बात को तय करता है डायरेक्टरेट जनरल ऑफ़ हाइड्रोकार्बन (DGH).

इसी तरह का एक PAC यानी कॉन्ट्रैक्ट रिलायंस और भारत सरकार के बीच साईन किया गया. इस पुरे डील में रिलायंस की ही एक पार्टनर ‘निको रिसोर्सेस’ भी शामिल थी, जिसका हिस्सा 10% था. यहाँ मैं आपको बताता चलूं कि ये उस समय की बात है, जब रिलायंस का बंटवारा नहीं हुआ था.

लेकिन इससे पहले कि KG D-6 बेसिन से उत्पादन शुरू हो पाता, दोनों भाइयों के बीच बंटवारा हो गया, जिसमें गैस का सारा बिज़नेस मुकेश अम्बानी के हिस्से आया. मज़े की बात ये है कि दोनों भाई जिस गैस के लिए झगड़ रहे थे, ये पूरी सम्पदा देश और उसके लोगों की थी न कि इन दोनों भाइयों की… फिर भी इन्होंने बेसिन का आपस में बंटवारा कर लिया. हालांकि PAC के कॉन्ट्रैक्ट में लिखा पहला वाक्य कहता है कि ‘by virtue of article 297 of constitutionof india,Petroleum is a natural statein the territorial waters and the continentap shelf of India is vested with the union of India’

यानी मोटे तौर पर देखा जाए तो ‘भारतीय संविधान की धारा-297 के अनुसार भारत अधिकृत समुन्द्र में पाया गया पेट्रोलियम भारत की सम्पदा है.’

जून 2004 में NTPC को 2600 मेगावाट अपने दो पॉवर प्लांट (कवास और गंधार में मौजूद है) के लिए गैस की ज़रुरत थी. इसके लिए NTPC ने बोली लगवाई. इस बोली में रिलायंस ने NTPC को 17 साल तक 2.34$ के हिसाब से 132 ट्रिलियन यूनिट गैस देने का ठेका लिया. इसी ठेके के आधार पर 2005 में बंटवारे के समय अनिल अम्बानी ने अपना दावा ठोंका और गैस सम्पदा का एक बड़ा हिस्सा RNRL के नाम से अपने पास रख लिया. ये कह कर कि क्योंकि NTPC को 17 साल तक 2.34$ के हिसाब से गैस देने का ठेका उनके पास है, इसीलिए इस गैस को निकालने के लिए उन्हें भी गैस का कुआं तो चाहिए ही. अपने पिता की संपत्ति का बंटवारा करते हुए दोनों भाइयों ने देश की अनमोल सम्पदा गैस का भी बंटवारा कर लिया और इस बात को सालों तक दबा के रखा गया. जबकि सुप्रीम कोर्ट ने एक आदेश में स्पष्ट तौर पर कहा है “भारत सरकार गैस के उत्पादन से लेकर गैस के उपभोक्ता के पास पहुंचने तक उसकी मालिक है. कंपनियों को अपना मतभेद और बंटवारा सरकार के पॉलिसी के तहत करना चाहिए.”

अब यहां सरकार पर ऊंगली उठती है. किसी मंत्रालय ने और न किसी मंत्री ने इस गैस के बंटवारे पर कुछ कहा. वो गैस जो देश की संपदा थी, अम्बानी परिवार की नहीं, फिर भी सरकार आँख मूंद कर धृतराष्ट्र की तरह भारतीय संपदा को लुटते देखती रही. प्रधानमन्त्री मनमोहन सिंह ने दबे स्वर में बस ये कह कर अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ लिया कि दोनों भाई देश के हितों को ध्यान में रखते हुए झगड़ा न करें और सभी मतभेदों को जल्दी सुलझाएं.

लेकिन दिलचस्प मोड़ अभी आना बाकी है. बंटवारा होते ही रिलायंस ने NTPC को 2.34$ के हिसाब से गैस देने से मना कर दिया. जिस NTPC के ठेके के नाम पर अनिल अम्बानी ने RNRL के नाम से देश के कुएं के भण्डार का बहुत बड़ा हिस्सा अपने नाम कर लिया, उस हिस्से के अपने पास आते ही रिलायंस इंडस्ट्रीज ने NTPC के उस ठेके पर ही साईन करने से मना कर दिया. मतलब अनिल अम्बानी को गैस के कुएं का हिस्सा भी मिल गया और अब उसे NTPC को भी गैस नहीं देना था सारा गैस उनके पास.

NTPC ने रिलायंस को मुंबई कोर्ट में 20 दिसंबर 2005 में घसीटा, लेकिन वो केस आज 9 साल बाद भी ख़त्म नहीं हो पाया है. NTPC जैसी संस्था के साथ इतने बड़े धोके के बावजूद सरकार का मुंह में दही जमा के चुप बैठे रहना, अपने आप में एक अलग कहानी है.

2007 में जब NTPC और रिलायंस का झगड़ा कोर्ट में चल ही रहा रहा था, तब सरकार ने इस मामले को एमपावर्ड ग्रुप ऑफ़ मिनिस्टर्स (EGOM) के सुपुर्द कर दिया, जिसकी अध्यक्षता अभी के राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी खुद कर रहे थे, जो उस समय वित्त मंत्री थे. EGOM ने 2.34$ की दर को बढ़ा कर 4.2$ कर देने का फैसला किया.

यहां सबसे मज़े की बात ये है कि ये सारा दाम बढ़ाने-घटाने कोर्ट कचहरी आदि का खेल तब हो रहा था, जब KG बेसिन से ज़रा सी भी गैस नहीं निकाली जा रही थी. बेसिन अब तक बंद था. लेकिन जैसे ही दाम 4.2$ किया गया, रिलायंस ने इस मौके को तुरंत लपक लिया. बयान दिया गया कि सरकार द्वारा गठित EGOM द्वारा तय किये गए दाम से कम में गैस सप्लाई नहीं किया जाएगा चाहे वो NTPC हो या कोई और.

अब सवाल यह है कि प्रणब मुखर्जी इस 4.2$ के आंकड़े पर पंहुचे कैसे? दरअसल, ये रिलायंस का ही एक फार्मूला था, जिसके तहत उन कंपनियों को एक दाम बताने को कहा गया. जो रिलायंस से गैस लेना चाहते थे. रिलायंस ने उन्हें 4.54$ और 4.75$ के बीच एक दाम बताने को कहा और इन कंपनियों के दाम बताने के बाद रिलायंस ने EGOM को दाम 4.59$ कर देने को कहा, जिसे बाद में रिलायंस ने कम करके 4.3$ कर दिया. इसके बाद प्रणब मुखर्जी ने इसमें मामूली कटौती करके 4.2$ कर दिया और अपनी पीठ थपथपाई कि न उसकी चली, न इसकी चलेगी, चलेगी तो सिर्फ हमारी ही चलेगी.

इन सभी उठाये गए क़दमों पर भारत सरकार के ही पॉवर एंड एनर्जी विंग के प्रिंसिपल एडवाइजर सूर्या पी सेठी ने तत्कालीन कैबिनेट के सेक्रेटरी के साथ सवाल उठाया, जिसे नज़रंदाज़ कर दिया गया. सूर्या पी. सेठी का कहना था कि विश्व में कहीं भी गैस की कीमत 1.43$ से ज्यादा नहीं है, फिर अपने ही देश के कुएं से लोग 4.2$ में गैस क्यों लें?

2011 की कैग की रिपोर्ट के अनुसार बिना कोई कुआँ खोदे रिलायंस पेट्रोलियम मिलने के दावे करती रही. मतलब खुद रिलायंस को नहीं पता था कि कितना गैस कितने कुओं में है. रिलायंस को केवल 25% हिस्से पर काम करना था, लेकिन PSC के कॉन्ट्रैक्ट के खिलाफ जाकर रिलायंस ने समूचे बेसिन में काम शुरू कर दिया था और सरकार ने इसमें कोई टोका टाकी तक नहीं की.

रिलायंस के कहने पर 4.2$ चुकाने वाले देश की ये जनता अपने ही कुओं से महंगा गैस ले रही है. और अब भाजपा सरकार इसे बढ़ाकर 8$ करने जा रही है. इससे महंगाई बेतहाशा बढ़ेगी. अपने ही लोगों को गैस 8$ में जबकि बंगलादेश को यही गैस करीब 2$ में दिया जाता है. इस 8$ के पीछे की मंशा क्या है? और किस कारण इसे दोगुना किया जा रहा है, कोई बताने को तैयार नहीं है? कहा जा रहा है कि अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में महंगा है, पर यह बात गलत है. फिर 4.2$ कंपनियों से पूछ कर क्यों किये, जब दुनिया केवल 1.43$ में बेच रही थी?

ये कई ऐसे सवाल हैं जिससे बचने के लिए नेता, पत्रकार, टीवी चैनल और ना जाने क्या-क्या खरीद लिए जाते हैं. और जनता है कि दाम चुकाते-चुकाते थक जाती है. सो कॉल्ड युवाओं से ज़रा पूछिये कितना जानते है इस बारे में वो? बस युवा शक्ति का डंका पीटने से कुछ नहीं होता. शक्ल बनाने में व्यस्त युवाओं को अपने अक्ल पर काम करने की ज़रुरत है…

(लेखक पत्रकारिता के छात्र हैं. इनसे https://www.facebook.com/Amit.Bhaskar.Official.Fan.Page  पर सम्पर्क किया जा सकता है.) 

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